बुदबुदाते हो
होठ पर आकर क्यों बुदबुदाते हो
नीदों में आ क्यों रातें उजाड़ते हो
जब से मिलें हो तुम ख्याव बन गई
आ यादों में क्यों सब्जबाग दिखाते हो
होठ पर आकर क्यों बुदबुदाते हो
नीदों में आ क्यों रातें उजाड़ते हो
जब से मिलें हो तुम ख्याव बन गई
आ यादों में क्यों सब्जबाग दिखाते हो