********* बुद्धि शुद्धि के दोहे *********
********* बुद्धि शुद्धि के दोहे *********
***********************************
विधवा नारी शूल सी , सहे घोर अपमान।
रोम – रोम है जल उठे,मिलता नहीं सम्मान।।
शील भंग कर भागते , नर ज्ञानी नादान।
सधवा रूहें काँपती , मिटते नहीं निशान।।
जग में जब जब भी हुआ,औरत का अपमान।
पत हेतु अवतरित हुए,हर युग में भगवान।।
हत्या – हरण भेंट न चढ़े , कन्या – नारी जान।
हर रोज रहें बाँटते , कोरा कल्पित ज्ञान।।
पर नारी समझो सदा , देवी रूप महान।
तीन लोक यश फैलता , गुणी। बने इंसान।।
आपस मे सद्भाव हो , बुद्धि बीजक पुराण।
नर – स्त्री पहिये रेल से , चलते एक समान।।
मनसीरत दिल से कहे,सुनो कान कर ध्यान।
अबला बिन बजता नहीं , जीवन मीठा गान।।
*************************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)