बिखरी यादें…..5
[3/22, 1:18 PM] Naresh Sagar: समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
विषय====भूख ,
***कविता …..
…………भूख , रोटी और आवाज
दरवाजे पर खडा भिखारी
बार..बार हर बार बस एक ही वाक्य दोहराये जा रहा था,
ए माईं कुछ खानें को दे दे
जीजमान कुछ खानें को दे दे
उसकी ये खुश्क तेज आवाज
चीर रही थी ………धनिया का दिल
और भीगो रही थी ……पारों की आँखे!
क्योंकि …. रात बच्चे सोये थे भूखे
और आज सुबह भी जैसे भूख ही लेकर आयी थी उसके द्वारे,
घर के अंदर और घर के बाहर एक ही चीज समान थी
और वो थी………भूख
भूख और सिर्फ भूख !
फर्क था तो बस ये कि …./.एक मौन थी और दूसरी में आवाज थी,
दोनों ही लाचार थे
एक दूजे से अन्जान थे
बाहर वाला ये नही जानता था कि …….
अन्दर वाला उससे भी बुरी हालत में है
बस वो बेचारा बेवश चिल्ला भी नही सकता था !
दर्द बाहर भी था
दर्द अन्दर भी था
भूख इधर भी थी
भूख उधर भी थी
लाचारी इधर भी थी
बेगारी उधर भी थी
ये कुछ और नही थी
बस गरीबी थी
गरीबी थी
……और ../…
गरीबी थी !!
**********
जन कवि (बैखोफ शायर)
***********
डाँ. नरेश कुमार “सागर”
====9149087291
[3/22, 4:35 PM] Naresh Sagar: उसकी सूरत पै तरस क्या आया।
जिंदगी अपनी बिगाड़ बैठे हम।।
… बेखौफ शायर… डॉ. सागर
22/03/2021
[3/24, 8:01 AM] Naresh Sagar: बुरे वक्त ने बुरा सबका , बना दिया “सागर”।
वफादारों की वफ़ा भी, खूब देखी हमनें।।
……. बेखौफ शायर.. डॉ. सागर
25/03/2021
[3/25, 7:41 AM] Naresh Sagar: मौन का मतलब डर नहीं होता , मौन…… साधना, चिंतन,समाधि और खोज करने का एक बड़ा योग मंत्र भी हो सकता है।…. डॉ.नरेश “सागर”
[3/25, 7:44 AM] Naresh Sagar: कोशिश ना कर,हमें डराने की।
कसम है,मौत को हराने की।।
…. बेखौफ शायर… डॉ. सागर
25/03/2021
[3/28, 1:00 PM] Naresh Sagar: मन रंगों-तन रंगों,और रंगों विचार।
होली खेलो प्यार से,मत भूलो व्यवहार।।
[3/28, 1:01 PM] Naresh Sagar: मन रंगों – तन रंगों , और रंगों विचार।
होली खेलो प्यार से,मत भूलो व्यवहार।।
[3/28, 8:58 PM] Naresh Sagar: फिर इतिहास दोहराया तुमने
राज रत्न सुख पाया तुमने
घर में खुशियां छाई हजारों
नाचों गाओ खूब बहारों
बुद्ध प्रिया की गोद में खेलें
घर में लगे हुए हैं मेले
बुद्धि सागर हर्षित होकर
गाते लोरी बच्चा बनकर
याद भीम इतिहास दिलाया
नाम राज रत्न रखबाया
तुम हो पक्के मिशनरी भाई
जी मैं आता पढूं रूबाई
खुश रहे ये लाल तुम्हारा
ये ही बनेगा कल को सहारा
दूर तलक खुशीयां हर सायीं
अभी पड़ेगी घर में बधाई
करे तथागत कृपा तुम पर
हुआ नशा खुशीयों का हम पर
“सागर” देता पुनः बधाई
बजती रहें घर पर शहनाई।।
========
जन कवि/बेखौफ शायर
====डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291…..9897907490
[4/1, 10:50 AM] Naresh Sagar: कितने सुंदर विचार और शब्दों से शुरू हुआ भारतीय संविधान
…….हम भारत के लोग
ना कोई जाति
ना कोई धर्म
ना कोई भेद – भाव
बस
……हम भारत के लोग
जहां रहते हैं सभी एक साथ
थामकर एक दूजे का हाथ
गाते है एक राष्ट्र गान
और देते हैं सबको सम्मान
खाना खाने से पहले
लगातें है धरती मां को भोग
…….हम भारत के लोग ।।
एकता में अनेकता
प्रेम , बंधुता
मौसम की मस्ती
पानी की कस्ती
अमीरों की हस्ती
गरीबों की बस्ती
सभी का मिलता है
देखने को रंग
मौसम की तरहां
सबका मालिक एक होने के बाद भी मिलता है
…….. जाति धर्म का रोग
………हम भारत के लोग।।
[4/1, 11:03 AM] Naresh Sagar: मुझे बीमारी है, इलाज नहीं मिलता।
शहर में किसी का चेहरा,खिला नहीं मिलता।।
सच बोल दूं तो ,रूठ जाते हैं सब अपने।
झूठ बुलाता नहीं , क्यूंकि मुंह नहीं खुलता।।
…… जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
[4/2, 10:51 AM] Naresh Sagar: चलों अब छोड़ दो अकेला मुझको।
बाद मरने के तुम्हें आना होगा ।।
[4/2, 5:43 PM] Naresh Sagar: कितने सुंदर विचार और शब्दों से शुरू हुआ भारतीय संविधान
…….हम भारत के लोग
ना कोई जाति
ना कोई धर्म
ना कोई भेद – भाव
बस
……हम भारत के लोग
जहां रहते हैं सभी एक साथ
थामकर एक दूजे का हाथ
गाते है एक राष्ट्र गान
और देते हैं सबको सम्मान
खाना खाने से पहले
लगातें है धरती मां को भोग
…….हम भारत के लोग ।।
एकता में अनेकता
प्रेम , बंधुता
मौसम की मस्ती
पानी की कस्ती
अमीरों की हस्ती
गरीबों की बस्ती
सभी का मिलता है
देखने को रंग
मौसम की तरहां
सबका मालिक एक होने के बाद भी मिलता है
…….. जाति धर्म का रोग
………हम भारत के लोग।।
समानता की बात
अभिव्यक्ति की आजादी
बंधुता की कहानियां
एकता की शहनाईयां
बराबरी की बातें
नारी को सौगातें
सबके मन की बात
नहीं किसी से घात
मनाते फिर भी शोग
…….हम भारत के लोग।
दुनिया में सबसे महान
दुनिया में सबसे अच्छा
भारतीय संविधान
फिर भी कुछ गद्दार ये कहते
है ये तो बेजान
………..मिटने नहीं देंगे
………..हटने नहीं देंगे
…………बंटने नहीं देंगे
हम ये महान संविधान
डॉ.अम्बेडकर का मानों सब एहसान
जिसने इतना अच्छा दिया
हमको ये संविधान
इसके कारण ही आजादी
इसके कारण ही आबादी
रहे सभी है भोग
……….हम भारत के लोग।
……….हम भारत के लोग।।
=========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
सागर कालोनी…. हापुड़, उत्तर प्रदेश
9149087291
