बिखरी यादें….6
[2/8, 8:35 PM] Naresh Sagar: तितली
=======
फुर्र -फुर्र उड़ जाती तितली
कितनी प्यारी लगती तितली
बाल मन को ये ललचाती
दौड़े- भागे हाथ ना आती
फूलों पर मंडराती तितली
कितनी है मुस्काती तितली
रंग- बिरंगे पंखों वाली
सबके मन को भाती तितली
पकड़ो तो मुरझा जाती है अपने-अपने पर यह इतराती है देखो कितना इठलाती है दुल्हन सी को शर्म आती है मत मारो तितली रानी को रंगों की महारानी को खेलकूद करती रहती बच्चों से लड़ती रहती हमको खूब सबको खूब जाति तितली खेले और खिलाती थी
[2/9, 8:37 AM] Naresh Sagar: गीत …हैप्पी वैलेंटाइन डे
हैप्पी…वैलेंटाइन डे
=============
प्यार पै भारी फाइन है,
देखो वैलेंटाइन है
जो भी मांझी संग पकड़ा,
डंडों का बदन पर साइन है………. देखो वैलेंटाइन है
घर से संभल -संभल जाना
बीवी को भी संग मत ले जाना
बैठे जो कहीं होटल में संग,
मीडिया की वहां लंबी लाइन है……….. देखो वैलेंटाइन है
फूल के बदले शूल मिले
राहों में जो किसी से पेच लड़े
मोहब्बत का नशा उतरे नीचे,
खाकी का गुस्सा टाईन है ……………….देखो वैलेंटाइन है
13 में मिलो 15 में मिलो
14 में s.m.s. युद्ध करो
यादों में गुम हो कर देखो
ख्वाबों की खुली वाइन है ……………….. देखो वैलेंटाइन है
हर तरफ खौफनाक पहरे
मिलने पर बादल है गहरे
सरे-राह मिलने पर कर्फ्यू ,
सपनों की खुली सब लाइन है …………….देखो वैलेंटाइन है
बजरंग दल यूं फूंकार रहा
पश्चिम को वो ललकार रहा
वैलेंटाइन पर रोक लगाने को
शिवसेना ने खोली ज्वाइन है ……………..देखो वैलेंटाइन है
इंकलाब करो मिलने वालों
खुलकर मिलो मिलने वालों
कह दो जमाने से तुम “सागर”
पी हमने इश्क की वाइन है ……………देखो वैलेंटाइन है!!
=======मूल गीतकार ……
डॉ. नरेश “सागर”
9149087291
[2/10, 8:48 AM] Naresh Sagar: धरने पर जो है बैठा , हां वो ही किसान हैं
रक्षा जो कर रहा है इनकी,भारत का संविधान है
गर काला कानून ये लागू हो गया तो देखना
देश गुलामी में जकडेगा, बर्बादी आवाम है
खेती उनकी बीज भी उनका, मर्जी का सब काम है
खेत और खलिहानो से दूर मजदूरों का काम है
अच्छे दिनों की आहट में बुरे दिनों की आहट है
इसलिए ही किसानों ने खुलकर की बगावत है
जागो तुम भी देश की जनता गर शकुन से रहना है
हां मैं भी हूं किसान ये खुलकर तुमको कहना है
कहती हैं सरकार कहे आतंकी हमको जीवी
हां हम है सागर बड़े आंदोलन कारी जीवी
भाट मीडिया सच छुपाकर झूंठ बढ़ावा देती है
भारत मां ऐसे लोगों को कह विभिषण रोती है
आजाद भारत की आज़ादी फिर है खतरे में
भगतसिंह पैदा करो अब जन जन के कतरे में
आओ किसान आंदोलन के,मिलकर गुन गायेंगे
जय जवान जय किसान के नारे मिलकर खूब लगायेंगे।।
[2/10, 8:53 AM] Naresh Sagar: कहना है जो खुलकर कहलों हां मैं भी जिद्दी हूं
तुम कहते हो तो हां मैं आंदोलनजीवी हूं
[2/11, 12:57 AM] Naresh Sagar: देख रहा है घर का मुखिया ,घर कि बर्बादी को
अपनी करतूतों का दोषी वो बतलाता आबादी को
पूरे घर में कोई ना राजी फिर भी राजा बना दिया
हलचल सी पैदा कर दी है ,और लगा समझाने को
पाबंदी है पाबंदी है अपनी मर्जी से जीने की
और पूछता रोज शाम को कीमत खूब पसीने की
बात बनाता सबसे नचाता ,बैठकें वो चौबारे में
हम कहते तो हंसके उड़ाता,हवा जैसे गुब्बारे में
दिन भर चाय चाय डकराता,हम मांगे तो पूछो मत
रोग बताकर खूब डराता ,चूसकी ले चौबारे में
बिखर गया है घर सारा,रोज की खींचातानी में
बेच दिया घर बार ही सारा,बस अपनी दीवानी में
कोई पूछे गर सवाल तो पंचायत बिठवाता है
ना माने गर बात अगर वो,थाने में पिटवाता है
जीना मुश्किल हो गया है, अपने घर में कैदी है
जिद्द पर बैठा है वो अडकर,पूरा मुस्तैदी है
अपनी कमाई का भी जी भर ना मौज उड़ाते पाते
बच्चों के भविष्य खातिर, जोड़ कहीं नहीं पाते
कोई बचाएं हमको इससे,ऐसी चौकीदारी से
छूटकारा दिलवाले कोई,ऐसी लमबरदारी से
======12.56 रात्रि
10/02/2021
[2/11, 1:13 AM] Naresh Sagar: रोज नसीबा रोया जाता
रोज नसीबा कोसा जाता
रोज वक्त से होती लड़ाई
रोज नया कुछ बोया जाता
रोज आस का लेकर सूरज
रोज नया कुछ सोचा जाता
रोज रात को पूजा करके
रोज नया कुछ मांगा जाता
रोज भूख से लड़कर दिनभर
रोज पेट समझाया जाता
रोज खिलौनों की जिद्द पर
रोज बच्चों को पीटा जाता
रोज सर्दी के कपड़ों पर
रोज कल पर टलकाया जाता
रोज मां की बीमारी पर
रोज नसीबा रोया जाता
रोज रोज की बेगारी पर
रोज रोज सरमाया जाता
रोज रोज की वादों को
रोज रोज फ़रमाया जाता
रोज लकीरों के धोने पर
रोज दिल समझाया जाता
रोज जिम्मेदारी का रोना
रोज घर चलाया जाता
रोज मौत की दुआ मांगकर
रोज जिंदगी ढोया जाता
=======
1.13 रात्रि….11/02/2021
[2/11, 1:38 AM] Naresh Sagar: मौसम सारे मैं सहता हूं
बस खुद से लगता रहता हूं
सबका रखता ध्यान मगर मैं
मैं सबसे छुपता रहता हूं
निर्माता हूं बड़े भवन का
पर मैं झौंपड में रहता है
जिन सड़कों पर दौड़ने गाड़ी
बनाकर मैं पैदल चलता हूं
सुबह शाम लड़ता हूं खुद से
आधा पेट भोजन करता हूं
मजदूर दिवस भी मनता है
पर भाषण में ही रहता हूं
मुझसे रौनक अमीरों के घर
फिर भी नीच छोटा रहता हूं
हाड़ मांस सब खपा काम में
मजदूर बनकर ही जीता हूं
सागर पास खड़ा होकर भी
बस अपने आंसू पीता हूं
शिक्षा और सुविधाओं से
मेहनत कर भी दूर रहता हूं
पीड़ाओं से थके बदन की
कब किससे पीड़ा कहता हूं
जीने से मरने तक “सागर”
मैं खुद से लगता रहता हूं
मैं खुद से लडता रहता हूं।।
=====1.38===11/02/2021
[2/11, 1:51 AM] Naresh Sagar: सुख सुविधाओं से दूर हूं
हां मैं मजदूर हूं
हां मैं मजबूर हूं
सुबह से लेकर शाम तक
बस काम में ही मसगूल हूं
हां मैं मजदूर हूं
हां मैं मजबूर हूं
बीवी बच्चों के साथ में
रहता कम हजूर हूं
हां मैं मजदूर हूं
हां मैं मजबूर हूं
सरकारी फरमान हो
मौसम की मार हो या
सरकारी फरमान हो मरता मैं श्री मान हूं
