बिछड़ा हो खुद से
(11)
बिछड़ा हो खुद से, वो मिलता कहां है।
पत्थर हो दिल से, वो पिघलता कहां हैं।।
किसी हाल में इसको खोने न देना।
सिरा जिंदगी का मिलता कहां हैं ।।
कोई भी मरहम असर न करेगा ।
रूह का ज़ख्म है ,भरता कहा है ।।
भरम तोड़ देगी कोशिश तुम्हारी ।
मुकद्दर से ज़्यादा मिलता कहां हैं ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद