बिन बच्चों के स्कूल
बिना बच्चों का स्कूल
जैसे बिन बगिया का फूल
चारों तरफ अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता है
मुझे खेलने वाले कहां गए हर एक खिलौना कहता है
स्कूल की घण्टी, बच्चों की राहें तकती रहती है
कब गाऊँगी मैं गीत मेरा रोज ही पूछा करती है
श्यापट्ट और चाॅक पड़े पड़े सब उब गये
डेस्क और बेंच खड़े खड़े कुछ रूठ गये
किताब की वो बच्ची मुझसे पूछा करती है
कब आएगें मेरे दोस्त रस्ता देखा करती है
क्लासरूम की गलियां विरान सी लगती है
न कदमों की आहट न ही कोई शोर
कितनी सुनसान लगती है
या खुदा कब गुजरेगा वबा का दौर,
कब फिजा गुलजार होगी,,
कब दिखेंगे इस आंगन के फूल,
यह बगिया सदाबहार होगी,,