[2/12, 10:00 AM] Mere Number: चक्का जाम की सुनकर, चक्कर में सरकार।
चुप बैठे किसान भी , करेंगे हाहाकार।।
करेंगे हाहाकार , उठेंगे जमकर मुद्दे।
होते हैं हो जाए ,किसी के पेट में सुद्दे।।
कह “सागर” कविराय ,ना हक अपना छोड़ेंगे।
मानें ना सरकार ,ना तब तक रूख मोड़ेंगे।।
=====
बेखौफ शायर/गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, सागर कालोनी
[2/12, 10:15 AM] Naresh Sagar: सरफरोशी मेरे सर से नहीं जाती
चापलूसी की अदा हमसे नहीं आती।
मैं अपने जमीर को मरने दूं भी तो कैसे।
मेरे खून से मेरी जवानी नहीं जाती।।
=========2
देश लूटे और मैं चुप बैठूं ये कैसे हो सकता है
सत्ता अपनी नीति थोपे, ये कैसे हो सकता है
देश सुरक्षा फर्ज हमारा, पीछे कैसे हट जाऊं
जयचंद को महाराणा लिख दूं, ये कैसे हो सकता है।।
[2/12, 10:19 AM] Naresh Sagar: [27/01, 2:44 pm] Naresh Sagar: …………….गीत
*ये क्या हो रहा है
=
आतंकी अन्नदाता, बताया जा रहा हैं।
कैसा किस्सा ,ये सुनाया जा रहा हैं।।
सच के पीछे झूंठ, कौन सा छुपा है।
गोली -डंडा भी ,चलवाया जा रहा है।।
लालकिले की यूं ,बदल डाली कहानी।
नया झंडा कैसे, फहराया जा रहा है।।
क्या कोई साजिश तो, नहीं है ये गहरी।
दो अप्रैल को ,दोहराया जा रहा है।।
सच में ये किसान थे, या कोई जालिम।
देश को ये क्या, दिखाया जा रहा है।।
किसान भी मेरा है ,जवान भी है मेरा।
कैसा ये षड्यंत्र,रचाया था रहा है ।।
क्यूं ये हलचल है ,कैसी है अफरा- तफरी।
देश को किस रास्ते पै, लाया जा रहा है।।
गणतंत्र को गम में ,यूं तब्दील करके।
देश भक्ति का गीत ,गाया जा रहा है।।
एक दम कैसे ,ये माहौल है बदला ।
सोचकर ये सर ,चकराया जा रहा है।।
जांज तो इस बात की, करवा ही डालो।
तीर ये किसका , चलाया जा रहा है।।
रात भर रोती रही, यूं मां भारती ।
आजादी का मान, घटाया जा रहा है।।
किसान को जवान से, यूं लड़वाकर ।
देश को ये क्या, सिखाया जा रहा है।।
ये ही थे क्या ,अच्छे दिन सरकार तेरे।
खून से खून को, लडवाया जा रहा है।।
फूट जातीं आंख ,ये देखने से पहले।
तिरंगे के दिन तिरंगे को, हटाया जा रहा है।।
संविधान दिवस पर, हटाओ संविधान को।
देशद्रोही बिगुल, बजाया जा रहा है।।
बेच ना दे माली ,अब सारे चमन को।
खोलो आंखें, हाथ से सब जा रहा है।।
जाग सको तो जाग जाओ,ए- देश वालों
“सागर” तुमको, अब चेताया था रहा है।।
==========
बेखौफ शायर/गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[29/01, 1:19 pm] Mere Number: सच को सच कहने का हुनर रखता हूं।
मैं अपने सीने में भगत -असफाक रखता हूं।।
….. बेखौफ शायर.. डॉ. नरेश “सागर”
29/01/21
[2/12, 10:34 AM] Naresh Sagar: जो भी सच को सच लिखेगा, वो ही मारा जाएगा
लेकिन वो ये भूल गए ,वो भगत सिंह कहलाएगा
मैं भी सच को सच लिखूंगा ,तनिक नहीं घबराऊंगा
जब भी बातें सच की होंगी, याद सभी को आऊंगा
[2/12, 12:25 PM] Naresh Sagar: उसका धोखा भी मजबूरी थी।
मेरा बदलना भी धोखा क्यूं है।।
… बेखौफ शायर.. डॉ. “सागर”
[2/13, 8:36 PM] Naresh Sagar: विधा….गजल
आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए
दिनांक……13/02/2021
=========
आदमी को आदमी से, प्यार होना चाहिए।
फिर से रिश्तो का, वही श्रृंगार होना चाहिए ।।
छल- कपट में क्या रखा है, जो मिलेगा आपको?
नेक दिल हो तुम यही, दीदार होना चाहिए।।
हम परिंदे पालते हैं, सीखते कुछ भी नहीं ।
आने- जाने का खुला, व्यापार होना चाहिए।।
आदमी के हाथ में, ये तीर और तलवार क्यूं ?
प्यार- ममता से सजा ,संसार होना चाहिए।।
बहसीयाना हरकतों से, खुद को ना बदनाम कर।
हर सितमगर चीज पर,प्रहार होना चाहिए ।।
बट रहे हैं जाने क्यूं हम, जात- भाषा क्षेत्र में ?
क्यूं ना “सागर” सबका एक, करतार होना चाहिए।।
=========
बेखौफ शायर… डॉ. नरेश “सागर”
9149087291
[2/13, 9:06 PM] Naresh Sagar: दरिंदों के जिस्म जलाने होंगे।
Edit Post Delete Post
मोमबत्ती या नहीं, दरिंदों के जिस्म जलाने होंगे।
हाथ जोड़ने को नहीं, हाथ तोड़ने को उठाने होंगे।।
वो जो कानून और ,मानवता को तोड़ रहे हैं।
अपने हाथों से, अब ये दरिंदे मिटाने होंगे।।
कब तक देखेंगे लाश बेटी की बेआबरू सी हुई।
पर्दे शराफत के लोगों के चेहरों से हटाने होंगे।।
डरी है बेटियां परिवार है बड़ी दहशत में।
हमें अपने अंदर के जोश जज्बात जगाने होंगे।।
सरकार नहीं बोलेगी दरिंदे उन्हीं के हैं।
जलाने वाले घरों को चिराग बुझाने होंगे
बहुत हो चुकी खामोशियां बहुत जी लिए डर में
हाथों में अपने हथियार अब उठाने होंगे
मिलेगा न्याय नहीं तुमको सड़क पर आने से
न्याय हाथों में जिनके हाथ उनको दिखाने होंगे
तोड़ दो सागर अब दहशत की हर एक दीवारें
एक एक दरिंदे के नामोनिशान मिटाने होंगे
[2/14, 8:22 AM] Naresh Sagar: गीत …हैप्पी वैलेंटाइन डे
=============
प्यार पै भारी फाइन है,
देखो वैलेंटाइन है
जो भी मांझी संग पकड़ा,
डंडों का बदन पर साइन है………. देखो वैलेंटाइन है
घर से संभल -संभल जाना
बीवी को भी संग मत ले जाना
बैठे जो कहीं होटल में संग,
मीडिया की वहां लंबी लाइन है……….. देखो वैलेंटाइन है
फूल के बदले शूल मिले
राहों में जो किसी से पेच लड़े
मोहब्बत का नशा उतरे नीचे,
खाकी का गुस्सा टाईन है ……………….देखो वैलेंटाइन है
13 में मिलो 15 में मिलो
14 में s.m.s. युद्ध करो
यादों में गुम हो कर देखो
ख्वाबों की खुली वाइन है ……………….. देखो वैलेंटाइन है
हर तरफ खौफनाक पहरे
मिलने पर बादल है गहरे
सरे-राह मिलने पर कर्फ्यू ,
सपनों की खुली सब लाइन है …………….देखो वैलेंटाइन है
बजरंग दल यूं फूंकार रहा
पश्चिम को वो ललकार रहा
वैलेंटाइन पर रोक लगाने को
शिवसेना ने खोली ज्वाइन है ……………..देखो वैलेंटाइन है
इंकलाब करो मिलने वालों
खुलकर मिलो मिलने वालों
कह दो जमाने से तुम “सागर”
पी हमने इश्क की वाइन है ……………देखो वैलेंटाइन है!!
