Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Oct 2024 · 9 min read

बिहार से इस युवा-कलम से परिचय कीजिये / मुसाफिर बैठा

कई ध्यान खींचने एवं प्रभावित करने वाले व्यक्तियों की तरह विभाश मुझे पहली बार सोशल मीडिया, फेसबुक पर ही मिले। यहाँ हमारे जुड़ाव का संघनन बढ़ता गया और हमने पाया कि हम लगभग एक ही वैचारिक-सामाजिक घरातल पर अवस्थित हैं। हमारे संबंधों को और नजदीक आने का अवसर तब मिला जब मैंने और ड० कर्मानन्द आर्य ने बिहार-झारखंड के 56 दलित कवियों की प्रतिनिधि रचनाओं के एक संकलन के संपादन का सम्मिलित काम अपने हाथों में लिया। अब वह पुस्तक प्रकाशित है और विभाश उसके एक अलग से रेखांकित करने योग्य कवियों में से हैं।

बिभाश की कविताओं से भी मेरी पहली मुलाकात फेसबुक पर ही हुई थी। विभाश युवा हैं और समाज के एक जिम्मेदार नागरिक और रचनाकार के बतौर अपनी भूमिका अदा करने की उनकी तत्परता और बेचैनी साफ दिखती है। और, इसको वे अपने समय-समाज को कविताओं के जरिए बखूबी अभिव्यक्त कर साबित करते हैं।

बिभाश का यह पहला काव्य संग्रह है। बजरिये यह पुस्तक आपको पूत के पाँव पालने में ही दिख जाएंगे! संग्रह में तकरीबन सात दर्जन कविताएँ हैं जो कवि की सोच, समझ एवं चिंतन के व्यापक दायरे व संजीदगी का पता देती हैं। समाज से कवि के साक्षात्कार के विविध रंग यहाँ मौजूद हैं। कवि की मुख्य-मुख्य समाज-चिंताओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित करें तो दलित एवं स्त्री समाज प्रमुखता पाते हैं। तीसरी भावना जो संग्रह में महत्व पाती है वह है प्यार प्रेम का निदर्शन। दलित एवं प्रेम विषयक कविताएँ जहाँ कवि के जीवन-साचा के प्राण तत्व सरीखे संग्रह की कविताओं से गुजरते हुए बात करें तो महत्वपूर्ण कविताओं में से एक ‘पुरुष और किन्नर’ है जिसके माध्यम से समाज से अलग-थलग से रहने को बाध्य किन्नर समाज के प्रति पुरुषों की हेय एवं उपहासात्मक दृष्टि एवं किन्नरों के चोटिल मनोभावों का सशक्त अंकन है। समाज की विचित्र स्थिति है, मनुष्य देह में सामान्य से अलग अस्वाभाविक, विरूपित उपस्थिति को लोग घृणा, उपेक्षा एवं हास्य-व्यंग्य का पात्र बना डालते हैं। कवि इसी नब्ज पर हाथ धरते हुए वंचितों, शोषितों, दलितों, उपेक्षितों एवं समाज में हाशिये पर रहने को मजबूर तबकों के प्रति अपनी चिंता व संलग्नता को नत्थी करता चलता है। हालांकि कुछ किन्नर अब समाज में जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाकर सम्मान और सहज अधिकारपूर्ण भूमिका भी अर्जित कर पा रहे हैं और इन अथों में उन्हें सामाजिक ग्राह्यता भी मिल रही है। यह उनके खुद के ‘एसर्ट’ करने एवं जनमानस में किन्नरों के प्रति सोच में किंचित सकारात्मक बदलाव के कारण संभव हुआ है। इसी तरह से, ‘साबुत बालिका देह’ कविता नाबालिग एवं युवा स्त्री देह को सेक्स लोलुप पुरुषों द्वारा नोचे जाने की बर्बरता की निशानदेही करती चलती है और भुक्तभोगी के दलितत्व पर आकर अपना कारुणिक अंत लेती है। ‘अजन्मा बेटी के प्रति’ में कन्या भ्रूण हत्या में (पुरुष) दुनिया के साथ पिता के होने को अवश माँ का अजन्मा बेटी से संबोधित होना एक मर्मस्पर्शी दृश्यावली तैयार करता है। यह अन्य रिश्ते-नातों को लेकर संग्रह में सम्मिलित अन्य कविताएँ शब्द प्रयोग के मामले में भी सहज, सरल और नजाकत लिए हुए हैं। जबकि विचार और दर्शन को समेटती कविताओं में किंचित जटिल शब्दांकन है।

