“बीते सावन”
बीते सावन (मुक्तक)
°°°°°°°°°′°°°°°°°°°
बीते सावन , हरबार ‘राखी’ से।
रवि ढले, घर लौटते ‘पाखी’ से।
नियम निराला है ये ‘सांसारिक’,
जीतता न जंग कोई ‘साखी’ से।
________________________
….✍️पंकज “कर्ण”
……….कटिहार।।
बीते सावन (मुक्तक)
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बीते सावन , हरबार ‘राखी’ से।
रवि ढले, घर लौटते ‘पाखी’ से।
नियम निराला है ये ‘सांसारिक’,
जीतता न जंग कोई ‘साखी’ से।
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….✍️पंकज “कर्ण”
……….कटिहार।।