बिरह वेदना
*****बिरह वेदना *****
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ओ प्रियतम तुम्हारी यादों में,
हम छिप-छिप आहें भरते हैं…
जब बेचैनी हद से बढ़ जाती ,
हम यूहीं तुम्हें पुकारा करते हैं…
बिरह वेदना यूँ इतनी भारी है,
कि खुद शाये से भी डर जाऊँ ..
वो गैर होंगे एक पल में इतना
हम पल भर भी न ये सोच सके ..
इतना बता दे प्रियतम हमको,
क्या प्रेम इसी को कहते हैं…
अब दिल ये तड़पता रहता है,
और आँखों से आंसू बहते हैं…!!
धीरेन्द्र वर्मा