बिन ‘माँ’ के संसार अधूरा रह जाता।
अमृत से भरपूर सरोवर है ‘माई’।
कुदरत की अनमोल धरोहर है ‘माई’।
रिश्तों को रसदार बनाकर रखती है।
‘माँ’ ही घर में प्यार बनाकर रखती है।
घाव लगे तो चुटकी में भर देती है।
‘माँ’ की ममता हर पीड़ा हर लेती है।
बच्चों की खामोशी पढ़ना आता है।
‘माँ’ को हर मुश्किल से लड़ना आता है।
कण-कण व्यापित प्राण धरा पर है ‘माता’।
ईश्वर की वरदान धरा पर है ‘माता’।
जीवन क्या है सार समझ मे आता है।
‘माँ’ से ही संसार समझ मे आता है।
सृष्टि का आधार अधूरा रह जाता।
बिन ‘माँ’ के संसार अधूरा रह जाता।
माँ की सेवा सत कर्मो पर भारी है।
माँ ही पहली पूजा की अधिकारी है।
इसीलिए तो माँ की महिमा गाता हूँ ।
माँ चरणों मे अपना शीश झुकता हूँ ।??