“बिरहनी की तड़प”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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तुम्हारे बिन अधूरा मैं मेरे बिन तुम अधूरी हो ,
मिलन का योग हो जाए तभी कोई बात पूरी हो !
तुम्हारे बिन अधूरी मैं मेरे बिन तुम अधूरे हो ,
मिलन का योग हो जाए तभी कोई बात पूरी हो !!
कहाँ बैठे हो छुपकर तुम,
मेरी आखियाँ तरसती है !
जरा तुम सामने आयो ,
तभी कोई बात बनती है !!
तुम्हारे बिन अधूरी मैं मेरे बिन तुम अधूरे हो ,
मिलन का योग हो जाए तभी कोई बात पूरी हो !!
नहीं छुपकर मैं बैठा हूँ ,
तुम्हारी याद आती है !
करूँ क्या कुछ नहीं सूझे ,
मुझे रह – रह सताती है !!
तुम्हारे बिन अधूरा मैं मेरे बिन तुम अधूरी हो ,
मिलन का योग हो जाए तभी कोई बात पूरी हो !!
मेरी हालत को तुम देखो ,
मुझे सब ताने देते हैं !
“रहोगी कब तलक यूँही” ,
सभी यह बात कहते हैं !!
तुम्हारे बिन अधूरी मैं मेरे बिन तुम अधूरे हो ,
मिलन का योग हो जाए तभी कोई बात पूरी हो !!
चले आओ मेरे प्रियतम ,
मुझे बस प्यार तुम देदो !
नहीं कुछ चाहिए मुझको ,
मुझे बस साथ तुम देदो !!
तुम्हारे बिन अधूरी मैं मेरे बिन तुम अधूरे हो ,
मिलन का योग हो जाए तभी कोई बात पूरी हो !
तुम्हारे बिन अधूरा मैं मेरे बिन तुम अधूरी हो ,
मिलन का योग हो जाए तभी कोई बात पूरी हो !!
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डॉ लक्ष्मण झा” परिमल”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस. पी .कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
12.12.2023