Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Aug 2021 · 5 min read

बुंदेली लघुकथा कानात- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

बुंदेली लघुकथा(कानात)-
-कमरा डार कै सोंजिया भऔ-
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी”

जा कानात बुन्देलखण्ड में भौत सुनी जात है। का भओं कै एक दार एक गाँव में एक व्यापारी के मूंड में नई बात सूजी कै अब धंधे में जौन आमदनी होत है वा अब कम परन लगी हैं सो काय न कछु जमीं मौल लेके ऊमें खेती करी जाये। सो ऊने कछु जमीं मोल ले लइ और उमें सिंचाई के लाने एक कुआँ सोउ खुदवा डारो पै अगाउ हल बखर अरु रहट आदि के लाने पइसा टका लगावे से कतरा रऔतौ उने सोसी के कउ ऐसा न होय के हमाइ सबरी जमा पूंजी एइमें चली जाय और हम ठनठनगोपाल रैय जाय।
सौ व्यापारी ने अपनी अक्कल लगाई और गाँव के एक बाढ़ई खौं पुटयाकें तैयार कर लब, कै वो हल बखर और रहट बनाके देहे। पइसा अरु माल व्यापारी लगाहे और काम वो बाढ़ई करहे। बदले में जब फसल हुइए तौ दोइ जने आदी-आदी बाँट लेवी। मौ जवानी समजोता दोउ जने में हो गऔ। ई तरां से वे दोउ जने अब सौंजिया हो गये।
कुआँ में रहट लगावे कौ काम शुरू भऔ। व्यापारी बढ़ई के ऐंगरे माल ल्यात जात और बाढ़ई रहट बनात गऔं जब रहट बनकै कुआँ में लग गयी तो व्यापारी जौन माल ल्यात -ल्यात भौत परेशान होन लगो तो बाढई से कन लगों कै और कछु तो नइ लगने हम हैंरान हो गए माल ल्यात-ल्यात।
बाढई सोउ कम बदमाश नइ हतो सो उनै झट्टई टुइयाँ सी मुँइयाँ बनाने कइ-अरे लाला जू अबै तो इतैं एक सौ एक लकइयाँ और लगने है।
जा सुनके व्यापारी घबरा गऔ और सौंजिया छोड़के अपने घरे भग आऔ। लकइयाँ जरूर एक सौ एक लगने हती पै तनक-तनक सी चाउने हती जौन रहट के माल के बीचा लगाई जात है। उमें जादा खरच नइ आत है। सो बाढई ने एकई दिना में सबरी लकइयाँ ल्या कें माल में जोर दई और रहट चालू कर लऔ। इ तरां से उने खेती करवौ शुरू कर दऔ।
कछु दिना बाद उत्सुकतावश उ व्यापारी ने एक दिना खेत में जा के देखवे कि सोसी कै देखे के उ बाढई ने अकेले कैसे और का काम करो है।
व्यापारी खेत में पौचों तो रहट चालू हतो और ऊसें सिंचाई हो रइती। जा देख उने बाढई से पूछौ- काय रे! का लगी तोई एक सौ एक लकइयाँ ?
बाढ़इ्र्र उये कुआँ पै ले गऔ और चलत भयी रहट में लगी सबरी घरिया (कडियाँ) गिना दई। व्यापारी ने जो देखों सो उनै अपनो सिर पीट लऔ। वो समज गऔ कै बाढई ने उए मूरख बना दऔ। उय सबक सिखावे की तरकीब रात भर सोसत रऔ।
भुसरां सें चार-पाँच दोस्तन खौ को खेत में घुमावै के बहाने से खेत में लुबा ल्याव। बाढई रहट से खेत में सिंचाई कर रटो हतो। सो सब जनन खौं लेके व्यापरी उतई पौच गऔ। आपस में रामा-श्यामा भई फिर व्यापारी ने अनजान बनत भये बाढई से जा पूंछी कै दादा नैंचे इन घरियन में पानू कौ भरत है?
