बुदबुदा कर तो देखो
बुदबुदा कर तो देखो, एक नई कहानी
एक नई कहानी, न बन जाये तो कहना
लाख लगा दो पहरे, ये दिल्लगी,
“बारिश के बहाने, हो कर रहेगी,
उठती है अक्सर, जवानी में लहरें,
नजरों से नजरे, मिलाकर तो देखो.
बनती है ऋतुएँ , बारिश के बहाने.
सजती है महफिल, सा रे गा मा रे.
बोलने से एक तो, मूक बधिर न रहोगे,
बातों की अपनी, अच्छे से, रख सकोगे.
हर दुविधा मिट जायेगी, आपदाओं के,
हर तरफ बादल, छंट जाये तो कहना..
एक घटना से दूसरी घटना जो जुडी है,
प्राकृतिक है नजराना, न दिखे तो कहना.
~ महेन्द्र सिंह मनु ~