‘पुलिस एक इतर प्राणी’ कविता भी विशिष्ट भावबोध की कविता है। विभाश बिहार पुलिस सेवा में अधिकारी हैं। पुलिस महकमे के अंदर उनके रहने एवं पारखी व्यक्ति रहने के चलते ही इस कविता का लिखा जाना सम्भव हो सका है। लोगों की नजर में पुलिस का जो समर्पण और श्रम-सीकर अभीष्ट मान-महत्व नहीं पा पाता, पुलिस की जो नकारात्मक छवि स्थिर है, उसकी टीस यहाँ कवि ने अभिव्यक्त की है और, एक तरह से पुलिस की भूमिका को उसकी इसी कठिनाइयों के सापेक्ष थोड़ी सावधानी एवं मुरौवत से देखने की पैरवी की है। हालांकि लोग भी क्या करे, जब पुलिस की कर्तव्यपरायणता प्रैक्टिकली सार्वभौम नहीं, आपवादिक ही दिखे !

संकलन की ‘प्रेम प्रसंग में भागी हुई लड़कियाँ’ शीर्षक कविता हमारे समय के शीर्ष हिंदी कवियों में से एक आलोकधन्वा की एक मशहूर कविता ‘भागी हुई लड़कियों’ का बरबस ध्यान कराती है। जहाँ आलोकधन्वा अपनी कविता में लड़कियों के भागने के वितान को प्रेम के बाहर भी खींच ले जाते हैं वहीं बिभाश की यह कविता प्रेम प्रसंग मात्र पर ठहरी तो रहती है मगर, आज के समय में लड़कियों के प्रेम में भागने जैसे न-अपरिचित प्रसंग पर अनेक अछूते शेड्स एवं अनूठी व्यंजनाओं के साथ की इसकी निर्मिति चमत्कृत करती हुई इसे बड़े फलक की रचना साबित करती है। भागती हुई लड़कियों की बदौलत जड़ सामाजिक बंधन तो टूटते ही हैं, कानून-व्यवस्था भी कई बार टूटने को बाध्य होती है इन मजबूत लड़कियों को परंपराओं की हद में बांधने की कोशिश में। यह साधारण कथन नहीं है, बल्कि शानदार कथन है, मानीखेज बयान है। कवि संकेतित करता है कि कानून-व्यवस्था कई बार दकियानूस सोच के सामाजिक दबावों के आगे झुक जाती है। पुलिस तंत्र से बावस्ता अथवा उसका हिस्सा बना कवि ही यह सूक्ष्म व अलबेला अकेला ऑब्जर्वेशन रख सकता है “भागी हुई लड़कियाँ भारतीय दंड विधान में करती हैं सेंधमारी/दर्ज प्राथमिकी में लगाई जाती हैं धाराएँ अपहरण की और बरामदगी पर उसके 164 का बयान कर देता धराशायी/मानवीय मूल्यों का, प्रेम के आदशों का”। नए भावबोध, अछूते प्रयोग एवं ताजे शिल्प की बानगी कविता की कुछ अगली पंक्तियां भी कुछ इस तरह देती हैं