बाढई समज गऔ कै दार में कछु कारो है। जौ व्यापारी अपनी छोड़ी भई सौंजियाई फिर से साबित करवौ चाय रओ है। सो उ बाढई ने सोसी कै जो फिर से इतै खेत पै नइ आय इसैं ऊने ऐन गुस्से में तमतनात भए तान के कै दई कै तुमाव बाप।
उत्तर सुनकै व्यापारी सोउ गुस्से में लाल हौ गऔ पै गम्म खाकै रय गऔं के जादा ताव पकरवे से काम बिगर सकत है। सो उनै अपने गुस्से को दबा कें बडी विनम्रता से फिरकें पूछ धरो- तो दादा, उनकौ तो तरे ऐनइ जाड़ों लगत हुइए?
अब इतै बाढई खौं ऐन ताव आ गऔं खींज कै कन लगो तो तुम दे दो अपनो कमरा (कंबल),यदि बाप को इतैक दरद है तो।
व्यापारी ने अपने संगे आय दोस्तन को साक्षी बनात भए कुआँ में कमरा डार दऔ। फिर लौट के घरे आ गऔ।
इतै बाढई ने जो देखो। कै व्यापारी अब खेत के लिंगा आतई नइयाँ सो वो हाल फूल के ऐन मन लगाकें खेती बाडी करन लगो। ऐन मेहन करी। फसल भी नोनी भई। बाढई ने मनइ मन में सोसी कै चलो अब तौ जा सबरी फसल मोय अकेलइ मिल्हें कोउ सौंजिया नइयाँ।
उतै व्यापारी भी मसके-मसके खेत की सबरी खबर लेत रऔ। इ तरां से दिन बीतत रय। फसल पककै कटवे खों तैयार हो गयी तो बाढई ने नोनों सो महुरत देख कै फसल काटवे कि तैयारी कर लई। इतै व्यापारी ने सोउ अपनी तैयारी कर लइती।
बाढई निडर होके जिदना फसल कटने हती अपने मोड़ा अरु चार मजूर को संगे लेके खेत पे पौच गऔ। बाढई ने फसल काटवौं शुरू करोई हतो कैं ऊनै देखों कै व्यापारी अपने संगे चार-छै दोस्तन खौं ल्याके खेत में घुसत जा रऔ। देखतनइ बाढई की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई, जाडे में भी पसीना चुचान लगौ।
व्यापारी बाढई के ऐंगरे आऔ और ताव से कन लगो दादा हमाऔ हैसें यादई है कै बिसर गये और अकेले-अकेले सबरी फसल हडपबे कि तैयारी कर लयी। ल्याब हमाऔ आदो हैसा।
बाढई इतैक देर में तनक सबर गऔ हतो सो झट्टइ से ताव खाके कन लगो कै- की बात कौ हैसा, माँग रय हो? सौंजिया छोड़ के तो तू पैलाइ सें भाग गयते।
व्यापारी ने हरां सें दोस्तन की तरफ हेर के कइ- काय भाइयाँ, आप लोगन को तो पतोइ है कै हमाऔ बाप हतै घरियन में पानू भरौ करत तौ। मैंने आप लोगन के सामने उने जाड़े सें बचवे के लाने अपनौ कमरा दऔ हतो कै नइ?
