बिना मेहनत के नहीं मिलता कोई फल यारों
धरती खोदोगे तब मिलेगा तुम्हें जल यारों।
बिना मेहनत के नहीं मिलता कोई फल यारों।।
धूप में जिस किसान का बहा पसीना है,
लहलहाई है बस उसी की तो फसल यारों।।
सबसे पहले चलो समुद्र का मंथन कर लें,
बाद में देखेंगे अमृत है या गरल यारों।।
काम झटपट नहीं होते हैं अजूबे वाले,
बीस बरसों में बना था वो ताजमहल यारों।।
नौजवाँ हम हैं पूरी दुनिया को हिला देंगे,
गर इरादा अभी से करलें हम अटल यारों।।
ज़िदगी में अगर कीचड़ ही है तो क्या ग़म है,
जानते हो न कहाँ खिलता है कमल यारों ?
तोड़के रख लो अपनी मुट्ठी में उस सूरज को,
पथ का पर्वत अरे! फिर जायेगा पिघल यारों।।
चाह है तो न क्यों मिलेगा समंदर तुमको ,
दरिया बनकर तो कभी राह में दो चल यारों ।।
अब ज़रा सपनों से बाहर निकलके काम करो,
रेत पर क्यों बनाते रहते हो महल यारों ?
पहली ही बार में तुम गिरके हार मान गए,
करलो इक बार उस मकड़ी की तुम नकल यारों ।
देता ‘आराम है हराम’ का नारा ‘सौरभ’,
चींटियों का ये फिर से चल पड़ा है दल यारों ।
– सुरेश कुमार ‘सौरभ’