“वर्णव्यवस्था और धर्मव्यवस्था का/करती हैं खुद ही सामूहिक बलात्कार/प्रेम प्रसंग में भागी हुई लड़कियाँ ‘डोपामाइन’ के असर तक ही/प्रेम जानती हैं शाय” ‘डोपामाइन’ का अर्थ जानने के लिए तो इन पंक्तियों के लेखक भी गूगल की शरण गहने को मजबूर हुआ ताकि कविता को संपूर्णता में पकड़ा जा सके। गूगल बताता है कि ‘डोपामाइन’ एक हैप्पी हार्मोन होता है, हमारे शरीर का एक स्राव होता है जो हमारे आनंद, प्रेरणा और मूड को नियंत्रित रखने के काम आता है, और, इसकी कमी से तनाव जैसी स्थिति भी बन सकती है।

जाहिर है, ‘प्रेम प्रसंग में भागी हुई लड़कियों’ जैसी सूत्रों, संकेतों एवं सघन बिम्ब विधानों से संपृक्त कविता को पढ़ने के लिए एक सावधान और समर्थ पाठक अथवा गहरे-स्थिर भावक की भी जरूरत होती है। यहाँ हम समकालीन हिंदी कविता के शिल्प विधान एवं वायवीयता एवं अमूर्तता के बरअक्स बात करें तो वायवीयता एवं अमूर्तता जैसी स्खलता इस कविता में कतई नहीं है बावजूद, समकालीन कविता के बिम्ब विधान के ढब को यह सफलतापूर्वक निभा जाती है। यहाँ कहने का अवकाश लूँ कि आम दलित कवियों के यहाँ जहाँ आमतौर पर अभिधा में रचनाएं होती हैं, सपाटबयानी होती है, वहीं विभाश के यहाँ इस भावाकार की रचनाएं कम हैं और व्यंजनापरक रचनाएं अधिक। जाहिर है, कविता के पारंपरिक भावक, आलोचक-समीक्षक, मूल्यांकनकर्ता और ग्राहक लक्षणा एवं व्यंजना मय काव्य अभिव्यक्ति को ही बेहतर अथवा सम्पूर्ण कविता मानते हैं।

कविताओं की बात को लेकर आगे बढ़ें तो ‘ईश्वर की प्रासंगिकता’ एक वैज्ञानिक सोच के साथ की साबुत एवं कविता ठहरती है जिसमें ईश्वर को रचने वालों एवं ईश्वर के सहारे दलितों-वंचितों के हक-हुकूक से खेलने वाले प्रभु वर्ग की शिनाख्त एवं उन्हें ललकार है। इसके लिए प्रयुक्त शब्द-बंध का सुष्ठु संयोजन देखिये “अपनी समूची घृणा को दिलाकर सामाजिक मान्यता/अमानवीय सीमा तक/ईश्वर का भय दिखाया तुमने परंतु तुम्हारा सच भी/हारा हुआ एक झूठ है जिसके खिलाफ उठेंगे हाथ भी हमारे हंसिया कुदाल से लेकर तीर कमान तक …”।

दलितों की सांस्थानिक हत्या पर क्षोभ के साथ व्यंग्योक्ति के निरूपण की

रचना है ‘सदी का सबसे बड़ा अपराध’ । संकुचित दायरे की दिखती यह कविता दरअसल, व्यापकता लिए हुए है। रोहित वेमुला जैसे दलित छात्र की आत्महत्या (हत्या) से लेकर वैज्ञानिक-तार्किक एवं मानवतावादी सोच को फैलाने वाले कलबुर्गी, पानसरे और लंकेश जैसे बुद्धिवादियों की दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा की गयी हत्या तक यह कविता-कंसर्न जाता है, जो कविता की इन पंक्तियों में अभिव्यंजित होती है “पवित्र मांस वृक्ष की जड़ें जातीय श्रेष्ठता का कर गुणगान/

संस्थाओं के अंदर भी/
खामोशी से करते हैं कत्लेआम/
और विमर्श इस विषय पर
हो जाये अगर कहीं/
तो हो जाता है यह/
सदी का सबसे बड़ा अपराध।”