===मूल गीतकार … बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
9149087291
[2/14, 2:39 PM] Naresh Sagar: ====== गीतिका
दरिंदों के जिस्म जलाने होंगे।===============
मोमबत्ती या नहीं, दरिंदों के जिस्म जलाने होंगे।
हाथ जोड़ने को नहीं, हाथ तोड़ने को उठाने होंगे।।
वो जो कानून और ,मानवता को तोड़ रहे हैं।
अपने हाथों से, अब ये दरिंदे मिटाने होंगे।।
कब तक देखेंगे लाश, बेटी की बेआबरू सी हुई।
पर्दे शराफत के, लोगों के चेहरों से हटाने होंगे।।
डरी है बेटियां, परिवार है बड़ी दहशत में।
हमें अपने अंदर के, जोश जज्बात जगाने होंगे।।
सरकार नहीं बोलेगी, दरिंदे उन्हीं के हैं।
जलाने वाले घरों को, चिराग बुझाने होंगे ।।
बहुत हो चुकी ,खामोशियां बहुत जी लिए डर में।
हाथों में अपने, हथियार अब उठाने होंगे।।
मिलेगा न्याय नहीं, तुमको सड़क पर आने से।
न्याय हाथों में जिनके, हाथ उनको दिखाने होंगे।।
तोड़ दो “सागर” अब, दहशत की हर एक दीवारें।
एक- एक दरिंदे के, नामोनिशान मिटाने होंगे।।
=========
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना , रचनाकार की मूल वजह अप्रकाशित रचनाएं हैं।
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[2/14, 3:02 PM] Naresh Sagar: नहीं देखते प्रवासीयों को लोग
सही नज़र से
नहीं करते लोग उनसे प्यार से बातें
नहीं रहती उनकी बेटी और स्त्रीयों की इज्ज़त सुरक्षित
नहीं मिलते उनके बच्चों के लिए स्कूल
और नहीं मिलता उन्हें
सरकारी योजनाओं का लाभ
………. फिर भी आते हैं वो रोटी की तलाश में
काम की तलाश में
सपनों की तलाश में
…….करने अपनी जिम्मेदारीयां पूरी
जिनसे रखी जाती है दूरी
और किया जाता है जातिभेद
अपने ही देश में रहते हैं वो
पराये से
मगर फिर भी करते हैं वो सभी से हंसकर बातें
प्रवासी की भी डगर, मत समझो आसान।
अपने देश में रहता, जो खूब परेशान।।
======
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
01/02/2021
[2/14, 3:19 PM] Naresh Sagar: =====कविता
प्रवासी का दर्द
=========
घर से निकले थे बहुत सारी उम्मीदों के साथ
ढेर सारे सपने लिए
और
घनी सारी जिम्मेदारीयों के साथ
प्रवासी बनकर
कुछ दिनों दिक्कतों की उठा पटक के साथ हो गये स्थापित
और एक दिन अचानक एक महामारी के चलते होने लगे वापसी
उधर …….
जिधर छोड़कर आये थे
जन्म भूमि
टूटा- फूटा घर
परिवार और
बचपन की यादें
और वापिस ले जा रहें थे
टूटे सपने
अधूरी जिम्मेदारी
भूख- प्यास
पांवों में छाले
पैदल लम्बी यात्रा
और खो दिये थे कितनों ने अपने खून के रिश्ते……..
हाथ आयी तो बस हतासा
निराशा और वही
जार -जार रोती बिलखती ज़िन्दगी और घुटन।
========
प्रवासी का दर्द
============
छोड़ कर गांव को
पीपल वाली छांव को
घर रम्भाती गाय को
मां के टूटे पांव को
छोड़कर आ गया था वो
शहर में ……….
लेकर नंगें पांव को
रोटी की तलाश में
बेटी की शादी में दहेज देने के लिए
बेटे की पढ़ाई के लिए
मां के इलाज के लिए
और ……..
बीवी की रेशम की साड़ी के लिए
भूखा-प्यासा लगा रहता अभागा
दिन -रात मशीन पर
मशीन बनकर
अपने ही देश में बन गया परदेशी
क्योंकि ये था प्रवासी
कौन पढ़ता इसकी उदासी
लाखों सपने लेकर आया था
और हज़ार रुपए लेकर गया था घर
जहां हजार रुपए आटे में नमक के बराबर ही तो थे।
ना हुआ मां का इलाज
ना जमा हुई बेटे की फीस
ना जमा हुआ बेटी की शादी के लिए दहेज
और इस बार भी ना ला सका था
……… बीवी की साड़ी।
=======
प्रवासी की पद यात्रा
==========
अपने गांव , जिला और प्रदेश छोड़कर चल पड़ा बीवी बच्चों के साथ दूसरे नगर
साथ लेकर चंद रूखी रोटीयों के साथ
नंगे पांव ,फटे पुराने कपड़े लेकर
बहुत सारे सपनों के साथ
काम मिलने की खुशी में बनाए नमक के चावल और की अपने भगवान की पूजा
अभी ठीक से जमें भी नहीं थे पांव
और बंद हो गई मशीनें
रूक गयीं बस, टेम्पू और रेल गाड़ियों के पहिए
तेज गर्मी
तपती सड़क ,नंगे पांव
सूखे होंठ और पेट में भूख का दर्द लिए बढ़ने लगे अपने गंतव्य की ओर……..
सरकारी सहयोग बंद
मानवता डरी हुई
पुलिस के डंडे उफ़ ये जिंदगी भी क्या जिंदगी है
आंखों में टूटे सपनों के साथ बह रहे थे लाचारी के आंसू
कमाने की होड़ में खो दिये थे इस सफ़र में कितनों ने
अपने बच्चे
अपनी पत्नी
और ….. अपने पति
पाने की इच्छा में लौट रहे थे प्रवासी
बहुत कुछ खोकर उसी घर को
जहां से चले थे
……….वो कुछ लाने के लिए।
========
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत सभी रचनाएं कलमकार की मूल व अप्रकाशित रचनाएं हैं। जो केवल आपको ही भेजी जा रहीं है ।कलमकार को सर्वाधिकार प्राप्त है।।
[2/14, 7:17 PM] Naresh Sagar: गीतीका
=======
कैसे दिल से जाए ,उदासी प्रवासी।
मूलनिवासी बन बैठा है, प्रवासी।।
अपने घर में कैद है, जैसे सदियों से ।
जाती नहीं है घर से, अब तो उदासी।।
गैरों ने आकर, यहां डाला है डेरा।
और यहां का बनकर, रह गया प्रवासी ।।
ना शिक्षा है, ना दीक्षा है, ना रोजगार के साधन है।
रोजी- रोटी के खातिर, घर छोड़े प्रवासी।।
रोज कमाता, फिर भी खाली रहता है।
जैसे जीता, वैसे मरता प्रवासी।।
मेहनत है बेजा, मगर घर खाली है।
खुशियों को रोता, रहता है प्रवासी।।
सरकारी कानून, जुल्म ढहाने तक है।
मिले ना कोई लाभ, पराया प्रवासी।।
माना अपने देश में, ही रहते हैं।
खाए तानें हजार, देश में प्रवासी।।
जिल्लत में है जान, आंखों में है आंसू ।
खुशी से रहता दूर, देखलो प्रवासी।।
आओ हम ही आवाज,उठातें है “सागर”।
हो ना जाए, बेजार, हमारा प्रवासी।।
========
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[2/15, 6:48 PM] Naresh Sagar: आओ प्यार की पैंग बढ़ाएं
==============
कब से तुमको सोच रहा हूं।
कब से तुमको देख रहा हूं
जाने तुम कहां खोई हुई हो
जाने कितना सोई हुई हो
कब से मैं आवाज दे रहा
तुम हो कि सुनती ही नहीं हो
देखो मैंने गीत लिखा है
देखो मैंने क्या लिखा है
एक तस्वीर बनाई है मैंने
देखो किसका रंग चढ़ा है
आओ प्रिय आ भी जाओ
मौसम कितना खिला-खिला है
सुना है बसंत आ गया है
हम दोनों में क्या शिकवा है
आओ प्रिय हम भी मिल जाए
आओ प्रिय हम घुल मिल जाए
आओ प्रिय कुछ बातें कर ले
आओ प्रिय मुलाकातें कर ले
हम दुनिया को यह दिखलाएं
आओ प्रिय हम प्यार सिखाएं
आओ प्रिय हम प्यार सिखाएं
हम भी मिलकर गीत ये गाएं
आओ प्यार की पैंग बढ़ाएं।।
========
मूल गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
15/02/2021
[2/15, 9:55 PM] Naresh Sagar: विषय…… आत्मविश्वास
दिनांक…..15/02/2021
विधा….. आत्मविश्वास
============
कितनी बार टूटा हूं मैं
और मेरे सपने
मेरा विश्वास और…….