[4/4, 5:08 PM] Naresh Sagar: मंच…. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
विषय…. सामाजिक न्याय
विधा….. गीत
======
सदियों रहा जिन पर अन्याय।
कहां मिला उन्हें अब तक न्याय।।
जुल्म हजारों सहते रहते ।
मिला ना कभी सामाजिक न्याय।।
जाति भेद कभी धर्म लड़ाई।
कुछ लोगों ने आग लगाई।।
आरक्षण के नाम पै शोषण।
शिक्षा हो गई खुब कुपोषण।।
मंदिर पर अभी लगें हैं पेहरे।
बादल बहुजन पर है गहरे।।
खुलकर बोले तो हो दंडित।
हंसकर बोले तो हो दंडित।।
शादी नहीं रचाता पंडित।
मूंछ रखें तो सांसें खंडित।।
झूंठी चोरी में फसवाते।
सड़क पै नंगी औरत घूमाते।।
बच्चे खेलें मारें गोली ।
हक मांगे तो खून की होली।।
संविधान ने दी आजादी।
मिली नहीं अब तक आजादी।।
न्याय सामाजिक नहीं है मिलता।
नहीं फूल खुशियों का खिलता।।
आडम्बर संविधान पै भारी।
जातिवाद की जड़ हत्यारी।।
आओ कभी तो तुम मिल जाओ।
नफ़रत की दीवार गिराओ।।
सबको लेकर साथ चलेंगे।
सागर नया इतिहास गढ़ेंगे।।
सबको सामाजिक न्याय चाहिए।
हां हमको संविधान चाहिए।।
हम भी है इस देश के बच्चे।
हमें समान अधिकार चाहिए।।
ऊना,झांसी,हाथरस, सहारनपुर।
जैसा नहीं अब कांड चाहिए ।।
अब सामाजिक न्याय चाहिए।
हां हमको संविधान चाहिए।।
==========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
========
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[4/6, 8:47 AM] Naresh Sagar: आओ बड़े शान से ,जय भीम गान गायेंगे।
जन्म दिन बाबा का, धूमधाम से मनायेंगे।।
छोड़ पाखंडवाद नीले रंग में रंग जायेंगे।
बौद्ध बन भारत को , बौद्धमय बनायेंगे।।
======
जनकवि/बेखौफ शायर.. डॉ. सागर
9897907490….9149087291
[4/6, 8:48 AM] Naresh Sagar: आओ बड़े शान से ,जय भीम गान गायेंगे।
जन्म दिन बाबा का, धूमधाम से मनायेंगे।।
छोड़ पाखंडवाद, नीले रंग में रंग जायेंगे।
बौद्ध बन भारत को , बौद्धमय बनायेंगे।।
======
जनकवि/बेखौफ शायर.. डॉ. सागर
9897907490….9149087291
[4/6, 9:23 AM] Naresh Sagar: आज की बात, जो बुरी लगती है तुम्हें।
कल यही बातें, सच का आईना होंगी।।
….. जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
…….06/04/2021
[4/6, 9:23 AM] Naresh Sagar: आज की बात, जो बुरी लगती है तुम्हें।
यही बातें कल, सच का आईना होंगी।।
….. जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
…….06/04/2021
[4/6, 5:04 PM] Naresh Sagar: मुझको भागीदारी चाहिए
?✍???…………….
मुझको भागीदारी चाहिए ।
अपना हक अधिकार चाहिए।।
मैं भी हूं इस देश का बेटा।
मुझको भी सम्मान चाहिए ।।
शिक्षा का सम्मान चाहिए।
बराबरी का रोजगार चाहिए।।
धर्म से क्यूं दूर रखते हो मुझको।
कुछ मंदिरों का व्यापार चाहिए।।
आरक्षण तुम आज छीन लो ।
कुछ खेतों पर राज चाहिए ।।
स्वर्ण – शुद्र का भेद मिटाकर।
मानवता अधिकार चाहिए ।।
भारतवासी भाई भाई है ।
समता का अधिकार चाहिए।।
धर्म लड़ाई बंद करों अब।
संविधान का राज चाहिए।।
कब तक छुटभैया बन नाचे।
पी.एम.पद का भार चाहिए।।
ऊंच नीच के पाखंडवाद से।
हमको अब तो निजात चाहिए।।
मेरे हिस्से का मुझे दे दो।
बराबर का अधिकार चाहिए।।
सब में ठीक से हो बंटवारा।
सब में भागीदारी चाहिए।।
शिक्षा और शिवाले दे दो।
मुझको सही निवाले दे दो।।
मेरे नाम भी करो मीडिया।
मुझको खेत खलिहाने दे दो।।
दे दो मुझको फिल्मी दुनिया।
मुझको मील-खदाने दे दो।।
मुझको हिस्सा चौथाई चाहिए।
मुझको एक- एक पाई चाहिए।।
“सागर” एक बराबर है सब।
हमको ये अधिकार चाहिए।।
=========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9897907490…..9149087291
[4/8, 7:08 AM] Naresh Sagar: आज के मिशनरी और मिशन
==============
ईष्या से भरे हुए हैं ,मन अपनों के।
किस्से तुम कर रहे हो, किन सपनों के।।
मंचो से जो, मिशन- मिशन है चिल्लाते।
वो ही बढ़ता देख, अपनों को है गिराते।।
बाहर वाला दुश्मन, घाती है जितना।
कम नहीं करता करतब, जो है अपना।।
फेसबुक को व्हाट्सएप पर, ही चिल्लाता।
लाइक- कमेंट तक ही, अपना मिशन दिखाता।।
बात बौद्ध की करता, मन में ईष्या भरकर।
बनकर लमबरदार, फिरे चंदा को लेकर।।
पीठ पीछे बार करें, वो बन विभिषण।
अपना बनकर करता, अपनों का शोषण।।
सीना चौड़ा कर बतलाता, है वो पिचासी।
जो अपनों को गिरा , खूब देता है उदासी।।
गुटबाजी ने खो दिये, कितने यार मिशनरी।
मिलते नहीं हैं ढूंढें, अब तो यार मिशनरी।।
अपना- अपना स्वार्थ लिए, सब खूब लड रहें।
इसी स्वार्थ के सताये, रोज कितने मर रहे।।
गुटबाजी का बड़ा हो रहा, है गठबंधन।
अम्बेडकरवादी बनते, लगा माथे चंदन।।
शब्दों के कुछ चोर, कवि मंचों पर दिखते।
चाटुकारिता के हुनर से,जो मोटा बिकते।।
मनुवादी भी नहीं है इतना, घात है करते।
जितना बड़ा षड्यंत्र, आज अपने है रचते।।
मिशन के नाम पर, मसल के रख दिया मिशन को।
कैसे रोकें आज इस, बढ़ती जलन को।।
बात बहुत है और भी, गहरी कैसे कह दूं।
हैं बहुत गद्दार ये अपने, कैसे कह दूं।।
अभी वक्त है छोड़ो, अब अपनों से लड़ना।
फिर पहुंचोगे सदी, सोलहवीं में तुम वर्ना।।
दुश्मन से लड़ना बहुत, आसान है “सागर”।
अपनों से लड़ना, नहीं आसान है “सागर”।।
चलो प्रेम से आगे मिलकर, मिशन बढ़ाये।
बाबा साहेब के सपनों को, हम चमकाये।।
==========
जनकवि/बेखौफ शायर/लेखक
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
08/04/2021….