विभाश जाति जिंदगी में अम्बेडकरवादी मूल्यों को किस हद तक जीते हैं, मुझे नहीं पता, मगर, रामायण, महाभारत और मनुस्मृति जैसी मिथकीय पुस्तक एवं दैवी शक्तियों की कथाओं तथा धारणाओं से तिर्यकखाद-पानी लेकर तैयार उनकी ‘कवच’ और कई अन्य कविताएँ तो अम्बेडकरवादी उसूलों पर एकदम से खरी उतरती हैं। कुछ तद्धर्मा पंक्तियां देखें “परशुराम और द्रोण की मानसिकता मनुस्मृति के विधान से बाबा साहेब के संविधान को करता है भ्रमित अशेष/सामाजिक असंतुलन को संतुलन के नाम पर देकर अविश्वसनीय कवच/एकलव्य और कर्णो को कर नजरअंदाज/पुनः कर दिया/अर्जुन की श्रेष्ठता स्पष्टतः।” (कवच)

“देखें ‘गंगे/अनुचित और निषिद्ध शब्द की भांति ही तुम भी बन गयी क्या/छिनाल व्यवस्था का कोढ़ जहाँ दलित विमर्श पर भी होना पड़ता है अभिशापित’ (गंगा के प्रति)

‘जातिसूचक शब्दावली/हिकारत और हमदर्दी की झूठी साजिशें जीवन के हिस्से में था आया मेरे’ (इतिहास)

“अपनी श्रेष्ठता को लेकर ही उत्पन्न किये शब्द कई मनुस्मृति से लेकर लम्पट साहित्य तक/संकीर्ण मनोवृत्तियों का दंश झेलता शब्द गहन पीड़ा और बदलाव की सुगबुगाहट लाएगा कभी बाबा साहेब के विचारों को अपनी अस्मिता से जोड़कर यथार्थ की मुख्यधारा में दलित कहलाना चाहेगा कोई भी शब्द/सच तो यह है व्यवहार और आचरण में शब्द भी भोगते हैं/छुआछूत का दंश बारम्बार’ (दलित शब्द)

“तुम्हारे देवताओं को भी परखा कई कई बार हमने अर्पित कर पुष्प गंगाजल अक्षत दूर्वा छोड़ा नहीं कोई तीर्थस्थल/हष्टपुष्ट बकरों की बलिदेकर/किया साष्टांग प्रणाम उन्हें धारणाओं और मान्यताओं का किया प्रबल समर्थन/आस थी बस इतनी संकीर्णता से मुक्त करे स्वघोषित धर्मध्वजा वाहकों की मनोवृत्ति को/पर फलीभूत नहीं हुईं प्रार्थनाएं मेरी….. आओ तुम भी एकबार बाबा साहेव के संविधान के मंदिर में आडम्बर और घृणित मानसिकता त्यागकर हो जाएगी तुम्हें भी सत-चित-आनन्द की प्राप्ति और चढ़ाना नहीं होगा धूप दीप ताम्बूल”

“मृत्यु उत्सव का ग्रामीण भोज/प्रस्तुत करता उदाहरण/सामजिक विषमताओं की घृणित व्यवस्था का/जातीय पंगत की अवधारणा है जहाँ मानसिक विक्षिप्तता का परिचायक।”

संग्रह पर बात करते हुए अगर नायाब कविता ‘नागार्जुन के प्रति’ की अलग से चर्चा न की जाए तो समस्त कहे में फीकापन रह जाएगा। यह कविता अपने पाठकों से हिंदी-मैथिली के कद्दावर समकालीन कवि-कथाकार रहे नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’) के साहित्यिक दाय से सुपरिचित होने का मांग करती है। यह रचना यह भी बखूबी इंगित करती है कि कवि का नागार्जुन के जीवन से अच्छा परिचय और उनके साहित्य से गहरा सरोकार रहा है और उन्होंने नागार्जुन-साहित्य का सावधान अध्ययन कर रखा है। उल्लेख्य कविता में कवि बिभाश नागार्जुन प्रति सम्मानभाव रखते हुए उनकी रचनाओं पर आलोचनात्मक एवं प्रश्नाकुलभी प्रतीत होते हैं जो नागार्जुन के प्रति उनके ईमानदार व निष्कलुष प्रेम का निदर्शन है।