मेरी स्वयं की आस्था के साथ साथ मेरा मनोबल
और कितनी बार जोड़ने का काम किया है…..
मेरी मां ने,
मेरे पिताजी ने और
……………मेरी पत्नी ने!
गौतम बुद्ध ने भी कहा था …. अप्पो दीपो भव:!
……… कितनी बार सुनी बहादुर चींटी की कहानी
और कितनी बार पढ़ी मकड़ी से प्रेरणा लेकर जीतने वाले राजा की कहानी
……… और डॉ. अम्बेडकर का जीवन संघर्ष….. अब्दुल कलाम की यात्रा , इब्राहिम लिंकन का परिचय और जोड़ लिया स्वयं को और उठाली कलम ……..
लिखने नया इतिहास
लिखने नया इंकलाब
लिखने नया अध्याय
और ….. बदलने अपना मुकद्दर
जोड़ने अपने सपने
समेटने अपना विश्वास
और जोड़ने स्वयं से स्वयं की आस्था
आज मैं भरा हुआ हूं
पूरी तरहा से …….
आत्मविश्वास से ।
तभी तो रच रहा हूं कई देशों में साहित्य
और ज़िंदा हूं बहुत कुछ खोकर भी
क्योंकि मैंने पा लिया है
………….आप जैसे
बुद्धिमान मित्रों को
जिन्हें मैं खोना नहीं चाहता।
क्योंकि हममें कितने ही लोग
लड़ रहे हैं अपनी
जिंदगी की कठिनाईयों से
जिनसे मिलती है एक नई सीख
और बढ़ता है मेरा
आत्मविश्वास।।
=======
मूल रचनाकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
========15/02/2021
रात्रि….9.53
[2/19, 9:02 AM] Naresh Sagar: सच को सच में जो तो लेगा झूठ की वही पोल खोलेगा माना खतरा बढ़ा हुआ है इंकलाबी है खुद जलेगा जमीर अगर जिंदा रख रखते हो तुमको भी वह सब बोलेगा गुलामी में मरने से अच्छा लड़के मरजालम खोलेगा नाजुक है माहौल देश का कब खुद से खुद को तो लेगा लूट जाएगा जब सब तेरा क्या होठों को जब खुलेगा वैसे कुछ भी बचा नहीं है बातों से सपने तो लेगा जनता भूखी होगी सड़क पर कर दो फायर यह बोलेगा भूख बढ़ेगी काम ना हो का बीमारी का हल्ला होगा अब ज्यादा ना देख तमाशा वरना तू ही बंदर होगा सागर कहता आंखें खोलो वरना देश यह देश न होगा बदल चुका होगा सब अपना अपना भारत सपना होगा अपना भारत सपना होगा
[2/19, 9:05 AM] Naresh Sagar: सच को सच से, जो तौलेगा।
झूठ की वो ही, पोल खोलेगा।।
माना खतरा ,बढ़ा हुआ है।
इंकलाबी है ,खुद झेलेगा ।।
जमीर अगर ,जिंदा रखते हो।
तुमको भी, वो सब बोलेगा।।
गुलामी में, मरने से अच्छा ।
लड़कर मरजा, लव खोलेगा।।
नाजुक है, माहौल देश का।
कब खुद से, खुद को तौलेगा।।
लूट जाएगा जब सब तेरा क्या होठों को जब खुलेगा वैसे कुछ भी बचा नहीं है बातों से सपने तो लेगा जनता भूखी होगी सड़क पर कर दो फायर यह बोलेगा भूख बढ़ेगी काम ना हो का बीमारी का हल्ला होगा अब ज्यादा ना देख तमाशा वरना तू ही बंदर होगा सागर कहता आंखें खोलो वरना देश यह देश न होगा बदल चुका होगा सब अपना अपना भारत सपना होगा अपना भारत सपना होगा
[2/19, 7:01 PM] Naresh Sagar: बोलो किसने कल देखा है
जो कल पर बातें छोड़े हो
बड़ी रूकावट कल कर लेंगे
इससे बड़ा ना कोई धोखा है
बोलो कल किसने……………..
करले जो है आज है करना
करना ही है तो क्या डरना
कल बड़ा भारी है सब पर
छोड़ ना कल कहकर रब पर
आज मिला मुश्किल मौका है
इससे बड़ा ना कोई……………..
आलस्य का ये मांझी हैं
छुपा के रखता उदासी है
जीती बाजी ये हर वाता
कल मेरे भाई कभी ना आता
ये आंधी का बस झोंका है
इससे बड़ा ना कोई……………..
आज ही जीवन का सच यारा
कल ने कितनों को है मारा
नहीं कभी कल आने वाला
आज कभी नहीं जानें वाला
करले तू किसने रोका है
इससे बड़ा ना कोई……………
तू ही बता कल किसने देखा
कल ने जानें क्या क्या रोका
मत कल पर तू बात टालना
कल का ना तू भ्रम पालना
मिट गया जिसने कल तांका है
इससे बड़ा ना कोई…………
आओ कसम ये आज उठाएं
कल के ना झांसे में आएं
करना है जो आज करेंगे
कल पर ना कुछ भी छोड़ेंगे
“सागर” कल हर पल धोखा है…..।।
बोलो कल किसने देखा है …..??
=======
बेखौफ शायर/गीतकार/ लेखक
====डॉ. नरेश कुमार “सागर”
19/02/2021
[2/20, 1:08 PM] Naresh Sagar: ………… गीत
कब तक मार्च निकालेंगे
================
रोज बेटियां मारी जाती, तनिक नहीं इंतजाम है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का, नारा काम तमाम है।।
नहीं सुरक्षित बेटी है , रोज ये मारी जाती है।
सरे राह और सरेआम, इज्ज़त लूटी जाती है।।
कब तक डर के साए में, बेटी घर में बैठेगी।
कब तक इन दरिंदों की मूंछें, ताव पै एठेंगी।।
कब तक इन जालिमों को, खुल्ला छोड़ा जाएगा।
कब तक बहन बेटियों को, बोलो लूटा जाएगा।।
कभी जलाकर मारा जाता,कभी रस्सी से मार दिया।
कभी तेजाब फैंक जलाया , कभी जमीं में गाड़ दिया।।
कभी लूटली डोली उसकी, कभी किताबें छीनी है।
कितने ही मां बापो ने, बोटी – बोटी बीनी है।।
कब तक बोलो शोक मनाए,कब तक मार्च निकालेंगे।
कब तक जिम्मेदारी से अपनी, हम पल्लू को झाड़ेंगे।।
हमको ही घर से है निकलना, अपनी बेटी की खातिर।
कब तक झूंठी राहें देखें, बोलो सरकारी आखिर ।।
कब तक न्याय- न्याय चिल्लाकर,बेटी को मरबाओगे।
बेटी बचाने को ‘सागर’, क्या खुद भी बाहर आओगे ।।
========
बेखौफ शायर/गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[2/23, 6:09 PM] Naresh Sagar: उसकी जुल्फ़ें खुली हुई है।
सुनता रहता ताना बाना ।।
[2/25, 1:43 PM] Naresh Sagar: दलित हिन्दू का सच
==============
हां मैं हूं दलित हिन्दू
हमेशा दलने के लिए
पिटने के लिए
मरने के लिए
गाली खाने के लिए
बेजत होने के लिए
काम आता हूं……… क्योंकि
मैं दलित हिन्दू हूं।
सदियों से जबरदस्ती से हिन्दू बना हुआ हूं
जबकि…..
