बिल्कुल नही
आती है स्वप्न मे मगर भगाने का नही ।
बुलाती है बगीचे मे मगर जाने का नही ।।
वो उधर चले जाते है हम इधर चले जाते है ।
आंख मिलती है मगर नजर मिलाने का नही ।
कितना भी सस्ता हो जाए मगर पास जाने का नही ।
ये मटन मच्छी है खाने का नही ।
क्योंकि यह कोरोना अपने पास बुलाने का नही ।।
साबुन घिसते है तो घिसने दो ।
मास्क महंगे मिलते है तो मिलने दो ।
मगर कंजूसी दिखाने का नही ।।
RJ ANAND PRAJAPATI