बिल्ली हारी
बाल कविता (बिल्ली हारी)
इक चुहिया औ उसका बच्चा
मन का चंचल, तन का कच्चा।
बता रही थी उसकी माता,
झट छुप जा गर कोई आता।
छुप कर बैठी बिल्ली रानी,
घात लगाए बड़ी सयानी।
सोच रही थी झपटूँ कैसे,
क्यों चूहे चौकन्ने ऐसे।
धीरे धीरे टांग बढ़ाए,
उन चूहों पर आँख गड़ाए।
नजर तनिक ना अपनी फेरे,
इधर उधर ना टेढ़े मेढ़े।
भांप शिकारी माता डोली,
झट अपने बच्चे से बोली।
लगता है इक संकट भारी,
छुपने की कर लो तैयारी।
ज्यों ही झपटी मौसी बिल्ली,
भागे चूहे पहुंचे दिल्ली।
झपट सकी ना वो बेचारी,
चूहों से यूँ बिल्ली हारी।
जटाशंकर”जटा”