निज कर्तव्य निभाना है
बीज बोया तंतु निकले,
कोपलों के बीच से,
लघु लतिका में वृद्धि जगाई,
अमृत जल ने सींच के,
लगा समीर सरकने सर सर,
मन में नव उल्लास लिए,
खड़ी रश्मियाँ आगन्तुक हित,
स्वागत की सौगात लिए,
झरने बहते झर झर, झर झर,
बागों में कोयल बोली,
पाकर झलक, प्रेम की प्रसून ने,
अलसाई ऑंखें खोलीं,
प्रकृति हंसने लगी, महकने –
लगा, धरा का घर ऑंगन,
कोमल कलिका के अन्तर से,
खिला ‘सुमन’ एक मन-भावन,
किन्तु उसे था ज्ञात कि इक दिन,
खिलते खिलते मुर्झाना है,
लेकिन तब तक जीवन पथ पर,
निज कर्तव्य निभाना है ।
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