बिखर_गया_मै_टूट_कर_मगर_कभी_झुका_नही
#बिखर_गया_मै_टूट_कर_मगर_कभी_झुका_नही !
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बिखर गया मै टूट कर मगर कभी झुका नहीं।
उठा चला गिरा मगर मैं राह में रुका नहीं।
चला खुदा की राह पर तमाम उम्र जब तलक,
मिले हजार ज़ख्म भी मगर मुझे गिला नहीं।
अजब की जिंदगी मिली गजब यहाँ के लोग हैं,
मुरीद उस खुदा का हूँ, जुदा कभी हुआ नहीं।
शिकायतें न थी कभी न अब किसी से है गिला,
चऱाग़ बन जला मगर सनम मुझे मिला नहीं।
अभी तो शाम बन गया मैं रात को निहारता,
हसीन रात का सुकून आज तक फला नहीं।
भटक रहा यहाँ वहाँ मुझे कही न है सुकूँ,
दवाईयों से घाव पर कभी यहाँ भरा नहीं ।
जहान भर की गालियाँ सचिन को मिली मगर,
तमाम कोशिशें हुईं मुझे खुदा मिला नहीं।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’