सबइ जनन ने व्यापारी की बात की हामी भर दई अरु व्यापारी को पक्ष लऔ। पंचायत बैठी सो पंचन के सामने बाढई की सबरी पोल खुल गई और उये फसल कौ आदो हैसा व्यापरी खौं देने परो।
तबइ से जा कानात चलन लगी कै ‘कमरा डार कै सौंजिया भऔ’’।
—0000—
शिक्षा– एई से कइ जात है कै बुरे काम कौ बुरौं नतीजा होत है, बेईमानी नइ करवो चइए। बुरे आदमी को शांत होकेइ निपटो जा सकत है।
—-0000—-
-राजीव नामदेव _राना लिधौरी’
संपादक-“आकांक्षा” पत्रिका,
एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
अध्यक्षः- म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़(सन् 2002 से)
अध्यक्षः- वनमाली सृजन केन्द्र, टीकमगढ़
पूर्व महामंत्रीः-बुन्देली साहित्य एवं संस्कृति परिषद टीकमगढ़
पताः- नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालौनी,कुंवरपुरा रोड,टीकमगढ़ (म.प्र.) पिनः472001 भारत
मोेबाइलः-09893520965
E-mail- ranalidhori@gmail.com Blog- rajeevranalidhori.blogspot.com
Facebook- rajeev namdeo rana lidhori

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 838 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
View all
You may also like:
शालिग्राम तुलसी कहलाई हूँ
शालिग्राम तुलसी कहलाई हूँ
Pratibha Pandey
केशव तेरी दरश निहारी ,मन मयूरा बन नाचे
केशव तेरी दरश निहारी ,मन मयूरा बन नाचे
पं अंजू पांडेय अश्रु
कामवासना
कामवासना
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
Love Night
Love Night
Bidyadhar Mantry
जैसी बदनामी तूने मेरी की
जैसी बदनामी तूने मेरी की
gurudeenverma198
ईश्वर का प्रेम उपहार , वह है परिवार
ईश्वर का प्रेम उपहार , वह है परिवार
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
2912.*पूर्णिका*
2912.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
एक राखी बाँधना स्वयं की कलाई में
एक राखी बाँधना स्वयं की कलाई में
Saraswati Bajpai
माँ
माँ
Raju Gajbhiye
रागी के दोहे
रागी के दोहे
राधेश्याम "रागी"
कमियाँ तो मुझमें बहुत है,
कमियाँ तो मुझमें बहुत है,
पूर्वार्थ
घर की गृहलक्ष्मी जो गृहणी होती है,
घर की गृहलक्ष्मी जो गृहणी होती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अनुराग
अनुराग
Bodhisatva kastooriya
" जख्म "
Dr. Kishan tandon kranti
नींद कि नजर
नींद कि नजर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
...
...
*प्रणय*
Acrostic Poem
Acrostic Poem
jayanth kaweeshwar
बहती नदी का करिश्मा देखो,
बहती नदी का करिश्मा देखो,
Buddha Prakash
* वर्षा ऋतु *
* वर्षा ऋतु *
surenderpal vaidya
शैव्या की सुनो पुकार🙏
शैव्या की सुनो पुकार🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
भाग्य मे जो नहीं होता है उसके लिए आप कितना भी कोशिश कर लो वो
भाग्य मे जो नहीं होता है उसके लिए आप कितना भी कोशिश कर लो वो
रुपेश कुमार
*भारत माता को नमन, अभिनंदन शत बार (कुंडलिया)*
*भारत माता को नमन, अभिनंदन शत बार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
वो रूठ कर हमसे यूं चल दिए आज....!!!
वो रूठ कर हमसे यूं चल दिए आज....!!!
AVINASH (Avi...) MEHRA
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
राम का न्याय
राम का न्याय
Shashi Mahajan
अधमी अंधकार ....
अधमी अंधकार ....
sushil sarna
ज़िंदगी मेरी दर्द की सुनामी बनकर उभरी है
ज़िंदगी मेरी दर्द की सुनामी बनकर उभरी है
Bhupendra Rawat
दिल में एहसास भर नहीं पाये ।
दिल में एहसास भर नहीं पाये ।
Dr fauzia Naseem shad
रिश्तो को कायम रखना चाहते हो
रिश्तो को कायम रखना चाहते हो
Harminder Kaur
अव्यक्त प्रेम (कविता)
अव्यक्त प्रेम (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
Loading...