बुढ़ापे के दिन
फिर याद आ गए जवानी के दिन
कभी वापस नहीं आयेंगे वो चमन
कभी वहां पर भी,मंडराते थे भंवरे,
सूखे हुए लग रहे हैं आज जो चमन।।
नई कोंपले उगती थी रोज़
उनमें फिर बहारें भी आती थी
खुशी होती थी जब ये डालियां
कभी फलों से लद जाती थी।।
देख तरुनाई को भवरें बन
बागों में दिखते थे हमेशा
जोश था उमंग थी जीने की
चेहरे खिले रहते थे हमेशा।।
जीवन में खुशियां थी इतनी
उनके लिए भी समय कम था
जीने के लिए और क्या चाहिए
सपने थे, अपने थे, सब था।।
कोई मंजिल पाना उन दिनों
लगता नहीं था मुश्किल मुझे
कैसे बताऊं दोस्तों के संग में
कितनी मिलती थी खुशी मुझे।।
देखते ही देखते वक्त गुज़रा
और आज सबकुछ बदल गया
जब से ये बुढ़ापा आ गया
खिलता चमन, उजड़े चमन में बदल गया।।
नया कुछ नहीं जीवन में अब
कोई लौटकर पूछता भी नहीं
आए भी क्यों, किसी को देने के लिए
मेरे पास अब कुछ है भी तो नहीं।।
नाती पोतों के साथ जो भी
साथ, कुछ पल का मिलता है
उनमें अपना बचपन ढूंढता हूं
बस उसी पल सुकूं मिलता है।।
अब तो समय कटता ही नहीं
वो भी खेल खेलता है बुढ़ापे में
समय तो बहुत है लेकिन कोई
अपना साथ नहीं है बुढ़ापे में।।
अब तो कोई इच्छाएं भी नहीं
खुशी होती मुझे जिनको पाने में
बस मौत का इंतजार कर रहा हूं
न जाने कितनी देर लगेगी उसे आने में।।