संकलन में शामिल कविताओं में कथ्य, शिल्प की खूबसूरती एवं मजबूती से लैस कुछ पंक्तियों से आपका साबका कराने के साथ अब अपनी बात के अंत की तरफ बढ़ना चाहूंगा। समाहार करते कहें तो संग्रह की कविताएं अन्य भावाभिव्यक्तियों के साथ स्थूल रूप से दलित साहित्य की ब्राह्मणवाद एवं मनुवाद विरोधी अम्बेडकरी धारा, स्वर व चेतना की संगत करती हैं और इस क्रम में कतिपय मिथकीय एवं ऐतिहासिक सवर्ण अथवा गैर दलित नायकों की खलनायकी को भी खोलती चलती हैं, जिनके चलते बहुजनों को दुःख-दर्द मिले, अधिकार-वंचना मिली तथा वंचना-जन्य तमाम अश्क्तताएं मिलीं। इससे कवि की संजीदगी, संलग्नता एवं काव्यदृष्टि की गहराई का पता चलता है। कवि के जन्म-कर्म क्षेत्र बिहार समेत देश की कई सकारात्मक एवं नकारात्मक सामाजिक चलनों, सांप्रदायिक एवं जातीय वैमनस्य, पूर्वाग्रह से प्रेरित दंगा-फसाद, हत्या, बलात्कार आदि घटनाओं के जिक्र और जिरह से सृजित कई रचनाएं भी आप यहाँ पाएंगे। यह भी कि मनुष्य के जेहन में पलने वाली हर सुन्दर असुंदर भावनाओं का प्रतिनिधिक रचनात्मक अंकन कविता के पारम्परिक एवं नये मुहावरों में यहाँ दर्ज है।

कविताई यदि उद्देश्यपूर्ण है, सरोकारी है तो यह बेशक, करने की चीज है। बल्कि कहें कि कविता करने, कहने और सुनने-सुनाने का काम फल की चिंता किये बगैर करते रहना चाहिए क्योंकि सुनने-सुनाने के मायने हैं। खराब सुनने-सुनाने वाले संगठित गिरोह की तरह काम करके, अथवा, खराब सुनने-सुनाने वालों को शह देकर उनके समर्थक दुनिया और समाज को अपनी तरह से बदल रहे हैं। जब कविता की एक किताब मात्र (पंडित तुलसीदास द्वारा रचित काव्य ‘रामचरितमानस’ ने भारतीय समाज के लिए अफीम का काम किया है) एक बड़े भाग्यवादी समूह की जड़तामूलक भावनाओं का सदियों से सहारा-संपोषक बनी आ सकती है तो हमें भी अपने उन वैचारिक अभिव्यक्तियों को वाणी देना चाहिए जिन्हें एक बेहतर दुनिया तैयार करने के लिए दूसरों तक पहुंचाना हम जरूरी समझते हैं। व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्तर पर मानवाधिकारों से पोषित-वलित लोकतंत्र को समृद्ध करने में भरसक प्रयत्न करना चाहिए। इस खयाल से दलित-वंचितों के बुद्धिजीवी वर्ग का दायित्व बड़ा हो जाता है क्योंकि उनके हितों को संबोधित चीजें सहानुभूति के सहकार से यथेष्ट मात्रा में नहीं मिल सकतीं; यथेष्ट पाने के लिए स्वानुभूति के ताप का जोर और जोड़ जरूरी है। बिभाश के इस कविता संग्रह को हम स्वानुभूति के ताप से सृजित एक अनिवार हस्तक्षेप मानें तो शायद, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी!

