बिन मौसम के ये बरसात कैसी
बिन मौसम आज ये बरसात कैसी।
बिन बुलाए आज ये मुलाकात कैसी।।
रहा सिलसिला गैरो जैसा मुझसे।
फिर मेरे साथ ये शराफत कैसी।।
अभी तो आंखे चार नहीं मुझसे।
फिर अभी से ये शरारत कैसी।।
किए सभी काम तुम्हारी मर्जी से।
फिर मेरे साथ ये खिलाफत कैसी।
देखें थे रात सभी रंगीन ख्वाब तुमने।
फिर सुबह उठते ही ये हरारत कैसी।।
तोड़ दिए थे सभी रिश्ते रस्तोगी से तुमने।
फिर मेरे घर आने की ये शुरुआत कैसी।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम