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19 Jul 2019 · 1 min read

बुढ़ी आँखे और एक उम्मीद

रखा यूँ संजो कर
उसने आँसूओं को
गिर न जाएं
किसी झील में
उफनते सैलाब
बयां करते है
किसी मजबूर के

उम्मीद थी
वो आएगी
एक दिन
पतझड़
के बाद
हरियाली फिर
फैलाए जाएगी
फ़िजा में

बुढ़ी आँखे
टकटकी लगाए
देख रही थी
दरवाजे को
शायद दे कोई
दस्तक
जगाएं उम्मीद
उम्र के इस दौर में

स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
307 Views
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