बुढ़ापा
तजुर्बे का अगर अद्भुत संजोग है बुढ़ापा
तो समझिए जीवन का एक रोग भी है बुढ़ापा
इस समय में इंसान बेबसी के दौर से इस कदर गुजरता है ।
जवानी सा जोर नहीं रहता , दर्द की मौत से डरता है।
अपनी आदतों से इस वक़्त में अपनों से दूरियां बनवा देता है ।
बुढ़ापा वक्त ही ऐसा है दोस्त, जो खुद को खुद से भी कई बार गिरा देता है।
इस कदर हो जवानी में हमारा सफर
रहे न कोई उपलब्धियों की बुढ़ापे तक कसर
किस्से सुनाकर समझाएं अगली पीढ़ी को
आदर्श मानें हमें वो पहुंचाने वाली अगली सीढ़ी को
जवानी में सँजोये खुद को जुनून से इस कदर
बुढ़ापे में न रहें हमारी हड्डी किसी पर निर्भर
खुद को इस कदर हम उस समय सम्भाल लें
कुछ मन की कह दें और कुछ यूँ हीं टाल दें
स्वभाव को रखना होगा कुछ इस कदर लचीला।
क्या पता कब गुजर जाए उस मुसाफिर का जीवन मेला।
बने सहारा किसी का किसी न किसी रूप में
करें कर्म जिंदादिली से, छांव हो चाहे धूप में
जवानी में हमसे ऐसे कर्म करवाये विधाता
सभी का अच्छे एवम शांति से कट जाए बुढ़ापा।
कृष्ण मलिक अम्बाला ©® 04.09.2022