बुजुर्ग कहीं नहीं जाते …( पितृ पक्ष अमावस्या विशेष )
घर के बुजुर्ग कहीं नहीं जाते ,
उनका बस जिस्म खत्म होता है ।
मगर आत्मिक रूप से रह जाते ,
अभिलाषाओं में उनका निवास होता है ।
घर की दरो दीवार पर हैं होते ,
उनकी हाथों और उंगलियों का निशान होता है ।
यह घर जो कभी उनका आवास था,
अब उनकी यादों का बसेरा होता है ।
अपनी संतान को अपनी थाती के साथ साथ आशीष और दुयायें ,संस्कार ,आदर्श ,
इत्यादि का खजाना हैं सौंपते ।
महसूस करो तो उनका एहसास छुएगा,
कभी आहों में कभी आंसुओं में ,
याद उनकी जब जब आएगी ।
और प्रेरणा ,ताकत ,शिक्षा ,अपने अनुभव ,यह तमाम चीजें राह दिखाएंगी,
मुश्किल वक्त में हर घड़ी ।
वास्तव में घर के बुजुर्ग कहीं नहीं जाते ,
वो रह जाते हैं अपने परिवार के बीच ,
कभी किसी भाई की सूरत में पिता ,
कभी बहन की मूरत में मां ।
कभी आवाज़ में ,कभी अंदाज में ,
आदतों में,विचारों और भावनाओं में।
अक्सर मिल जाया करते हैं।
छोड़कर अपने दुनिया के झमेले,
इकठ्ठे बैठकर देखो !परिवार जानो !
तुम्हारे बड़े बुजुर्ग कहीं नहीं गए ,
वो तुम्हें प्रति पल है निहारते ।
और प्रसन्न होकर दुयाऐं हैं देते ।
बुजुर्ग कहीं नहीं जाते ।
वो हमारे बीच ही होते हैं ।