Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Mar 2023 · 3 min read

बींसवीं गाँठ

यह उपन्यास राजेश वर्मा जी द्वारा लिखित है जिसकी पृष्टभूमि बौद्धकालीन संगीति और एक पति का पत्नी के प्रति प्रेम को दर्शाता हुआ एक ऐसा उपन्यास है जो बौद्धकालीन समाज के बारे में दर्शाता है।

इस उपन्यास का कथानक अंग देश के चम्पा के एक ग्राम के रहने वाले शिव का अपने पत्नी के प्रति प्रेम और बौद्ध भिक्खु बनने के बीच में जो मन में प्रश्न उठते है जिसके भँवर में उपन्यास के आखिरी हिस्से में ही बाहर आ पाता है। इसको पढ़ते हुए आपको लेखक अपनी लेखनी से बौद्धकालीन समाज में लेकर जाने में सफल होते है और आपको लगने लगता है कि आप भी उपन्यास के मुख्य पात्र शिव के साथ साथ चलते हुए चम्पा से चलते हुए बौद्ध संगीति के लिए वैशाली पहुँचते है और फिर वापस भी आते है। शिव एक ऐसा पात्र है जो अपनी पत्नी से बीस दिन के लिए बीस गाँठ के रूप में पत्नी को दिए अपने वचन को पूरा करने के लिए पूर्णतः समर्पित दिखता है। लेकिन उस समय की सामाजिक परिस्थिति जो एक आम इंसान को उस सामाजिक ढाँचे से बाहर निकलने को उद्देलित करता है कि कैसे वह इस सामाजिक बंधनो में जो भेदभाव है उससे निकलने को छटपटाता है यह दर्शाती है। इसी उहापोह की स्थिति से निकलने के लिए शिव बौद्ध भिक्खु होने का रास्ता चुनता है जहाँ किसी भी प्रकार का ना कोई सामाजिक बंधन है ना ही किसी प्रकार का अवांछित बंधन। इसी छटफटाहट से निकलने के लिए वह बौद्ध भिक्खु तो बन जाता है लेकिन उसका अपने पत्नी के प्रति प्रेम से वह बाहर नही निकल पाता है। जबतक आप किसी धर्म में है आपको किसी ना किसी प्रकार का ऐसा बंधन बाँधे रखता है जो है ही नही लेकिन कभी कभी आपको लगता है कि यह कैसा बंधन है जो ना चाहते हुए भी मानना पड़ता है और उसके मुताबिक चलना पड़ता है। मुझे लगता है यह उपन्यास कहानी के मुख्य पात्र शिव के अंदर भी इसी छटफटाहट का नतीजा है जिससे वह बाहर निकलना चाहता है।

वह उसी सामाजिक बंधन से निकलने के लिए रास्ते के बारे में सोचता है और इसके लिए पूरा प्रयास भी करता है लेकिन वह भिक्खु बनने के बाद भी एक सामाजिक बंधन जो उसका अपने पत्नी के प्रति है उससे नही निकल पा रहा है। और यह स्वाभाविक भी है की आप जिस समाज के साथ जीते है उसके आस पास बहुत सारी सामाजिक परिस्थितियाँ आपको अपने अंदर समाए रहती है। आप उससे बमुश्किल निकल पाते है।

लेखक का कहानी के प्रति बंधन यह बताता है कि एक सटीक कथानक कितनी ही पुरानी पृष्टभूमि हो लेकिन कहानी पाठकों को जोड़ने में सफल हो पाती है। एक साहित्य प्रेमी होने के नाते यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी बहुत ही सुंदर और सुव्यवस्थित तरीके से संजोया गया है जो आपको उस समयकाल के बारे में बहुत सी ऐसी बातों से अवगत कराता है जिसको जानने के लिए आपको इतिहास की किताबों को खंगालना पड़ता है।

एक बार फिर से लेखक महोदय का धन्यवाद।
©✍️ शशि धर कुमार
https://shashidharkumar.blogspot.com/2023/02/beeshween-gaanth.html

345 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shashi Dhar Kumar
View all
You may also like:
अपने ही घर से बेघर हो रहे है।
अपने ही घर से बेघर हो रहे है।
Taj Mohammad
जब प्रेम की अनुभूति होने लगे तब आप समझ जाना की आप सफलता के त
जब प्रेम की अनुभूति होने लगे तब आप समझ जाना की आप सफलता के त
Ravikesh Jha
कैसे?
कैसे?
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
रक्षा बंधन
रक्षा बंधन
Shyam Sundar Subramanian
तमन्ना है बस तुझको देखूॅं
तमन्ना है बस तुझको देखूॅं
Monika Arora
चुगलखोरों और जासूसो की सभा में गूंगे बना रहना ही बुद्धिमत्ता
चुगलखोरों और जासूसो की सभा में गूंगे बना रहना ही बुद्धिमत्ता
Rj Anand Prajapati
नहीं है प्रेम जीवन में
नहीं है प्रेम जीवन में
आनंद प्रवीण
खैर जाने दो छोड़ो ज़िक्र मौहब्बत का,
खैर जाने दो छोड़ो ज़िक्र मौहब्बत का,
शेखर सिंह
मेरी खुशी हमेसा भटकती रही
मेरी खुशी हमेसा भटकती रही
Ranjeet kumar patre
प्यासा के हुनर
प्यासा के हुनर
Vijay kumar Pandey
वायु प्रदूषण रहित बनाओ।
वायु प्रदूषण रहित बनाओ।
Buddha Prakash
শিবের গান
শিবের গান
Arghyadeep Chakraborty
हिन्दी दोहा बिषय-जगत
हिन्दी दोहा बिषय-जगत
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
सफल हस्ती
सफल हस्ती
Praveen Sain
2848.*पूर्णिका*
2848.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
निगाहें प्यार की ऊंची हैं सब दुवाओं से,
निगाहें प्यार की ऊंची हैं सब दुवाओं से,
TAMANNA BILASPURI
🙅नया फ़ार्मूला🙅
🙅नया फ़ार्मूला🙅
*प्रणय*
Success Story-1
Success Story-1
Piyush Goel
We are sky birds
We are sky birds
VINOD CHAUHAN
मित्र दिवस पर आपको, सादर मेरा प्रणाम 🙏
मित्र दिवस पर आपको, सादर मेरा प्रणाम 🙏
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"ये ग़ज़ल"
Dr. Kishan tandon kranti
"जो इंसान कहलाने लायक नहीं,
पूर्वार्थ
किरणों की मन्नतें ‘
किरणों की मन्नतें ‘
Kshma Urmila
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
वो जो मुझसे यूं रूठ गई है,
वो जो मुझसे यूं रूठ गई है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मैं अगर आग में चूल्हे की यूँ जल सकती हूँ
मैं अगर आग में चूल्हे की यूँ जल सकती हूँ
Shweta Soni
दोहा त्रयी. . .
दोहा त्रयी. . .
sushil sarna
काश तुम ये जान पाते...
काश तुम ये जान पाते...
डॉ.सीमा अग्रवाल
*मधुमास में मृदु हास ही से, सब सुवासित जग करें (गीत)*
*मधुमास में मृदु हास ही से, सब सुवासित जग करें (गीत)*
Ravi Prakash
Loading...