बिना बिजली के (अतुकांत कविता)
बिना बिजली के (अतुकांत कविता)
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तीन दिन से बिजली नहीं आई है
अंधेरे में रह रहे हैं
एक अद्भुत खामोशी चारों ओर है।
सोलर लालटेन दिनभर धूप में चार्ज करते हैं
फिर रात को उसकी मद्धिम रोशनी मिलती है।
थोड़ा – सा उजाला और बाकी सब अन्धेरा
कितना शांतिदायक है !
आसमान में आधे खिले चाँद का उल्लास
बरसों बाद शायद देखा होगा
लगता है जंगल में कुटी बनाकर रह रहे हैं।
ऐसे अनुभव अब कहाँ मिलते हैं !
इसे क्या नाम दिया जाए ?
मौजमस्ती
पिकनिक
जंगल
या कुछ और ?
और हाँ !
यह बताना तो भूल ही गया
कि कल हमने सरसों के तेल के
कुछ दीपक भी जलाए थे,
यद्यपि दीपावली को बीते अरसा हो गया।
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 9997615451