“बीच सभा, द्रौपदी पुकारे”
बीच सभा, द्रौपदी पुकारे,
हे गिरधर! तुम कहां पधारे ?
है समर्पित सब हाथ तुम्हारे,
तुम बिन संकट कौन उबारे?
दुष्ट दु:शासन खींच रहा चीर ,
बेबस अबला तन हारे!
लाज बचालो, हे कन्हैया!
कर जोड़, अर्द्धनग्न खड़ी,
हर लो प्राण तन से मेरे,
या संकट से मुझे उबारें।
द्रोणाचार्य,भीष्म पितामह,
सभा मध्य हुए पराए ,
आज पूर्ण करो वचन को अपने,
कहीं द्रौपदी न जाए परलोक सिधारे।
बड़ा उपकार है, प्रभु मुझपर,
रख ली तन की लाज हमारे,
कर न सका निर्वस्त्र दुर्योधन,
क्षण में चूर हुए अहंकार सारे।
बीच सभा, द्रौपदी पुकारे,
हे गिरधर! तुम कहां पधारे ?
राकेश चौरसिया