9897907490……9149087291
सुझाव आमंत्रित है
[4/8, 7:25 PM] Naresh Sagar: दिनांक….08/04/2021
विषय….अपना कर्तव्य निभायेंगे
विधा…….. गीत
=============
देश सुरक्षा खड़े रहेंगे, तनिक नहीं घबराएंगे।
चाहे जैसे भी हो मंजर, हम कर्तव्य निभायेंगे।।
आन- मान और शान है,ये तिरंगा अपना ।
शरहद से हिमालय तक,हम इसको फहरायेगे।।
कभी ना हम हारे दुश्मन से,कभी ना डरकर भागें है।
जान हथेली पर रखते हैं,कभी ना हम घबरायेगें।।
सीमा पर ही नहीं है दुश्मन,घर में भी वो बैठा है।
शीश तारकर दुश्मन का, मां भारत को चढ़ायेंगे।।
ज़मीन हमारी मां से कम ना, कैसे इसको छीनने दे।
चाहे सदियों गुज़र जाएं,हम आंदोलन चलायेंगे।।
करें सियासत जुल्मी ये कितने ,हम ना तनिक घबरायेगे।
मरते- मरते भी हम अपना, कर्तव्य निभायेंगे।।
हमको पाला- पोसा जिसने,हमको जिसने जन्म दिया।
हम भी उनके खातिर, हर आफ़त से लड़ जायेंगे।।
जिसके बल पर भारत मां, खुश होकर इतराती है।
उसी संविधान की खातिर, हम आवाज उठायेंगे।।
सच, न्याय अधिकारों के खातिर,हम हमेशा जागेंगे।
कर्म भूमि पर खड़े हुए तो, ना डरकर हम भागेंगे।।
उन्नति सद्भावना के गीत, लिखेंगे और गायेंगे।
वक्त पडे कैसा भी “सागर”,हम कर्तव्य निभायेंगे।।
=======
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
दिनांक…..08/04/2021
[4/8, 10:30 PM] Naresh Sagar: दाग़ दिल के मैं कैसे आम करूं
किया था इश्क कैसे बदनाम करूं
जो लिपट जाती थी कभी दिल से
उसकी यादों की कैसे शाम करूं
महक रहा है जो मिलकर लगाया था कभी
[4/10, 4:59 AM] Naresh Sagar: तेरी मेरी दुश्मनी, वर्षों पुरानी है मगर।
अजनबी इस शहर में,तेरे सिवा अब कौन है।।
10/04/21
[4/10, 5:11 AM] Naresh Sagar: राही की राह
“””””””””””””””””””””””””””””””
शान में ही लिखूं – गाऊँ, ये मुझसे हो नहीं सकता।।
कलम – पथ से भटक जाऊं, ये मुझसे हो नहीं सकता।
लिखूंगा सच को सच “राही” झूठ को झूठ लिक्खूंगा।
कवि दरबारी बन जाऊं, ये मुझसे हो नहीं सकता।।
-गीतकार अवनीश राही
[4/10, 5:21 AM] Naresh Sagar: वो झूठा है झूठा था कभी सच बोला कब उसने।
मुंगेरी लाल को राजा बनाकर दिखा दिया उसने।।
वादा भी किया था ये कि घर आवाद रखूंगा।
घर में कितना सामान अब छोड़ा है उसने।।
10/4/21
[4/10, 5:26 AM] Naresh Sagar: वो बातों की तरह अपना, लिबास बदलता है।
वो अपनी बात को भी बात पर बदलता है।।
घर में आग लगती है तो वो हंसता ही रहता है।
शिकायत पर सागर अपना वोट अंदाज बदलता है।।
[4/10, 3:32 PM] Naresh Sagar: ==== ?✍?गीत
टिकने ना देंगे हम हिंदुस्तान में
===========
कोरोना के कह दिया है कान में
टिकने ना देंगे हम हिंदुस्तान में
चीन डोल या जा तू पाकिस्तान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में
डर- डर के ना काम कोई हम करते हैं
विपदाओं से हंसकर हम तो लड़ते हैं
हिम्मत बहुत बची है अपनी जान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में
भाईचारा तोड़ ना अपना पाएगा
तू भी आखिर कब तक यूं लड़ पाएगा
ढूंढ ही लेंगे बसा तू जिसकी जान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में
तेरे खातिर घर से ना निकलेंगे हम
ये ना समझना तुझसे बहुत डरते हैं हम
फैंक देंगे तुझको पीक दान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में
तुझको गरूर तेरा ही खा जाएगा
भाग कोरोना गीत तू रो -रो गाएगा
दफना देंगे तुझको हम श्मशान में
टिकने ना देंगे हम हिंदुस्तान में
कुछ दिन और बाहर निकलना भारी है
जंग हमारी तुझसे घर से जारी है
घुसनें ना देंगे हम तुझे मकान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में
आओ मिलकर ढूंढें कुछ हल इसके
काट फैंकदो उड़ने वाले पर इसके
फिर से खिलेंगे गुल “सागर” गुलदान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में
========
मूल व अप्रकाशित गीत
गीतकार…. डॉ.नरेश कुमार “सागर”
गांव- मुरादपुर, सागर कॉलोनी, जिला -हापुड (उत्तर प्रदेश)
9149087291
[4/10, 3:33 PM] Naresh Sagar: बिछुड गई थी मां बेटे से
================
मां का आंचल खींच रहा था
शायद भूखा झींक रहा। था
मां जागेगी यही सोचकर,
कोशिश मे तल्लीन रहा था
पर ना जाने मां कब सो गई,
वो इससे अनजान रहा था
मां तुमको उठना ही होगा,
चादर से संघर्ष रहा था
मां बोलेगी बेटा उसको,
उसको ऐसा हर्ष रहा था
कई बार रोया भी होगा ।
कई बार कहीं खोया होगा।।
मां जग जाये यही सोचकर,
चादर को झकझोडा होगा।
बच्चा था पर मां के खातिर,
उसनें खुद को तोडा होगा।।
पहले तो मां जग जाती थी।
थोडा रो दूं उठ जाती थी।।
आज ना जानें क्या हुआ है।
मां ने अभी तक नहीं छुआ है।।
सारी कोशिश उसनें करली।
मां की कोली तक भी भरली।।
शायद ये कोई देख रहा था ,
मन ही मन कुछ सोच रहा था।
पर ये मंज़र वो नहीं निकला,
जैसा मंज़र वो सोच रहा था।।
बिछुड गई थी ,मां बेटे से ।
कह ना पायी कुछ, बेटे से ।।
