“बिछीये” की भी दुरी, नही होती
#सफ़रनामा
ग़र “मजबूरी” नही होती,
“बिछीये” की भी दुरी, नही होती
बहती “प्यार” की धारा में
“प्यास” अधूरी, नही होती
अधरों से अधर मिल जाते
“घूंघट” तुम्हारी, नही होती
तुझे “बाहुपाश” में भर लेते
ग़र “दुनियादारी”, नही होती
“बसंत” मनुहार नही करता
ग़र “सिहरन” भारी, नही होती।
Basant_Malekar