बिन तुम्हारे
बिन तुम्हारे
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आज बहुत तुम निखर रही हो,
खुशी के मारे उछल रही हो,
फिक्र नहीं कुछ आज जरा भी,
आसमान में मचल रही हो।
एक परिंदा मरता प्यासा,
उससे भी क्यों विमुख हो रही,
जाने कैसा भ्रम है तुमको,
दुनियाँ छोड़ जो जा रही हो।
हम भी तो हैं संग तुम्हारे,
नहीं तुम्हें कुछ याद आ रहा,
न रह सकूंगा मैं बिन तुम्हारे,
ठहरो मैं भी संग चल रहा।
@सुधीर श्रीवास्तव