थोड़ा लाड लडाया होता ।
मुझे भी साथ सुलाया होता।।
शायद वो ये सोच रहा था।
मां को पल पल नोंच रहा था।।
बड़ा अभागा था ये बच्चा।
करता क्या ये मन का सच्चा।।
जिसनें इस मंजर को देखा,
फूट -फूट वो रोया होगा ।
मरी पड़ी मां की चादर को,
जब बच्चे ने खींचा होगा।।
सोचकर आये कलेजा मुंह को,
“सागर” दिल को दबोचा होगा।
हाय! वक्त का कैसा मंजर,
किसनें ऐसा सोचा होगा।।
छोड गई थी मां बच्चे को।
तोड़ गई थी मां बच्चे को।।
कई दिनों की भूखी प्यासी ,
जो कल तक भी डोल रही थी।
मां- मां की सुनकर बोली भी,
कहां अभागन बोल रही थी।।
=====
मूल रचनाकार… डॉ.नरेश कुमार “सागर”
जिला-हापुड, उत्तर प्रदेश
nsnareshsagar1@gmail.com
[4/10, 3:37 PM] Naresh Sagar: आओ कोरोना -कोरोना खेलें
=============
आओ कोरोना कोरोना खेलें
झूठी – लंबी डिंगे पे लें
तुम ही बस घर से ना निकलो
ताकि हम सब कुछ ले लें
आओ कोरोना………….
शिक्षा में तब्दीली कर दें
जिसकी चाहे बदली कर दें
भूल गए एन.आर.सी. सारे
क्यों ना मंदिर नींव ही रखदें
वर्षों से इसके खातिर ही
हमने कितने पापड़ बेले
आओ करोना………
रेल बेच दो
जेल बेच दो
लाल किला
हर महल बेच दो
अच्छे दिनों की बातों में
सारी अच्छी चीज बेच दो
जनता से रोटी छीनों तुम
जीत के हंसकर खालो केले
आओ कोरोना………
स्टे होम -स्टेज सेव का
नारा जन -जन तक पहुंचाओ
लेकिन तुम बाहर आकर के
मंत्री बेच मंडी लगवाओ
कोरोना की आहट से
कितने भूखे -प्यासे मर गए
कितने पैदल चलते -चलते
खुद से ही लड़-लड कर मर गए
तुम हंस कर बैठे महलों में
जनता ने हीं दुःख है झेलें
आओ कोरोना……..
बलात्कार की बढ़ गई संख्या
जातिवाद का बज रहा ढंका
कहीं मंदिर पर डंडा बाजे
शुद्र नहीं मंदिर पर साजे
कहीं काम की मना जो कर दी
उसकी बुंग लट्ठों से भर दी
कहीं जला दिया जिंदो को
कहीं यातना जी भर झेलें
आओ कोरोना………
गरीब आदमी पकड़ा जाता
कोरोना में जकड़ा जाता
जब भी छींके थोड़ा खांसा
समझो उसको ढंग से फांसा
कोरोना के नाम पर भर्ती
जमकर घर की खाल उतरती
दो-चार दिन भर्ती रहकर जो
अंक गंवाकर वह मर जाता
अमित और शाह सरीखे
कोरोना से भी बच जाता
दवाई शायद अलग अलग है
अमीर बचाती गरीब ही जाता
कितने मजदूरों के यूं ही
खड़े हुए हैं तन्हा ठेले……..
आओ कोरोना कोरोना खेलें
जातिवाद में घुसे हुए हैं
नफरत दिल में ठूंसे हुए हैं
देश की चिंता नहीं किसी को
सच बोले जो सजा उसी को
चुप्पी एक दिन तोड़नी होगी
जीने की जिद छोड़नी होगी
क्यों ना कोई दरवाजे खोलें
आओ कोरोना कोरोना खेले
मंदिर का निर्माण करेंगे
कालेज सारे बंद करेंगे
रोजगार की वाट लगा कर
धंधे सारे बंद करेंगे
बाहर गए तो हो कोरोना
घर के अंदर भूखे रोना
बिल कोई ना माफ करेंगे
गरीब नहीं गरीब साफ करेंगे
जनता भूखी मरे तो मर जा
यह तो खाएंगे चावल छोले
आओ कोरोना कोरोना खेलें
इंकलाब की है आहट सी
बढ़ने लगी है कुछ चाहत सी
“सागर” देश की नब्ज टटोलो
शब्दों से सच खुल कर बोलो
मौत तो एक दिन आनी ही है
जान भी जालिम ये जानी है
क्यों ना सच को सच सच तोलें
आओ कोरोना कोरोना खेलें
मूल गीतकार,लेखक, चिंतक
बेख़ौफ़ शायर… डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[4/10, 4:04 PM] Naresh Sagar: ………… गीत
कब तक मार्च निकालेंगे
================
रोज बेटियां मारी जाती, तनिक नहीं इंतजाम है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का, नारा काम तमाम है।।
नहीं सुरक्षित बेटी है , रोज ये मारी जाती है।
सरे राह और सरेआम, इज्ज़त लूटी जाती है।।
कब तक डर के साए में, बेटी घर में बैठेगी।
कब तक इन दरिंदों की मूंछें, ताव पै एठेंगी।।
कब तक इन जालिमों को, खुल्ला छोड़ा जाएगा।
कब तक बहन बेटियों को, बोलो लूटा जाएगा।।
कभी जलाकर मारा जाता,कभी रस्सी से मार दिया।
कभी तेजाब फैंक जलाया , कभी जमीं में गाड़ दिया।।
कभी लूटली डोली उसकी, कभी किताबें छीनी है।
कितने ही मां बापो ने, बोटी – बोटी बीनी है।।
कब तक बोलो शोक मनाए,कब तक मार्च निकालेंगे।
कब तक जिम्मेदारी से अपनी, हम पल्लू को झाड़ेंगे।।
हमको ही घर से है निकलना, अपनी बेटी की खातिर।
कब तक झूंठी राहें देखें, बोलो सरकारी आखिर ।।
कब तक न्याय- न्याय चिल्लाकर,बेटी को मरबाओगे।
बेटी बचाने को ‘सागर’, क्या खुद भी बाहर आओगे ।।
========
बेखौफ शायर/गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[4/10, 4:05 PM] Naresh Sagar: प्रवासी की पद यात्रा
==========
अपने गांव , जिला और प्रदेश छोड़कर चल पड़ा बीवी बच्चों के साथ दूसरे नगर
साथ लेकर चंद रूखी रोटीयों के साथ
नंगे पांव ,फटे पुराने कपड़े लेकर
बहुत सारे सपनों के साथ
काम मिलने की खुशी में बनाए नमक के चावल और की अपने भगवान की पूजा
अभी ठीक से जमें भी नहीं थे पांव
और बंद हो गई मशीनें
रूक गयीं बस, टेम्पू और रेल गाड़ियों के पहिए
तेज गर्मी
तपती सड़क ,नंगे पांव
सूखे होंठ और पेट में भूख का दर्द लिए बढ़ने लगे अपने गंतव्य की ओर……..