वो नहीं बैठने देते पास
वो नहीं कहने देते बात
वो नहीं जानें देते मंदिर
वो नहीं पढ़ने देते स्कूल
वो नहीं पहनने देते नये कपड़े
वो नहीं मनाने देते खुशीयां
फिर भी गिनती में रहा हूं शामिल
मैं दलित हिन्दू हूं…….।
मेरे छूने से हो जातें हैं ये अपवित्र
मेरे छूने से हो जातें हैं मंदिर मैले
जिन्हें धुलवाया जाता है पशुओं के मल मूत्र से
मैंने भी स्वयं को बना लिया ढीट
और बेशर्म
और करता रहा वहीं काम जिसके करने से होता रहा अपमानित कदम- कदम पर।
मगर क्या अब भी जरूरत है मुझे दलित हिन्दू बने रहने की …?
क्या मैं बौद्ध से फिर बौद्ध नहीं बन सकता …?
कब तक …… महज़
वोट डालने,
मंदिर बचाने ,
गाय बचाने की लड़ाई में मरने को शामिल होकर गर्व महसूस करते रहोगे।
मुझे किसी भी ग्रंथ , उपनिषद,
वेद……पुराण में हिन्दू नहीं माना
जानवर भी आजाद थे
अपनी जिंदगी जीने के लिए
…….. मगर हम बंदिशों में कैद
हमारे अधिकार किसने छीने
हमारी बहन- बेटियों को किसने लूटा
हमारे आगे मटका और पीछे झाड़ू किसने बांधी
……….और अब कौन लोग हैं
जो तोड़ रहे हैं हमारे मसीहा की प्रतिमाएं
खत्म करा रहे हैं आरक्षण
जला रहे हैं संविधान
और दे रहे हैं ऊंना,हाथरस, जैसी घटनाओं को अंजाम
क्या ये कार्य मुस्लिम कर रहे हैं…?
क्या ये अत्याचार इसाई करा रहे हैं …..?
कहीं सरदार तो ये काम नहीं करा रहे …..?
या अंग्रेजी सरकार का है ये फरमान ….?
इन सभी सवालों का एक ही जबाव है …….. नहीं।
फिर कौन है ………?
………….केवल हिन्दू।।
तो क्या अब भी दलित हिन्दू बनकर जान पूछकर गुलामी की बेड़ियां पहनकर खुद को नीच,अछूत, ढेड़,डोम, गंवार, हरिजन जैसे शब्दों से अपमानित होना चाहते हो …..?
छोड़ क्यूं नहीं देते वो धर्म
जिसे तुम्हारे मसीहा ने छोड़ दिया
जो तुम्हें कभी सम्मान दे ही नहीं सकता
दिल से कभी लगा ही नहीं सकता
अपने पास बिठा ही नहीं सकता
मैं अब दलित हिन्दू नहीं हूं
आप कब तक
दलित हिन्दू बनकर रहोगे…….
बोलो ………???
आज तुम किसी के दबाव में नहीं
अपने स्वार्थ और स्वाद में
जबरदस्ती के हिन्दू बने हुए हो
यही आपके शोषण का सबसे बड़ा कारण है…….सोचना ….??
========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश सागर
24/02/21
[2/25, 4:39 PM] Naresh Sagar: अपने मन की बात बताकर,
मेरे मन को तोडा है।
दिखलाकर अच्छे दिन मुझको,
आज कहां ला छोड़ा है।।
…… बेखौफ शायर… डॉ. सागर
[2/25, 8:38 PM] Naresh Sagar: इंसान हूं भगवान नहीं बनना है
मुझको लालच में शैतान नहीं बनना है
हां मेरा मन है कोमल कलियों सा
मुझको मगर खार नहीं बनना है
इंसान हूं……………
दिल में रख तू संवेदनाएं जिंदा
नज़र में रख मंजिल का परिंदा
दौड़ ना बेबजह की राहों पर
तुझको ही ताना बाना बुनना है
इंसान हूं…………..
कत्ल ना करना तू मानवता का
रूप ना रखना तू दानवता का
दर्द ले सके तो किसी का ले लेना
साथ लेकर सभी को चलना है
इंसान हूं…………..
काम जब भी करो अच्छे करो
मानवता के लिए जीओ मरो
पूजता है वो ही जो त्यागी है बना
प्रकृति का तू बड़ा एक गहना है
इंसान हूं……..!!
=======
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
25/02/2021
[2/27, 8:10 AM] Naresh Sagar: संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज
===========
मन चंगा तो कठौती में गंगा
पाखंडवाद को कर दिया नंगा
खूब यातनाएं सही थी तुमने
किया ना कोई भी खूनी दंगा
तुम ठहरे भगवान हमारे
पढ़कर मन हो जाता चंगा
कितनी बड़ी बातें की तुमने
मन चंगा तो कठौती में गंगा।।
जाति भेद की लड़ी लड़ाई
गर्दन ना कभी तुमने झुकाई
सारे शब्द फीके तुम आगे
चाहे गीत, गजल हो रुबाई
चीर के सीना भी दिखलाया
दिल के अंदर सारी खुदाई
कबीर, नानक सखा तुम्हारे
पाखंडवाद के पैर उखाड़े
चाम का राम-चाम का अल्लाह
करते क्यूं हो चमार का हल्ला
बड़ी जोर से तुम यह बोले…..
चारों वेद करो खाण्डोती।
जन रैदास करे दंडोति ।।
बामन पूजन मना तुम किन्हीं
हक अधिकार सब इन्होंने ही छीनी
सबन बराबर अन्न तुम मांगो
कहते- फिरते अब तो जागो
नवयुग के निर्माता तुम थे
कहां किसी से तुम भी कम थे
ताकत आगे कभी झुके ना
दौलत आगे कभी बिके ना
सदना पीर तुमसे था हारा
सिकंदर के भी है अंह को मारा
तुम थे बड़े साहिब करतारी
हम सब हैं साहिब आभारी
कोटि-कोटि नमन तुम्हें है
तुम थे इसलिए बस हम है ।
तुम थे इसलिए बस हम है।।
=========
जनकवि/ बेखौफ शायर
……. डॉ. नरेश कुमार “सागर”
26/02/2021….9149087291
[3/2, 12:45 PM] Naresh Sagar: बचपन में पढ़ी भी थी और…..
सुनी भी थी लकड़ियों के गट्ठर की कहानी
जो एक साथ नहीं टूटी थी और एक- एक करके आसानी से टूट गई थी।
…….सुनी थी चार बैलों की कहानी जिनसे शेर भी डरता था और लोमड़ी के बीच में आने से हो गये थे सभी शिकार… ।।।
एकता में दम है
. ……….मगर एकता खत्म है
एकता में शक्ति है
………..मगर हर ओर बिखराब की भक्ति है
एकता में बल है
………….ये गुजरा हुआ कल है।
…….आज एकता केवल शराबीयों में,
जुआरियों में,
चापलूसों में, दलालों में और ………..निठल्ले लोगों तक ही सीमित रह गई है।
……… फिर भी कोशिश करनी चाहिए एकता करने की
जैसे दिल्ली में किसान आंदोलन अपनी एकता के सहारे लड़ रहा है सरकार से लड़ाई।
जनमत की एकता ने बदल दिए हैं …………इतिहास
बदल दी है सत्ता
और …..बदल दिए हैं माहौल।
आओ हम भी देश हित में भारतीय संविधान को बचाने के लिए लें…….
