बिटिया हमारी
हूं मैं आधुनिक युग की नारी, नहीं रही मैं अब बेचारी,
क्या हुआ जो बिटीया मेरी गये रात तक आनलाईन थी।
नया है जमाना,नयी रखती हूं अब मैं सोच,
बिटिया मेरी लगती है मुझको लाखों में एक।
देखा मैंने देर रात को पड़ोसी की बिटिया आई घर में,
साथ में उसके था एक युवा कार में उसके था संग में।
क्या हुआ जो बिटीया उनकी कामकाजी है हो गई होगी देरी,
सुरक्षा की खातिर सहकर्मी को साथ लिया समझ ना आई मेरी।
पर क्या करुं मैं नये जमाने की होकर भी हूं तो एक औरत हीं,
पेट दुखने लगता है मेरा जब तक बातें ना करूं इधर उधर की।
मिर्च मसाला लेकर मैंने पड़ोसी की बिटिया की ख़बर उड़ाई,
आंखों में आंसू लेकर बिटिया उनकी दौड़ी चली आई।
तनिक ना पसीजा मेरा कुत्सित पत्थर मन,
पड़ोसी की बिटिया की खातिर फैलाया मैंने जो उलझन।
बात वही जब एक दिन मेरी बिटिया पर बन आई,
सर फोड़ा और छाती पिटी हाय तौबा मैंने मचाई।
लाखों कड़वी और बुरी बातें मैंने पड़ोसन को सुनाई,
बिटिया मेरी लाखों में एक क्यों ना दी तुम्हें दिखाई।
अचानक से मुझको याद आयी अपनी की हुई करनी,
मैंने भी तो वही किया जिसकी सजा थी मैंने भरनी।
दौड़ी गई मैं पड़ोसी के पास पैरों में जा गिरी,
माफ़ी मांगी मिन्नतें की अपनी ग़लती सुधारी।
बिटिया तेरी बिटिया मेरी बिटिया तो बस बिटिया है,
उंगली ना उठाना बिटिया पर बिटिया का हीं तो ज़माना है।