सरकारी सहयोग बंद
मानवता डरी हुई
पुलिस के डंडे उफ़ ये जिंदगी भी क्या जिंदगी है
आंखों में टूटे सपनों के साथ बह रहे थे लाचारी के आंसू
कमाने की होड़ में खो दिये थे इस सफ़र में कितनों ने
अपने बच्चे
अपनी पत्नी
और ….. अपने पति
पाने की इच्छा में लौट रहे थे प्रवासी
बहुत कुछ खोकर उसी घर को
जहां से चले थे
……….वो कुछ लाने के लिए।
========
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत सभी रचनाएं कलमकार की मूल व अप्रकाशित रचनाएं हैं। जो केवल आपको ही भेजी जा रहीं है ।कलमकार को सर्वाधिकार प्राप्त है।।
[4/10, 4:08 PM] Naresh Sagar: प्रवासी का दर्द
============
छोड़ कर गांव को
पीपल वाली छांव को
घर रम्भाती गाय को
मां के टूटे पांव को
छोड़कर आ गया था वो
शहर में ……….
लेकर नंगें पांव को
रोटी की तलाश में
बेटी की शादी में दहेज देने के लिए
बेटे की पढ़ाई के लिए
मां के इलाज के लिए
और ……..
बीवी की रेशम की साड़ी के लिए
भूखा-प्यासा लगा रहता अभागा
दिन -रात मशीन पर
मशीन बनकर
अपने ही देश में बन गया परदेशी
क्योंकि ये था प्रवासी
कौन पढ़ता इसकी उदासी
लाखों सपने लेकर आया था
और हज़ार रुपए लेकर गया था घर
जहां हजार रुपए आटे में नमक के बराबर ही तो थे।
ना हुआ मां का इलाज
ना जमा हुई बेटे की फीस
ना जमा हुआ बेटी की शादी के लिए दहेज
और इस बार भी ना ला सका था
……… बीवी की साड़ी
========
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[4/10, 4:11 PM] Naresh Sagar: =====कविता
प्रवासी के टूटते सपने
=========
घर से निकले थे बहुत सारी उम्मीदों के साथ
ढेर सारे सपने लिए
और
घनी सारी जिम्मेदारीयों के साथ
प्रवासी बनकर
कुछ दिनों दिक्कतों की उठा पटक के साथ हो गये स्थापित
और एक दिन अचानक एक महामारी के चलते होने लगे वापसी
उधर …….
जिधर छोड़कर आये थे
जन्म भूमि
टूटा- फूटा घर
परिवार और
बचपन की यादें
और वापिस ले जा रहें थे
टूटे सपने
अधूरी जिम्मेदारी
भूख- प्यास
पांवों में छाले
पैदल लम्बी यात्रा
और खो दिये थे कितनों ने अपने खून के रिश्ते……..
हाथ आयी तो बस हतासा
निराशा और वही
जार -जार रोती बिलखती ज़िन्दगी और घुटन।
========
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[4/10, 5:26 PM] Naresh Sagar: आओ कोरोना -कोरोना खेलें
=============
आओ कोरोना कोरोना खेलें
झूठी – लंबी डिंगे पे लें
तुम ही बस घर से ना निकलो
ताकि हम सब कुछ ले लें
आओ कोरोना………….
शिक्षा में तब्दीली कर दें
जिसकी चाहे बदली कर दें
भूल गए एन.आर.सी. सारे
क्यों ना मंदिर नींव ही रखदें
वर्षों से इसके खातिर ही
हमने कितने पापड़ बेले
आओ करोना………
रेल बेच दो
जेल बेच दो
लाल किला
हर महल बेच दो
अच्छे दिनों के झांसे में
सारी अच्छी चीज बेच दो
जनता से रोटी छीनों तुम
जीत के हंसकर खालो केले
आओ कोरोना………
स्टे होम -स्टेज सेव का
नारा जन -जन तक पहुंचाओ
लेकिन तुम बाहर आकर के
मंत्री बेच मंडी लगवाओ
कोरोना की आहट से
कितने भूखे -प्यासे मर गए
कितने पैदल चलते -चलते
खुद से ही लड़-लड कर मर गए
तुम हंस कर बैठे महलों में
जनता ने हीं दुःख है झेलें
आओ कोरोना……..
बलात्कार की बढ़ गई संख्या
जातिवाद का बज रहा ढंका
कहीं मंदिर पर डंडा बाजे
शुद्र नहीं मंदिर पर साजे
कहीं काम की मना जो कर दी
उसकी बुंग लट्ठों से भर दी
कहीं जला दिया जिंदो को
कहीं यातना जी भर झेलें
आओ कोरोना………
गरीब आदमी पकड़ा जाता
कोरोना में जकड़ा जाता
जब भी छींके थोड़ा खांसा
समझो उसको ढंग से फांसा
कोरोना के नाम पै भर्ती
जमकर घर की खाल उतरती
दो-चार दिन जो रहता भर्ती
अंग गंवाकर लौटे अर्थी
नेता और अभिनेता सरीखे
कोरोना से भी बच जाते
दवाई शायद अलग- अलग है
अमीर बचाती गरीब मर जाते
कितने मजदूरों के यूं ही
खड़े हुए हैं तन्हा ठेले……..
आओ कोरोना कोरोना खेलें
जातिवाद में घुसे हुए हैं
नफरत दिल में ठूंसे हुए हैं
देश की चिंता नहीं किसी को
सच बोले जो सजा उसी को
चुप्पी एक दिन तोड़नी होगी
जीने की जिद छोड़नी होगी
क्यों ना कोई दरवाजे खोलें
आओ कोरोना कोरोना खेले
मंदिर का निर्माण करेंगे
कालेज सारे बंद करेंगे
रोजगार की वाट लगा कर
धंधे सारे बंद करेंगे
बाहर गए तो हो कोरोना
घर के अंदर भूखे रोना
बिल कोई ना माफ करेंगे
गरीबी नहीं गरीब साफ करेंगे
जनता भूखी मरे तो मर जा
यह तो खाएंगे चावल छोले
आओ कोरोना कोरोना खेलें
रैली में ना जाये कोरोना
जनता का बस यही है रोना
आम आदमी चालान कटाता
खादी और खाकी मुस्काता
दोहरी नीति थोपे राजा जी
कब तक तानाशाही झेलें
आओ कोरोना-कोरोना खेलें
इंकलाब की है आहट सी
बढ़ने लगी है कुछ चाहत सी
“सागर” देश की नब्ज टटोलो
शब्दों से सच खुल कर बोलो
मौत तो एक दिन आनी ही है
जान भी जालिम ये जानी है
क्यों ना सच को सच सच तोलें
आओ कोरोना-कोरोना खेलें ।।
===========
जन कवि/बेख़ौफ़ शायर…
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291..
[4/10, 6:20 PM] Naresh Sagar: अपने चेहरे पर सजा लीं दाढ़ी।
मछीका बांध दिया हंसी पर मेरी।।
ज़माने भर की हंसी
[4/11, 4:59 PM] Naresh Sagar: दिनांक…11/04/2021
दो मुक्तक…… मां के नाम
=========
एक…….
तुम क्या रूठी ,दुनिया हमसे रूठ गई।
ऐसा लगता, सांसे हमसे रूठ गई।।
तुम थी तो, थी खुशियां सारी घर अपने ।
तुम रूठी तो ,उम्मीदें भी टूट गई।।
=======
दो…….
याद तुम्हारी, रोज बराबर आती मां ।
अब यादों की बात, हमें रुलाती मां।।
मां हो जिनके पास, साथ उनके जन्नत।
रह -रह तेरी याद, हमें सताती मां।।
=======
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[4/11, 9:13 PM] Naresh Sagar: जानवरों से भी बद्तर पाते जिंदगानी
इनसे मिलकर खूब सिसकती है जवानी
[4/11, 9:18 PM] Naresh Sagar: कितना खुश हैं भारत का विकास देखो।
घर है ना गांव कहीं पै छांव देखो ।।
तन पर भी शायद है उतरन किसी की।
तपती धरती पर ये नंगें पांव देखो ।।
कितना खुश हैं…………..
माल नहीं है जान का ख़तरा है भारी
आवारा दरिंदों की हर एक चाल है गहरी
तुम लाजो की लाज सड़क पर लूटती देखो
कितना खुश हैं ……………..
ना शिक्षा है ना ही साधन रोजगार के
कितने देते जान अपनी जान हारके
सड़ती सड़क किनारे कितनी जान देखो
कितना खुश हैं…………..
टिकी हुई है इन की हालत पर ही सत्ता
मिलता कब है इनको आरक्षण का भत्ता
भाषण बाज़ी में तुम खूब तमाशा देखो
कितनी खुश हैं……………….
जानवरों से भी बदतर पाते जिंदगीनी
इनसे मिलकर रोज सिसकती है जवानी
टूटे फ़ूटे ख्बावो की तावीरे देखो
कितना खुश हैं…………
सत्ता बदली सदीयां बदली ये नहीं बदले
इनके हक में नहीं किसी के तेवर बदले
“सागर” आधे भारत को तुम भूखा देखो
कितना खुश हैं भारत का विकास देखो।।
========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
11/04/21
[4/11, 9:24 PM] Naresh Sagar: बंगाल में कोरोना का कोई काम नहीं है।
इस वक्त कोई इंसा वहां आम नहीं है।।
डरता है शायद ये भी रैली चुनाव से।
होते जहां चुनाव वहां कोरोना नहीं है।।
=====
11/04/21
[4/12, 7:55 AM] Naresh Sagar: एक चिंतन … बहुजन समाज के लिए
????????
जिस राजनीतिक दल से हम अपनी पूर्ण आजादी और अधिकारों की लड़ाई चाहते हैं ….जब उसी दल के हौदेदार लोग गुलाम ढूंढने लगे, गुलाम बनाने लगें और स्वयं ही हमारे अधिकारों का हनन करने लगे तब हमें क्या करना चाहिए …..???
====== यदि आपने नहीं बताया तो मैं ही नहीं बल्कि वो सभी जो इन परिस्थितियों से गुज़रे हैं या गुज़र रहें हैं आपको भी उसी श्रेणी में खड़ा कर देंगे, जिस श्रेणी में विभिषण खड़ा होता है।।
====== लूटने और बिकने वालों के साथ हम नहीं रहेंगे ✍?……..।।
बेखौफ शायर/ गीतकार/लेखक
========
मिशन के नाम पर, मिशन को खाकर बैठें हैं।
ये नाग है नाग ,जो बस अपनों को डसते है ।।
======डॉ. नरेश कुमार “सागर”
12/04/2021
9897907490….9149087291
नमो बुद्धाय ??जय भीम? जय भारत? जय संविधान✍?
[4/13, 1:27 PM] Naresh Sagar: ………..गीत….
हां हमको संविधान बहुत है
==================
जीने को सामान बहुत है ।
हां हमको संविधान बहुत है।।
नॉलेज ऑफ सिंबल तुम ठहरे,
इतना स्वाभिमान बहुत है ।
तुम नारी के मुक्तिदाता,
करता राष्ट्र गान बहुत है ।।
तुम थे पहले कानून मंत्री,
ज्ञान की अदभुत खान बहुत है।
भीमराव बाबा अंबेडकर,
करता देश गुमान बहुत है।।
समता के तुम थे अनुयाई,
बौद्ध बने पहचान बहुत है।
दुनिया झुकती तेरे आगे,
यह सूरज सी शान बहुत है।।
मानवता के तुम थे प्रहरी,
बहुजन की पहचान बहुत है ।।
किये करिश्मा लाखों तुमने,
बाबा तुम पर ध्यान बहुत है।
कोटि-कोटि नमन है तुमको,
बाबा तेरा एहसान बहुत है।।
दुनिया तेरी खुशी मनाती,
कथन में तेरे जान बहुत है।
सागर मानें तुम्हें मसीहा,
कहने को भगवान बहुत है।।
==========
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
मुरादपुर, सागर कालोनी, हापुड़
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[4/13, 6:21 PM] Naresh Sagar: मौत बांटते डोल रहे हैं गली गली में।
झूठें कसमे- वादे करने आए गली में ।।
शुरुआत ही जो करते दारु को देकर!
विकास भला क्या करेंगे वोटे लेकर !!
डॉ. नरेश “सागर”
[4/13, 6:22 PM] Naresh Sagar: दो मुक्तक…… मां के नाम
=========
एक…….
