बिखरी हुई कुछ यादें
बिखरी हुई कुछ यादें!
सिमटने लगती है आ कर
मेरे गिरेबान पर l
मेरी रूह पर दस्तक देती हुए,
खींच लती है अतीत को
मेरे वर्तमान पर l
तब मै गुनगुनाने लगता हूँ
जिन्दगी के बीते लम्हों को l
ओर भरने लगता हूँ देर तक
भूली बिसरी यादों से आँखों को l
बिखरी हुई कुछ यादें!
सामने थर देती है कुछ वादें l
ओर मैं उन लम्हों मे,
निभा देता हूँ जैसे मेरे किये वादें l
—फौजी मुंडे सोहनलाल मुंडे ✍️