*बुखार ही तो है (हास्य व्यंग्य)*
बुखार ही तो है (हास्य व्यंग्य)
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पिछले पचास वर्ष में बुखार के अनेक प्रकार प्रचलन में आ गए हैं। कुछ बुखार के प्रकार तो नाम से ही इतने भयंकर जान पड़ते हैं कि सुनकर डर लगने लगता है। लेकिन फिर भी कुल मिलाकर बुखार को कोई गंभीरता से नहीं लेता।
एक बार एक सज्जन से हमने कहा -“हमें बुखार आ गया है।”
सुनते ही उन सज्जन ने बहुत सामान्य भाव से उत्तर दिया-” बुखार हमें भी आया था। पॉंच -छह दिन में ठीक हो गया। आता रहता है। ठीक होता रहता है। बुखार को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।”
हमने कहा “हमारा बुखार वह वाला बुखार नहीं है, जो सबको आता है।”
वह बोले “बुखार कोई भी हो, उसकी प्रजाति तो बुखार ही रहेगी। ऐसा या वैसा चाहे हो जैसा, लेकिन बुखार को बुखार ही कहा जाएगा।”
जिसको बुखार आता है, वह अपने बुखार को सबसे अलग मानते हुए सबको समझाना चाहता है। लेकिन असमर्थ रहता है। हॉं, जब विशेष प्रकार के बुखार वाले दस-बीस लोग किसी पार्क में जमा होते हैं; तब वह एक दूसरे की मनोदशा को सही प्रकार से समझ पाते हैं। एक जना कहता है कि उसके बुखार को डेढ़ महीना हो गया। दूसरा कहता है दो महीने हो गए। अभी तक जोड़ों में दर्द है। घुटने दुखते हैं, पैरों में सूजन है, कंधे जकड़े हुए हैं। पूरा शरीर कष्ट देता है। तब जाकर समान अनुभूति के आधार पर वे दस-बीस लोग एक दूसरे के बुखार को सही प्रकार समझ पाते हैं और उनकी सहानुभूति एक दूसरे के प्रति उत्पन्न हो पाती है। वह आपस में चर्चा करते हैं कि बुखार जानलेवा था। बस भगवान की कृपा से बच गए। उनकी अनुभूति को केवल उनके प्रकार के बुखार वाले लोग ही समझ पाते हैं।
बाकी दुनिया बुखार के महत्व को क्या जाने ! उसे तो हृदय आघात, मस्तिष्क आघात और डायलिसिस की दुनिया से बाहर निकल कर किसी बड़ी बीमारी को जॉंचने-परखने की फुर्सत ही कहां मिली है ! हम भले ही कहें कि हमारे बुखार का प्रकार कुछ अलग है, लेकिन वह यही कहते हैं कि गंभीर रोगों की जो श्रेणी होती है, उसमें आपका बुखार कभी भी शामिल नहीं किया जा सकता। अतः आपको गंभीरता से कोई कैसे ले सकता है ?
जिसको विशेष प्रकार का बुखार आता है, वह बेचारा चकनाचूर हो जाता है लेकिन फिर भी दुनिया तो यही कहती है:- “चलो कोई बात नहीं, बुखार ही तो आया है”
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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