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12 May 2024 · 1 min read

बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही।

बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही,
जख्मों से सुन्न पड़े इस मन पर, चीख इल्जामों के और सही।
सुखे अश्रु से भरे नैनों में, पीड़ा की स्याह रातें और सही,
स्वयं के रक्त से सने हाथों में, खंजर से खींची लकीरें और सही।
अवसाद से घिरे जीवन पर, अल्फाजों के विषबाण और सही,
मद्धम पर चुकी साँसों पर, लांछन के घुटन कुछ और सही।
निराशाओं के गहन भंवर में, बवंडरों की चोटें कुछ और सही,
ठहरे पतझड़ जैसे वन में, सुलगती दो मशालें और सही।
घने अंधेरों में भटकते आवरण पर, निशान कालिखो के कुछ और सही,
धुंधले शीशों के धूमिल अक्स पर, धूल की परतें और सही।
जमींदोज हुई आत्मा पर, तीखे सवालों के प्रहार दो और सही,
स्नेहिल बंधन के पाक गाँठ पर, दो वार घृणा के और सही।

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