बीते दिनों से संवाद कर रही हूँ…!!!!
आज फिर …
बीते दिनों से संवाद कर रही हूंँ।
मिले तुमसे कभी…
एक ये आशा इज़ाद कर रही हूँ।
तुमसे बंधकर…
खुद को खुद से ही आज़ाद कर रही हूँ।
फिर-
दिल के शहर को …
तेरी यादों से आबाद कर रही हूँ।
जो चेहरा मुस्कुराता था,
आंखों के सामने तेरे…
कि तेरी जुदाई से फर्क नहीं पड़ता,
नम आँखें तेरे जाने के बाद कर रही हूं।
एक द्वंद रहा दिल में-
इन यादों में जी रही हूँ…
या वक़्त बर्बाद कर रही हूँ।
मैं मुंतज़िर-
आयत पढ़कर आज भी…
तेरी खैरियात की रब से फ़रियाद कर रही हूँ।
आज फिर …
बीते दिनों से संवाद कर रही हूँ…!!!!!
-ज्योति खारी