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17 Feb 2017 · 1 min read

बुढ़ापा

उम्र तो एक संख्या है
गणित का खेल ही सही
ढ़ल जाती है कभी न कभी
ढ़लने से इसे रोको अभी

बन गई है क्यों लाचार अभी
अपनों ने भी किया विचार नहीं
दूर तक जो चली थी थामें कभी
थमने से इसे रोको बस अभी

जब धूप थी तो ये छाँव बनी
अब छाँव है तो धूप चली
बाँधो न इसे,बँध जाओ
बँधकर के सँभल जाओ

गिर गये उठ न पाओगे
अपनों से ही लजाओगे
दहलीज पे खड़ी इस उम्र को
जाने न दो दरवाजे से

जो चली गई दरवाजे से
फिर चौखट भी शर्माएगी…..

Language: Hindi
270 Views
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