तुम क्या रूठी ,दुनिया हमसे रूठ गई।
ऐसा लगता, सांसे हमसे रूठ गई।।
तुम थी तो, थी खुशियां सारी घर अपने ।
तुम रूठी तो ,उम्मीदें भी टूट गई।।
=======
दो…….
याद तुम्हारी, रोज बराबर आती मां ।
अब यादों की बात, हमें रुलाती मां।।
मां हो जिनके पास, साथ उनके जन्नत।
रह -रह तेरी याद, हमें सताती मां।।
=======
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[4/13, 6:25 PM] Naresh Sagar: किसी की शान में, किस्से गढूं ये हो नहीं सकता।
मैं हल्की बात को, भारी कहूं ये हो नहीं सकता।।
लिखा है सच, लिखूंगा सच चाहे अंजाम जो भी हो।
मंदारी को लिखूं राजा, कभी ये हो नहीं सकता।।
======= *डॉ. नरेश कुमार सागर
10/4/21
[4/16, 9:43 AM] Naresh Sagar: 1.संविधान हमारे जीवन का मूल आधार है।
2. केवल संविधान के कारण ही आज दलित या हम लोग अच्छी शिक्षा,अच्छे कपडे , अच्छा मकान , अच्छा भोजन आदि को प्राप्त कर सकते हैं।
3. संविधान के कारण हर दलित वो कार्य करने में सक्षम है जो इस देश का प्रधनमंत्री कर सकता है , हम लोग चाहे तो Cm , Pm , IAS , IPS आदि कोई भी उच्च सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
4. संविधान की बदोलत आज हम लोग दुनिया के जहां चाहे वहां जा सकते हैं।
5. आगर हमें सविधान का ज्ञान है तो हम किसी भी सरकारी कर्मचारी के गलत कार्य के लिए उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर उसे उसके गलत कार्य के लिए सजा दिला सकते हैं।
6. किसी अपराधी को सजा दिलाने के लिए उस पर सही धारा लगाकर उसे मृत्यु दंड या कारावास की सजा दिलाई। जा सकती है।
7. सविधान के कारण आज हम अपने निर्णय स्वयं ले सकते हैं।
8. संविधान है तो हम लोग सुखी जीवन जी रहे है अन्यथा आज भी हम गुलामी में जी रहे होते।
9. सविधान के कारण हमें मत देने का आधिकार प्राप्त हुआ है जो भारत सरकार के अभिलेख में जीवित अर्थात भारत के नागरिक सीद्ध हैं
10. सविधान के कारण ही भारत देश को राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , गृहमंत्री आदि लोगो के नेतृत्व में चलाया जाता है।
[4/16, 4:37 PM] Naresh Sagar: संविधान ने ही दिया, मत का है अधिकार।
जिसकी चाहें तू बना, भारत की सरकार।।
[4/16, 4:54 PM] Naresh Sagar: दिनांक….15/04/2021
विषय…. संविधान और हम
विधा…..दोहे
…………….
संविधान ने ही दिया, मत का है अधिकार।
जिसकी चाहे तू बना, भारत की सरकार।।
संविधान ने ही दिया, हम सब को सम्मान।
ये ही अभिमान है, ये ही स्वाभिमान।।
संविधान से ही जगी, जीने की उम्मीद।
सदियों बेगारी करी, खूब उठाई लीद।।
संविधान बिन हम नहीं, ना कुछ भी पहचान।
पाकर इसको ही बना, भारत देश महान।।
संविधान और हम सभी, करें देश निर्माण।
संविधान पर हम चलें, करें स्वयं कल्याण।।
जब तक संविधान है, जब तक ही है जान।
वर्ना छूटे हाथ से, सागर तीर- कमान।।
भीमराव ने लिख दिया, भारत का संविधान ।
जिसकी छाया में पलें, तिरंगा और राष्ट्रगान।।
न्याय बराबर बांटता, सबको ये संविधान।
फिर भी खतरे में खड़ा, भारत का संविधान।।
जब तक ये संविधान है, जब तक हम श्रीमान।
खतरा जो इस पर पड़ा, निकल जाएगी जान।।
संविधान लिख भीम ने, सब को बांटा न्याय।
राजनीति गंदी हुई, बढ़ा खूब अन्याय।।
संविधान के साथ हम, करें देश गुणगान ।
रहे तिरंगा लहरता, देश बने महान।।
सारी जाति- धर्म को, दिया समता संदेश।
नारी सबला बन गई, बदल गया परिवेश।।
सागर तुम संविधान की, लिख डालो पहचान।
जो इससे नफरत करें, उसको दुश्मन मान।।
सागर हम संविधान की, खातिर दे- दे जान।
इसने ही हमको दिया, जीने का सम्मान।।
=========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[4/17, 10:31 PM] Naresh Sagar: घर में रहकर भूखा मर जा
सूख सूख के सूखा मर जा
या चला जा चुनावी रैली में
या गंगा के पार उतर जा
यहां कोरोना वहां कोरोना
रटते रटते डर से मर जा
सरकारी नज़रे है तुझ पर
जल्दी से घर के अंदर जा
सारे नियम है तेरे खातिर
मरना है तो लड़ लड़ मर जा
तुझपर है जुर्माना लागू
[4/18, 9:06 AM] Naresh Sagar: दिनांक….18/04/2021
मंच…. साहित्यक मित्र मंडल..7
विषय…. तेरे सिवा कौन है हमारा
तेरे सिवा कौन है हमारा।
तेरा दर लागे हमें प्यारा।।
हम सब हैं तेरे सहारे
तू ही दे हमको किनारे
तेरे सिवा पत्ता हिले ना
कोई भी फूल खिले ना
हर शख्स तेरा दुलारा…. मजबूरीयां……
तेरे सिवा कौन………..
जिसने भी तुझको है माना
गाए खुशी का वो गाना
मन्नत हुई पुरी उसकी
तू है तो क्या घबराना
आया तू जब भी पुकारा……….
तेरे सिवा कौन…………….
तू तो बसा कण- कण में
महल हो या जंगल में
मालिक तू ही है सबका
पूजा हो या सजदा रब का
तुझसे ही जीवन हमारा ……….
तेरा दर लागे…………….
तेरे करिश्मा निराले
धूप कहीं बादल काले
तेरी नजरिया है सब पर
रहमत बराबर है सब पर
“सागर” तू सबका दुलारा…….।
तेरे सिवा कौन है हमारा……।।
========
गीत के मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[4/20, 6:17 AM] Naresh Sagar: मेरे हाथों की पता नहीं मुझको,मेरी उम्मीद कहती हैं।
वक्त मेरा भी बदलेगा , दौर मेरा भी आयेगा।।
……….. बेखौफ शायर… डॉ.सागर
20/04/2021
[4/23, 5:53 PM] Naresh Sagar: हर तरफ है हां हां कार
ख़ामोश है सरकार
तू संभल
तू समझ
तू ना घर से बाहर जा
बाहर से अंदर आ जा
जीवन को साकार कर………
मत मिलों तुम अब गले
खत्म करो शिकवे गिले
हाथों को संभालिए
हाथ ना मिलाइए
हाथ जोड़ सभ्य बन
ज्यादा ना अब तन
बनना ना ज्यादा निड़र.
