बिन बात की बातों-बातों में बातों से रुलाये जाते हैं।
बिन बात की बातों-बातों में बातों से रुलाये जाते हैं ।
दीपक तो यहां जलते ही नहीं बस दिल को जलाये जाते हैं।।
ये अब्र कहां तक फैली है ये घटा कहां तक बरसेगी।
इस बात की कोई खबर नहीं क्यों छतरी लगाये जाते हैं।।
गर हिन्दू-मुस्लिम मिल के रहें तो हिन्द सलामत हो जाये।
इन पण्डित,मौलवी-मुल्लों से हम तो घबराये जाते हैं।।
कुछ लोग यहाँ पर ऐसे हैं जो धर्म के ठेके लेते हैं।
मन को तो कभी धोते ही नहीं हर रोज नहाये जाते हैं।।
ये मन्दिर-मस्जिद काहे को है जब प्रेम नहीं तो कछ भी नहीं।
क्यों अजां पुकारी जाती है क्यों घण्टे बजाये जाते हैं।।
तेरा भी लहू तो लाल ही है मेरा भी लहू तो लाल ही है।
क्यों जात-धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाये जाते हैं।।