बिन तेल जलाओ तो जानू
बिन ताप प्रताप पहाड़ों के
हिम को पिघलाओ तो जानू
प्रेम के भाव को त्याग किसी
शिशु को बहलाओ तो जानू
तन सुन्दर कीमती वस्त्र तो क्या
बिन भाव अधूरा है सबकुछ
हो लाखों- करोड़ों का दीप भले
बिन तेल जलाओ तो जानू
बिन ताप प्रताप पहाड़ों के
हिम को पिघलाओ तो जानू
प्रेम के भाव को त्याग किसी
शिशु को बहलाओ तो जानू
तन सुन्दर कीमती वस्त्र तो क्या
बिन भाव अधूरा है सबकुछ
हो लाखों- करोड़ों का दीप भले
बिन तेल जलाओ तो जानू