एकता की सपथ।
हमारी एकता के आगे ही भागे थे
मुगल
और……. अंग्रेज़।।
========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[3/3, 11:40 PM] Naresh Sagar: बहुत दुःख होता है,जब याद आता है।
तुम्हारे साथ बिगाड़ा हुआ, वक्त अपना।।
======
तुम्हारी नफरतों से उठती हुई ये ऊंगलियां।
दिखाती है मुझे राहें जो भूल बैठा था मैं जिनको।।
=====
भूल हो गई बड़ी तुम्हें अपना समझने की।
तुम तो विभिषण थे, तुम्हें लक्ष्मण समझ बैठा।।
=======
तुम्हारी खोखली बातों को,मिशन मानकर हमनें।
गंवा डाले जिंदगी के दिन अंधेरों में ।।
=======
दलालों की बस्ती में, ठहरते दानी कब तक।
बिक जाते और उनको पता भी नहीं चलता।।
======
मुंह में राम बगल में छुरी रखने वाले।
एक दिन अपनी ही बगल को काट लेते हैं।।
======
ढोंग -ढोंग होता है एक दिन खुद ही जाता है।
ज्यादा देर तक जादू कभी क्या चलते देखा है।।
======
हम सुनकर चुप भी बैठें तो बैठने नहीं देते।
कुछ लोगों को औकात दिखानी पड़ी ही जाती है।।
======
कभी आईने में तो खुद को देख ना पाए।
चले हैं आईना लेकर औरों को दिखाने को।।
======
तुम्हारी फितरत ही है तो बुरा क्या मानूं।
चलो भौंकते रहो जगाने के लिए मुझको।।
======
गिराने में कभी तुमने कोई कसर तो नहीं छोड़ी।
पर हो गिरे कितने ये तुमने दिखा दिया।।
========
जिन्हें कहता रहा अपना वहीं डसते रहे मुझको।
कुत्ता भी कभी ऐसी नमक हरामी नहीं करता।।
======
आओ सीने से लगाकर भौंक दो खंजर।
इस हुनर से तो तुमने कई विश्वास मारें है।।
=======
बस अपनों को ही गिरा सकते हो तुम।
दुश्मनों के तुमने तो बस चाटे है तलवै।।
======
तुम्हें तो सोच कर भी शर्म आने लगी है।
कैसे लोगों को अपना बना बैठे सागर।।
=====
तुम्हारी तोड़ फोड़ ने तुम्हें इतना गिरा दिया।
गिरे हो तुम कहां जाकर कभी देखा नहीं तुमने।।
======
चलो माना मिटा दोगे मुझे तुम धोखे से।
मेरे लिखे हुए अल्फाज़ फिर भी बोल उठेंगे।।
=======
तुम्हारे नाम से तुम्हारी नफरतें दर्ज है साहब।
मेरे बाद भी जो गबाही में खड़ी होंगी।।
======
सच को सच मैं लिखता हूं और लिखूंगा।
अकेला शेर काफी है जंगल को जगाने को।।
=======
तुम्हारी नफरतों से जलाया हूं मैं शमां।
सोचता हूं तुम कितना याद करते हो मुझको।।
=====
चलो छोड़ा तुम्हें हमने और माफ़ भी किया।
तुम्हारी पूंछ वाली फितरत बदला मुश्किल है।।
======03/03/2021
रात्रि…..11.40
[3/4, 11:57 AM] Naresh Sagar: तुम्हारी खोखली बातों को, मिशन मानकर हमनें।
गवां डाले जिंदगी के, दिन अंधेरों में।।
….. बेखौफ शायर…. डॉ. नरेश “सागर”
[3/5, 7:43 PM] Naresh Sagar: विषय … मित्रता
दिनांक….05/03/2021
समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
विधा….. गीतिका
========
अब कहां मिलते हैं, दोस्त पहले से।
हो गए हैं सभी, नहले पै दहले से।।
मित्रता की बदल चुकी है, परिभाषा।
भरोसे के रिश्ते ,हो गए हैं मैले से।।
जेब से रिश्ते हैं अब, सबके यहां।
मनवा सबके, हो गए हैं झोले से।।
अब भरोसा करें ,तो किस पर करें।
दीन-ओ- इंमा, होने लगे करेले से।।
मित्र अब, जां देते नहीं हैं लेते हैं।
गंदगी के ,दिल में भरे तबेले से।।
मित्रता का रूप, बदला है ऐसा।
रहते हैं सब आज, फैले- फैले से।।
चोट इतनी खा चुके हैं, हम “सागर”।
रिश्ते सब, लगने लगे झमेले से।।
=====मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[3/5, 10:37 PM] Naresh Sagar: आया नहीं मुसाफिर,मौत आ गई।
भूख भी साथ मेरे,भूखी ही मर गई।।
…. डॉ. नरेश “सागर”
05/03/2021
[3/6, 12:03 PM] Naresh Sagar: ………. ग़ज़ल
सौ दिन किसान के
==================
सौ दिन क्या सौ जन्मों तक, डेरा नहीं उखाड़ेंगे।
अपनी जमीन पर कभी ना हम, दुश्मन का झंडा गाड़ेंगे।।
मेरी भूमि मेरी मां है, कैसे तुझको दे दूं मैं ।
अपनी सीमा अपनी कृषि, अपने आप संभालेंगे।।
अभी तो हम ही निकले हैं घर से, साथ और भी आएंगे ।
काले कानूनों के खिलाफ हम, मिलकर मार्च निकालेंगे।।
अन्नदाता को आतंकी, आंदोलन जीवी कहते हो।
जब तक जीत ना हो हमारी, सबको इसमें ढालेंगे।।
हमने ही ताकत दी थी ये, जिसको हम पर थोपा है।
संविधान की कसम हमें हैं, अपने हक को पालेंगे ।।
अन्याय के खिलाफ लड़ेंगें, चाहे जो भी हो जाए ।
इंकलाब लाने वालों को, सत्ता में हम ही उतारेंगे।।
भूख, गरीबी, बेरोजगारी, तुमने जी भर सोंपी है।
नई क्रांति जो लाएंगे ,अब बस उनको पालेंगे ।।
‘सागर’ रखो आवाजें ऊंची, और इरादे पर्वत से ।
जीत का अपने हम ही फिर, देश में झंडा गाड़ेंगे।।
=======
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार ‘सागर’
ग्राम… मुरादपुर सागर कॉलोनी , हापुड़
[3/7, 10:54 AM] Naresh Sagar: बुद्धि सागर जी को हार्दिक बधाई
????????
नन्ना – मुन्ना बुद्धि सागर
भरकर लाया खुशी का गागर
खुश रहो बढ़ो तुम आगे
पाखंडवाद जो देश से भागे
तुम उम्मीद लेकर घर आए
गली मोहल्ले सब मुस्काए
सबके चेहरे पर रौनक है
तेरी हंसी भी मनमोहक है
किलकारी से घर है जागे
तुम आए तो अंधेरे भागे
तुम नन्हे प्यारे से खिलौना
मेरे संग संग तुम भी हंसो ना
======
जनकवि/बेखौफ शायर/लेखक
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[3/7, 11:35 AM] Naresh Sagar: समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान भारत
==========
कुछ तो लोग कहेंगे कह लो
विषय… कुछ तो लोग कहेंगे
विधा ….. गीत
दिनांक…..07/03/2021
======
कुछ तो लोग कहेंगे कह लो
काम करो अभी चुप रह लो
पहले चमका लो राहों को
फिर तुम भी चाहे जो बोलो
कुछ तो लोग …………..
इनका क्या है कुछ भी कहदें
बीज नफरतों के ये बोदें
इनको आता बस कह देना
मत इनसे उलझे तुम रहना
इनको ना अच्छे से तोलो
कुछ तो लोग ……………..
इनकी उंगली उठती सब पर
यह इल्जाम लगा दे रब पर
ये विभिषण के हैं साथी
इनको समझो मखना हाथी
अपना आपा इनसे बचा लो
कुछ तो लोग ……………..
इनको तुम बस स्वान समझ लो
इनको गंदा गान समझ लो
इनके कहनें पर ना जाना
इन पर ना तुम ध्यान लगाना
इनसे अपना ध्यान हटा लो
कुछ तो लोग …………….
तुमको बस बढ़ते जाना है
अपने कद को चमकाना है
ध्यान रखो अपनी मंजिल पर
खुद को ना ऐसे धूमिल कर
इनकी कच्ची बात पचालो
कुछ तो लोग …………..
बाधाओं से हमको लड़ना
हर हालत में आगे बढ़ना
इनकी सब बातों को भुला दो
इनकी बातें इन पर लाधो
“सागर” सुन कानों पर टालो
कुछ तो लोग ………..