बिभाश ठेठ बिहारी हैं, छेहा बिहारी हैं, इस मायने में कि बिहार में ही पले-बढ़े हैं। काव्य जबकि बहुलिखित विधा है, सर्वाधिक रचनात्मक एवं आलोचनात्मक काम इसी विधा में होते हैं तब भी जहाँ तक मेरे संज्ञान में है, दलित वर्ग से किसी युवा का कोई काव्य संग्रह दिनों से नहीं आया है। इस लेखे भी यह बड़ा एक काम हुआ है, जरूरी काम हुआ है।

बिहार से इस युवा-कलम से आप परिचय कीजिये, इस पर नजर रखिए!

डा. मुसाफिर बैठा

Language: Hindi
Tag: लेख
34 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr MusafiR BaithA
View all
You may also like:
अफ़सोस
अफ़सोस
Dipak Kumar "Girja"
"चलो जी लें आज"
Radha Iyer Rads/राधा अय्यर 'कस्तूरी'
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
आपसे होगा नहीं , मुझसे छोड़ा नहीं जाएगा
आपसे होगा नहीं , मुझसे छोड़ा नहीं जाएगा
Keshav kishor Kumar
भूमि दिवस
भूमि दिवस
SATPAL CHAUHAN
*Eternal Puzzle*
*Eternal Puzzle*
Poonam Matia
🙏 गुरु चरणों की धूल🙏
🙏 गुरु चरणों की धूल🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
मत रो मां
मत रो मां
Shekhar Chandra Mitra
लत मुझे भी थी सच कहने की
लत मुझे भी थी सच कहने की
सिद्धार्थ गोरखपुरी
पहले माता पिता को लगता था, की बेटियों के लिए लड़का सही मिल ज
पहले माता पिता को लगता था, की बेटियों के लिए लड़का सही मिल ज
पूर्वार्थ
गुरुपूर्व प्रकाश उत्सव बेला है आई
गुरुपूर्व प्रकाश उत्सव बेला है आई
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
यादों के अभिलेख हैं , आँखों  के  दीवान ।
यादों के अभिलेख हैं , आँखों के दीवान ।
sushil sarna
" विडम्बना "
Dr. Kishan tandon kranti
*
*"राम नाम रूपी नवरत्न माला स्तुति"
Shashi kala vyas
..
..
*प्रणय*
रमेशराज की वर्णिक एवं लघु छंदों में 16 तेवरियाँ
रमेशराज की वर्णिक एवं लघु छंदों में 16 तेवरियाँ
कवि रमेशराज
3178.*पूर्णिका*
3178.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*जो भी अपनी खुशबू से इस, दुनिया को महकायेगा (हिंदी गजल)*
*जो भी अपनी खुशबू से इस, दुनिया को महकायेगा (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
प्यार है ही नही ज़माने में
प्यार है ही नही ज़माने में
SHAMA PARVEEN
इक इक करके सारे पर कुतर डाले
इक इक करके सारे पर कुतर डाले
ruby kumari
कवनो गाड़ी तरे ई चले जिंदगी
कवनो गाड़ी तरे ई चले जिंदगी
आकाश महेशपुरी
नकाबे चेहरा वाली, पेश जो थी हमको सूरत
नकाबे चेहरा वाली, पेश जो थी हमको सूरत
gurudeenverma198
SAARC Summit to be held in Nepal on 05 May, dignitaries to be honoured
SAARC Summit to be held in Nepal on 05 May, dignitaries to be honoured
World News
इसके जैसा
इसके जैसा
Dr fauzia Naseem shad
क्युँ हरबार ये होता है ,
क्युँ हरबार ये होता है ,
Manisha Wandhare
शीर्षक - घुटन
शीर्षक - घुटन
Neeraj Agarwal
नवतपा की लव स्टोरी (व्यंग्य)
नवतपा की लव स्टोरी (व्यंग्य)
Santosh kumar Miri
कूष्माण्डा
कूष्माण्डा
surenderpal vaidya
गुहार
गुहार
Sonam Puneet Dubey
जीवन बहुत कठिन है लेकिन तुमको जीना होगा ,
जीवन बहुत कठिन है लेकिन तुमको जीना होगा ,
Manju sagar
Loading...