बिलख रहा साहित्य
साहित्यकारों, वोट-याचना,
कायरता है मन की,
बिलख रहा साहित्य,
आत्मा सिसक रही रचना की |
एक पंथ है स्वाभिमान तज,
वोटो में रम जाओ,
वोटो से भावों को समझो,
पुरस्कार पा जाओ |
अपर पंथ है रचनाकारों,
स्वाभिमान ध्वज लेकर,
खोट वोट में समझ,
इसे तुम फहरा दो अम्बर पर |
वोटो का यह भार नहीं –
अब सम्हल रहा है तुमसे,
लुटी रात की नींद,
चैन भी विदा हुआ जीवन से |
सावधान ! मैं जो कहता हूँ,
सुनो धैर्य से उसको,
सम्यक विधि से हो प्रयास,
यश मिल सकता है तुमको |
भिक्षा से जो सुलभ, नहीं वह –
मूल्यवान होता है,
अहसानो का भार मनुज फिर ,
जीवनभर सहता है |
रचना की रचना हो ऐसी,
दाग नहीं लग पाए,
तुम रचना में नहीं, वही –
तुममें विलीन हो जाए |
– हरिकिशन मूंधड़ा
कूचबिहार