काम करो अभी चुप रह लो
पहले चमका लो राहों को
फिर तुम भी चाहे जो बोलो
कुछ तो लोग कहेंगे कह लो।।
==========
प्रस्तुत गीत गीतकार का मूल व अप्रकाशित गीत है
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[3/8, 11:32 AM] Naresh Sagar: ====भारत की नारी===
हर क्षेत्र में खड़ी हुई है, देखो भारत की नारी
नहीं रही पैरों की जूती, अब ये भारत की नारी
अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल, लाकर जो सम्मान दिया
देखो कैसे बढ़ रही, आगे अब भारत की नारी
इंदिरा और लता सरीखी ,माया- ममता तक देखो
हिमा दास- सानिया मिर्जा ,और कल्पना चावला देखो
ऐश्वर्या- टीना डाबी ,क्या-क्या इसको बना दिया
रच कर नया इतिहास नारी ने, नव भारत निर्माण किया
सावित्रीबाई फुले और, झलकारी बाई
कैसे भूले त्याग टेरेसा कैसे भूले रमाबाई
हर क्षेत्र में दौड़ रही हैं, देखो भारत की नारी
अबला नहीं अब सबला है, देखो भारत की नारी
रोशन इससे घर सारा, रोशन दुनियादारी है
अस्मत खातिर, फूलन देवी बन जाती है ये नारी
मत समझो कमजोर इसे तुम, ऐ बहसी नादानों
रोज नया इतिहास रच रही, देखो भारत की नारी
तू जग जननी- त्यागमूर्ति, तू झांसी वाली रानी
तेरे आगे अच्छे-अच्छे, भरते देखे हैं पानी
नमन तुझे सौ वार हमारा, तू सिरमोर हमारी है
तेरे खातिर दरिंदों से ,छीड रही जंग हमारी है
भारत मां का रूप है तुझ में, तुझमें शक्ति बैठी है
हर क्षेत्र में अब तनकर, अफसर बनकर बैठी है
नारी सशक्तीकरण की, अब तो जय बोलो
मर्दों से भी देखो आगे, निकल रही है नारी
फौजी ,और पहलवानी में भी, है तेरी दावेदारी
रच रही इतिहास रोज अब, देखो भारत की नारी।।
==========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
08/03/2021
[3/8, 5:38 PM] Mere Number: नारी का सम्मान करो तुम।
ना इसका अपमान करो तुम।।
======विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई
भारत रत्न, संविधान निर्माता , नारी जाति के मुक्तिदाता डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी ने हिंदू कोड बिल को लाकर भारतीय नारी को पैरों की जूती से महारानी बना दिया। हमें ये बधाई देने का हक तभी है जब हम इसके सम्मान की सपथ ले।
शादी का लड्डू खाकर मैंने हमेशा सुखद अहसास किया है क्योंकि मुझे इतने अच्छे विचारों वाली और मजबूत इरादों वाली एक समझदार पत्नी जो मिली है , हमेशा मेरे साथ खड़ी रहने वाली।
जीवन में हर तरहा की आपदा मैंने झेली है ….. झूठे आरोप , भूख , शारीरिक व्याधियां, वनवास, आर्थिक परेशानी कानूनी कार्रवाई , साथियों के धोखे और अपनों के अत्याचार मगर हर हालात में ये एक ढाल बनकर मेरे साथ खड़ी होकर मेरा हौसला बढ़ाती रही । क्या ऐसी पत्नी कभी अपमान की भागीदारी हो सकती है ?
===== मैंने ये पोस्ट आपके लाइक, कमेंट के लिए नहीं पोस्ट की हां आपके आशीर्वाद और दुआओं का स्वागत है । मैंने ये पोस्ट डाली है इसलिए ताकि पुरुष प्रधान समाज भी महिलाओं का सम्मान करें।
आप सभी का आभार।
========आपका जनकवि/ बेखौफ शायर/लेखक
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
=========9149087291
[3/11, 7:19 AM] Naresh Sagar: कुछ लोगों के दिमाग में इतनी सडांद है।
गुलाब में भी उन्हें, बदबू गू की आती है।।
[3/11, 7:22 AM] Naresh Sagar: कुछ लोगों के दिमाग में इतनी सडांद है।
गुलाब में भी उन्हें, बदबू गू की आती है।।
…. बेखौफ शायर… डॉ. सागर
11/03/2021
[3/12, 1:34 PM] Naresh Sagar: पीले जितनी पीनी है भैया तो शराब 5 साल तक देना होगा इसका तुझे हिसार जो हारेगा वही कहेगा खूब पिलाया पेशाब जा जाकर घर मांगेगा तुमसे बड़ा हिस्सा 5 साल की यह शराब तुमको करेंगी चित्र
[3/12, 5:48 PM] Naresh Sagar: चुनावी दौर के नेता
चुनावी नौटंकी बाजो के लिए गीत
*******************-*
आया है चुनावी मौसम,
सीने से लगा लेंगे
बेशक घर शूद्र का हो,
खाना भी खा लेंगे
आया है चुनावी मौसम ************
वैसे तो नीच हो तुम
सर्वोच्च बना देंगे
अब तो हम घर का तुम्हारा ,
कूड़ा भी उठा लेंगे
आया है चुनावी मौसम *********
गाली भी तुम्हारी हमको
अब प्यारी लगती है
जूते चप्पल मारोगे
हम वो भी खा लेंगे
आया है चुनावी मौसम********
ईमान नहीं हमारा
बेईमान बहुत है हम
दे दे के भाषण तुमको
भाषण में फंसा लेंगे
आया है चुनावी मौसम ************
हिंदू तो नहीं हो तुम
हिंदू भी बना देंगे
सत्ता के लिए हम तुमको
सर पर भी बिठा लेंगे
आया है चुनावी मौसम********
अंबेडकर को नमन करेंगे
संविधान जला देंगे
तुम्हारी मूर्खता को हम
अपनी जीत बना लेंगे
आया है चुनावी मौसम ********
गद्दार है मुस्लिम सारे
अब भाई बना लेंगे
किसान की बेबसी पर
आंसू भी बहा लेंगे
आया है चुनावी मौसम********
औकात तुम्हारी तुमको
हम क्या है दिखा देंगे
सत्ता में जरा आने दो
फिर बदला भी लेंगे
आया है चुनावी मौसम
[3/12, 5:55 PM] Naresh Sagar: …….. गीत…..
आओ मतदान करें
============
मतदान आ गया है, मत को ना रोकिए
गुंडे -भ्रष्ट लोगों को , आने से रोकिए
घर से निकलना सोचकर, देना है किसे वोट
अपने पड़ोसी को भी, एक बार टोकिए
मतदान आ गया है ——-
यह वोट का अधिकार, यूं ही ना मिला है
कितने ही शहीदों की, शहादत का सिला है
संविधान में सभी को, अधिकार मिला है
अधिकार अपने यूं ही, ना तुम जाने दीजिए
मतदान आ गया है ——-
छोटी सी भूल का, बड़ा हर्जाना मिलेगा
5 साल तक फिर कोई, गुंडा ही मिलेगा
बोयेगा जातिवाद का, जहरीला बीज वो
राम और रहीम की ,लड़ाई को रोकिए
मतदान आ गया है ——-
तुम अपनी वोटो से, भ्रष्टों को चोट दो
जो देश की सोचे, बस उसी को वोट दो
ना नोट के बदले में, बेचना वोट तुम
तुम देश को लुटने और बिकने से रोकिए
मतदान आ गया है —–!!
———-
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम..मुरादपुर, सागर कॉलोनी, हापुड़, उत्तर प्रदेश
9149087291
[3/14, 7:35 AM] Naresh Sagar: मनुवाद के अत्याचारों की करदी जिसने शाम
वो मसीहा था हमारा भैया कांशीराम
राजनीति के क्षेत्र में जिसने गढ़ दिये नये आयाम
वहीं तो नेता था हमारा भैया कांशीराम
तिलक तराजू और तलवार को कर दिया काम तमाम
वहीं यौद्धा था हमारा भैया कांशीराम
मायावती को बना के ही एम
[3/14, 8:16 AM] Naresh Sagar: सच बोलों तो देखलो, साथ खड़ा है कौन।
आगे करके वो तुझे,हो ना जाए मौन।।
[3/14, 1:45 PM] Naresh Sagar: सच बोलों तो देखलो, साथ खड़ा है कौन।
आगे करके वो तुझे,हो ना जाए मौन।।
[3/14, 2:17 PM] Naresh Sagar: …….. साहब कांशीराम……
==========
मनुवादी पाखंड की, करदी जिसने शाम।
वो मसीहा था अपना, साहब कांशीराम।।
राजनीति के क्षेत्र में, गढ़ दिए नये आयाम।
वो ही तो नेता थे अपने, साहब कांशीराम।।
वर्ण व्यवस्था पर जिसने, खींची खूब लगाम।
हां वही तो योद्धा था , साहब कांशीराम।।
मायावती को बना सी.एम.,कर दिया जग में नाम।
चारों तरफ होने लगी , चर्चा कांशीराम।।
खूब लगाने आए पर , लगा सके ना दाम ।
पद लालच से दूर थे, साहब कांशीराम।।
अम्बेडकर अनुयाई थे, नहीं किया आराम।
साइकिल से प्रचार था,करते कांशीराम।।
हमको दे गये सोच वो,और राजनीति धाम।
कोटि-कोटि नमन तुम्हें, साहब कांशीराम।।
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जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम.. मुरादपुर, सागर कालोनी, हापुड़,उ.प्र.
