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22 Aug 2021 · 1 min read

“बीते सावन”

बीते सावन (मुक्तक)
°°°°°°°°°′°°°°°°°°°

बीते सावन , हरबार ‘राखी’ से।
रवि ढले, घर लौटते ‘पाखी’ से।
नियम निराला है ये ‘सांसारिक’,
जीतता न जंग कोई ‘साखी’ से।
________________________

….✍️पंकज “कर्ण”
……….कटिहार।।

Language: Hindi
3 Likes · 904 Views
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