बुझदिल
तुम भूल गये हो बालाकोट, भूल गये विजय कारगिल
उलझ गये मजहब व्यूह में , काम तुम्हारे हैं बुझदिल
तुमने कुछ नवयुवको को झांसा देकर, झूठा ख्वाब दिखाया है
इन सिंह शावको को तुमने फिर , कायर फायर कर जगाया है
याद करो लाहौर को जीता, कभी रावल पिंडी तुम्हें दान किया
तुमने रियासी में भक्तों पर वार किया, अब परिणाम को झेलो फिर
उलझ गये मजहब व्यूह में……..
तुमने इस्लाम बदनाम किया, जग त्रस्त तुम्हारे कर्मों से
स्त्री शिक्षा सबकुछ भूले तुम , अंधे हो अंधे ही धर्मों से
भूले शायरी मोहब्बत की नफरत के बीज ही बोये हैं
तुम भी इस मिटटी से पैदा, क्यों मरते हो यूँ तिल तिल
उलझ गये मजहब व्यूह में……..
यदि आ गए हम अपनी पर तो, करांची भी तुम छोड़ोगे
जाओगे कहाँ तक आतंकी, इस्लामाबाद को तोड़ोगे
सारी दुनियां अब जान चुकी, भारत के वीर जवानों को
साहस है तो सामने आओ क्यों बन जाते तब बुझदिल
उलझ गये मजहब व्यूह में……..
कुछ शब्द मेरे हम वतन सिख कौम के भटके हुए युवाओं से
तुम बंगा बहादुर मति दास , हिन्दू की ही संताने हो
कुछ स्वार्थी नेताओ की , क्यों बनी हुई कृपाणें हो
जागो धर्म देश की खातिर क्यों शत्रु चाल में उलझे हो
गुरु परम्परा को भूले क्यों, रहते हो चूहे के बिल
उलझ गये मजहब व्यूह में……..
याद करों किसके कारण, एक संत आतंकी बन बैठा
एक कुर्सी की खातिर कैसे , पथ अपना भ्रष्ट करा बैठा
तुम साहिब जादों की क़ुरबानी भूल गये क्यों आखिर
याद करों गये कैसे दीवारों में गये थे बांकुरे वो चिन चिन
उलझ गये मजहब व्यूह में……..
तुम वीर भूमि सिपहसलार, इस्लाम की समझो तुम तलवार
अफगान से तुम को भगाया है , दिया नहीं कोई अधिकार
याद करो सन सैतालिस में, रेलों में तुमने क्या पाया था
तुम हिन्दू के मूल धर्म हो कैसे समझ न आये फिर .
तुम उलझ गये चक्रव्यूह में , काम तुम्हारे हैं बुझदिल
दारासिंह मिल्खा से सरीखे, तुम कभी सरताज रहे
बिट्टा सिंह, के.पी. सिंह, तुम अमृता के गीत कहे
आज फिर से वही गलती अमृतपाल जिताया है
अपने ही रक्त में तुमने रक्त विदेशी मिलाया फिर
तुम उलझ गये चक्रव्यूह में , काम तुम्हारे हैं बुझदिल
तुम भूल गये हो बालाकोट, भूल गये विजय कारगिल
तुम उलझ गये चक्रव्यूह में , काम तुम्हारे हैं बुझदिल