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना रचनाकार की मूल वजह अप्रकाशित रचना है।
14/03/2021
[3/14, 4:58 PM] Naresh Sagar: लोकतंत्र है खतरे में,मिलकर इसे बचाओ।
लोकतंत्र जो लूट रहे है,उनको आज भगाओ।।
कहने को बस लोकतंत्र है,बैसे है खतरे में।
[3/14, 5:11 PM] Naresh Sagar: राजनीति के नीचे दबकर, लोकतंत्र रोता है।
सत्ता में जिसको बैठाया,जाति बीज बोता है।।
बस कहने को लोकतंत्र है, दहशत भरी हुई है।
लोकतंत्र की गर्दन पर,शमशीर रखी हुई है।।
[3/14, 5:13 PM] Naresh Sagar: लोकतंत्र है खतरे में,मिलकर इसे बचाओ।
लोकतंत्र जो लूट रहे है,उनको आज भगाओ।।
कहने को बस लोकतंत्र है,बैसे है खतरे में।
दहशत भरी हुई है यारो,एक- एक कतरे में।।
[3/14, 5:18 PM] Naresh Sagar: लोकतंत्र के साथ यहां, संविधान खड़ा है खतरे में।
गद्दारी अब दौड़ रही है, नेताओं के कतरे- कतरे में।।
जाति वाद के नाम कभी, ले धर्म की आड़ लिए।
मरता रोज प्रजातंत्र, दहशत का पहाड़ लिए।।
[3/14, 5:23 PM] Naresh Sagar: कहां है प्रजातंत्र दिखाओ, नेताजी।
खा गये लोकतंत्र , हमारे नेता जी।।
बस भाषण में जिंदा, अभी दिखता है।
करते खूब आवाज, हमारे नेता जी।।
[3/14, 5:28 PM] Naresh Sagar: रोता है हर रोज, लोकतंत्र छुपकर।
कौन सुखी परिवार,बताओ तो आखर।।
कहना है दुश्वार,सच को सच कहना।
देखो बुरा हाल ,कभी बस्ती में आकर।।
[3/14, 5:32 PM] Naresh Sagar: संविधान और लोकतंत्र है खतरे में।
गद्दारी है छीपी ,किसी के कतरे में।।
पूंजीपतियों के लिए,सब हाजिर है।
[3/14, 5:42 PM] Naresh Sagar: लोकतंत्र फुटबॉल, बनकर रह गया है।
जिसका भी मन किया, खेला गया है।।
आया है चुनाव,देखना फुर्सत से।
किसको कितने में, यहां तौला गया है।।
[3/15, 5:46 PM] Naresh Sagar: मंच.. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
दिनांक……15/03/2021
विषय…… लोकतंत्र
विधा….. मुक्तक
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राजनीति के नीचे दबकर, लोकतंत्र रोता है।
सत्ता में जिसको बैठाया,जाति बीज बोता है।।
बस कहने को लोकतंत्र है, दहशत भरी हुई है।
लोकतंत्र की गर्दन पर,शमशीर रखी हुई है।।
दो………..
लोकतंत्र है खतरे में,मिलकर इसे बचाओ।
लोकतंत्र जो लूट रहे है,उनको आज भगाओ।।
कहने को बस लोकतंत्र है,बैसे है खतरे में।
दहशत भरी हुई है यारो,एक- एक कतरे में।।
तीन………….
लोकतंत्र के साथ यहां, संविधान खड़ा है खतरे में।
गद्दारी अब दौड़ रही है, नेताओं के कतरे- कतरे में।।
जाति वाद के नाम कभी, ले धर्म की आड़ लिए।
मरता रोज प्रजातंत्र, दहशत का पहाड़ लिए।।
चार…………..
कहां है प्रजातंत्र दिखाओ, नेताजी।
खा गये लोकतंत्र , हमारे नेता जी।।
बस भाषण में जिंदा, अभी दिखता है।
करते खूब आवाज, हमारे नेता जी।।
पांच………….
रोता है हर रोज, लोकतंत्र छुपकर।
कौन सुखी परिवार,बताओ तो आखर।।
कहना है दुश्वार,सच को सच कहना।
देखो बुरा हाल ,कभी बस्ती में आकर।।
छ:………….
लोकतंत्र फुटबॉल, बनकर रह गया है।
जिसका भी मन किया, खेला गया है।।
आया है चुनाव,देखना फुर्सत से।
किसको कितने में, यहां तौला गया है।।
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जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
14/03/2021
9149087291
[3/17, 12:10 PM] Naresh Sagar: मंदिर, मस्जिद में ख़ुदा नहीं मिलता।
अब तो इंसान में इंसान नहीं मिलता।।
ढूंढते फिरते हैं वहीं पत्थरों में ख़ुदा।
मां, बाप को जिन घरों में कोना नहीं मिलता।।
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जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
17/03/2021
[3/17, 6:59 PM] Naresh Sagar: इंसा हूं इंसा रहने दो अच्छा है।
बात जुबां की कहने दो अच्छा है
जाति होती है जानवरों की बस
ना इंसा को बंटने दो अच्छा है
[3/18, 9:42 AM] Naresh Sagar: हमारे पास है दो दो राम।
कांशीराम – गंगाराम ।।
[3/18, 11:24 AM] Naresh Sagar: वक्त बुरा है जानें वालों को जानें दो।
इसी बहाने डस्ट को बहुत जानें दो।।
[3/18, 11:44 AM] Naresh Sagar: वक्त बुरा है जानें वालों को जानें दो।
इसी बहाने डस्ट को बह जानें दो।।
[3/18, 11:45 AM] Naresh Sagar: वक्त बुरा है जानें वालों को जानें दो।
इसी बहाने से डस्ट को बह जानें दो।।
[3/18, 11:55 AM] Naresh Sagar: घर लूटा और कह दिया,जगाओ आत्मविश्वास।
ये साहब की खासियत
[3/18, 1:54 PM] Naresh Sagar: अपने पास है दो दो राम।
कांशीराम – गंगाराम ।।
………… बेखौफ शायर
[3/21, 2:43 PM] Naresh Sagar: शेर…
दिल में ज़िगर में, नज़र में रखते हैं।
हम अपने रहूं में, हिंदूस्थान रखतें हैं।।
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हादसों की सफ़र में कमी तो नहीं है।
देखना मेरी आंखों में नमी तो नहीं है।।
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अकेला हूं तो अभी जिंदा हूं ।
भीड़ में कब का मर गया होता।।
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वक्त जब इम्तिहान लेता है।
सारे रिश्तों को छान देता है।।
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मुक्तक
सरफरोशी मेरे सर से नहीं जाती।
चापलूसी की अदा, हमसे नहीं आती।।
मैं अपने जमीर को मरने दूं भी तो कैसे।
मेरे खून से मेरी जवानी नहीं जाती।।
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अन्नदाता को सताया जा रहा है।
पूंजीपतियों को, बढ़ाया जा रहा है।।
छीनकर सुख,चैन जनता के सारे।
मन की बातों को, सुनाया जा रहा है।।
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जो भी सच को सच लिखेगा,वो ही मारा जाएगा।
लेकिन वो ये भूल गए,वो भगत सिंह कहलाएगा।।
मैं भी सच को सच लिखूंगा,तनिक नहीं घबराऊंगा।
जब भी बातें सच की होंगी, याद सभी को आऊंगा।।
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देश लूटे और मैं चुप बैठूं, ये कैसे हो सकता है।
सत्ता अपनी नीति थोपे,ये कैसे हो सकता है।।
देश सुरक्षा फर्ज हमारा, पीछे कैसे हट जाऊं।
जयचंद को महाराणा लिख दूं, ये कैसे हो सकता है।।