बिना कुछ कहे …..
80…
29.4.24.
मुतकारिब मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
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बिना कुछ कहे सब अता हो गया
खतों का वही सिलसिला हो गया
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दबे पाँव चल के,गया था जहाँ
शिकारी वहीं , लापता हो गया
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मुझे देख , फिरती निगाहें हसीँ
गुनाहों जुड़ा कुछ नया हो गया
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नही बच सका, आदमी लालची
भरे पाप का जब , घडा हो गया
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छुपा सीने में राज रखता कई
सयाना सा मुखबिर, बड़ा हो गया
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सरे राह अस्मत जहाँ पर लुटी
सियासत वहीं बे सदा हो गया
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कहीं मातमी धुन. सुना तो लगा
अचानक नगर में दँगा हो गया
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3 दुर्ग छत्तीसगढ़