बिल्ली मौसी (बाल कविता)
बिल्ली मौसी बड़ी सयानी,
छिपकर घर में आती है
पा जाए जो दूध कहीं तो
झट पट चट कर जाती है
आँखे इसकी नीली भूरी,
देख सदा मटकाती है
धीरे धीरे पूँछ हिला कर,
सबको यह भरमाती है।।1
छोटे छोटे कदम धरे पर,
नहीं पकड़ में आती है
आहट पाकर नौ दो ग्यारह,
पहले ही हो जाती है
चूहों से है वैर पुराना,
देख सभी छिप जाते हैं
जान बचे तो लाखों पाएँ,
अपने को समझाते हैं।।2
भूख लगे तो म्याऊँ म्याऊँ,
कहके हमें बुलाती है
खाने को कुछ नहीं मिले तो,
ऊधम खूब मचाती है
बिल्ली रस्ता काट गयी तो,
तनिक न भय तुम खाना जी
यह भी है हम सबके जैसी
सबको यह समझाना जी।।3
नाथ सोनांचली