बिटिया विदा हो गई
नव-जीवन का साथ निभाने,
एक नया संसार बसाने,
दुनिया की यह रीत निभाने,
प्यारी बिटिया चली गई है ।।
खेल-खिलौने यहीं छोड़कर,
नए पंख- परिधान ओढ़कर,
बाबुल का उद्यान छोड़कर,
नन्ही चिड़िया चली गई है ।।
द्वार सजाकर रंग-रंगोली,
मेहंदी, हल्दी, चन्दन, रोली,
पहन आभूषण, लहंगा-चोली,
ओढ़ चुनरिया चली गई है ।।
जिद, बचपन सब यहीं भुलाकर,
सब परिजन को खूब रुलाकर,
घर का हर कोना सूना कर,
दूर की गलियां चली गई है ।।
शुभाशीष ताऊ, ताई की,
सब परिजन बहना, भाई की,
माँ – पापा की परछाई सी,
छोड़ उंगलिया चली गई है ।।
बोझ नहीं, तुम स्वाभिमान हो
इस मस्तक की तुम्हीं शान हो,
पर, घर के संस्कार ध्यान हों,
बेशक हमसे दूर गई है ।।
सदा खुश रहे, रहे प्यार से,
है आशीष इस परिवार से,
कहे ‘नवल’ सूनी दीवार से,
खुशी की पुड़िया चली गई है ।।
आखिर गुड़िया चली गई है ।।
✍️ – नवीन जोशी ‘नवल’
(स्वरचित)