बुद्धत्व
बुद्ध आये ,
मुस्कुराए
और
अंगुलिमाल हार गया।
बुद्ध,
हमेशा-
आता है,
मुस्कुराता है
और
अंगुलिमाल हार जाता है।
नहीं, नहीं!
बुद्ध नहीं आता!
बुद्ध नहीं मुस्कुराता!!
अंगुलिमाल नहीं हारता!!!
बुद्धत्व आता है!
बुद्धत्व मुस्कुराता है!!
और
अंगुलिमालत्व हारता है!!!
लोग कहते हैं –
बुद्ध की मुस्कुराहट में
करुणा थी…..
दया थी……
सहानुभूति थी……
प्रत्येक अंगुलिमाल के प्रति!
लेकिन,
वह मुस्कुराता नहीं था –
कहीं दया….
कहीं सहानुभूति…..
कहीं करुणा…….
न थी।
भीतर की रुलाई!
कंठ के बाहर–
मुस्कुराती थी!
और
चेहरे पर विजय की बात करते हैं-
तो,
यह बात भीतरी नहीं थी,
पोतना पड़ता था —
उसे
जबरदस्ती!
ताकि,
लोगों को विश्वास हो
कि
बुद्ध सचमुच मुस्कुराया!!!!