खुद को ना बेजार कर
जीवन को साकार कर……….
है क़यामत विश्व पर
मौत बैठी अर्स पर
मुंह सभी के बंद है
हर तरफ ही द्वंद है
युद्ध स्वयं से हो रहा
अब बहुत कुछ खो रहा
जो बचा उसको बचा
छत से ले खुलकर हवा
जीवन का सत्कार कर
जीवन को साकार कर…………..
सब कुछ छीनता जा रहा
राजा खूब मुस्करा रहा
तुझपर सारी आफ़त है
वक्त की तेज बगावत है
अब जुर्माना भारी है
महामारी कब हारी है
तुझको डटकर लड़ना है
घर के अंदर रहना है
ना जीने से इंकार कर
जीवन को साकार कर!!
=======22/04/21
[4/25, 6:01 AM] Naresh Sagar: बड़ा मनहूस है , मेरा मोहसिन ।
जब से आया है, तबाही के मंजर नहीं जाते।।
===बेख़ौफ़ शायर… डॉ. सागर
[4/27, 7:00 AM] Naresh Sagar: मेरे हाथों की पता नहीं मुझको,मेरी उम्मीद कहती हैं।
वक्त भी बदलेगा मेरा,एक दौर मेरा आएगा।।
[4/27, 4:12 PM] Naresh Sagar: =======गीत
प्रधान जी दारू वाले
================
मौत बांटते डोल रहे हैं, गली- गली में
झूठे कसमे वादे करने, आए गली में
शुरुआती ही जो करते, दारु को देकर
वो क्या लौटेंगे बोलो, विकास को लेकर
बीमारियो वो बांट रहे हैं, गली- गली में
झूठे कसमे वादे करने…….
बच्चों को जो देना सकते, एक खिलौना
गरीबों को बांटना पाते, एक बिछोना
जहर वो ही बांट रहे हैं, गली -गली में
झूठे कसमे वादे करने……
जीत गए तो खर्चा, पहले वो काटेंगे
कितना खर्च किया, जनता पै वो बाचेंगे
फिर जल्दी से नहीं आएंगे, किसी गली में
झूठे कसमे वादे करने…….
भ्रष्टाचारी को वोट ना, तुम दे देना
व्यभिचारी को वोट ना, तुम दे देना
वर्ना गुंडे ही घूमेंगे, गली- गली में
झूठे कसमे वादे करने……..
मत दो उनको वोट, जो खुलकर दारू बांटे
मत दो उनको वोट, जो जातिवाद में बांटे
ऐसे लोगों से खतरा है, गली-गली में
झूठे कसमे वादे करने………
अपनी और वोट की, कीमत को पहचानो
अच्छे और बुरे में अंतर, करना जानों
होगा तभी विकास “सागर”, गली-गली में
झूठे कसमे वादे करने…….।।
===========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[5/1, 7:05 AM] Naresh Sagar: ==== आज का गीत
जीवन को साकार कर
=======
हर तरफ है हां हां कार
ख़ामोश है सरकार
तू संभल
तू समझ
तू ना घर से बाहर जा
बाहर से अंदर आ जा
जीवन को साकार कर………
मत मिलों तुम अब गले
खत्म करो शिकवे गिले
हाथों को संभालिए
हाथ ना मिलाइए
हाथ जोड़ सभ्य बन
ज्यादा ना ऐसे तू तन
बनना ना ज्यादा निड़र.
खुद को ना बेजार कर
जीवन को साकार कर……….
है क़यामत विश्व पर
मौत बैठी अर्स पर
मुंह सभी के बंद है
हर तरफ ही द्वंद है
युद्ध स्वयं से हो रहा
अब बहुत कुछ खो रहा
जो बचा उसको बचा
छत से ले खुलकर हवा
जीवन का सत्कार कर
जीवन को साकार कर…………..
सब कुछ छीनता जा रहा
राजा खूब मुस्करा रहा
तुझपर सारी आफ़त है
वक्त की तेज बगावत है
अब जुर्माना भारी है
महामारी कब हारी है
तुझको डटकर लड़ना है
घर के अंदर रहना है
जीने से ना इंकार कर
जीवन को साकार कर……
सांस बंद हो रही
घुटन बहुत हो रही
पेड़ नहीं बचाएं थे
खूब शोर मचाएं थे
आक्सीजन अब कम हुई
हर तरफ घुटन हुई
डर से बुरा हाल है
बस दुआ की ढाल है
स्वयं को अब तू बचा
सागर ना तकरार कर
जीवन को साकार कर ………।।
=======
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9149087291
आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि इस रचना को जन जन तक पहुंचाने का कार्य करें।???
[5/4, 11:48 AM] Naresh Sagar: देश जल रहा है, और तुम खामोश हो।
किस मंज़र की तलाश में, नज़र बैंठी है।।
….. बेख़ौफ़ शायर
[5/5, 1:33 PM] Naresh Sagar: टूटती उम्मीदों की उम्मीद
==============
बहुत मन कर रहा है
……एक बार तुमसे मिलने का,
बातें करने का,
………..शिकायत करने का
मीठा -मीठा सा ……. झगड़ा करने का
और …..
तुम्हारे हाथों में अपना हाथ लेकर
एक साथ लम्बी ज़िंदगी जीने का ।
……… मगर वक्त शायद ना दे इतनी मोहलत,
बदहवास हवाएं उड़ा ना दे ख्बाबों का आशियाना
………….मैं नहीं आ सकता तो आप ही आ जाओ मित्र ।
…….अभी तो मैं जिंदा हूं
मरने के बाद तो जानें कौन-कौन आएगा।
===== नज़रे प्यासी है अपनों को देखने के लिए।
कान तरस रहे हैं अपनों की आवाज सुनने के लिए।
………….सीने की आग कब से भड़क रही है तुम्हें गले लगाने के लिए,
क्या हम सचमुच नहीं मिल पाएंगे …?
क्या हम सचमुच ऐसे ही मर जाएंगे …??
नहीं
कभी नहीं …….. हमें हिम्मत नहीं हारनी
क्योंकि . .. अभी हमें मिलना है ,
लड़ना है ,
शिकायतें करनी है और फिर से एक साथ चलना है अपने काम की ओर।
माना की अभी वक्त, दहशत जदा है।
जीनें की जिद्द में ,मौत को हराना होगा।।
==========अपनी हिम्मत और हौसले बनाएं रखें।
आपका जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश “सागर”
=======05/05/2021
9149087291
[5/5, 5:50 PM] Naresh Sagar: दहशत को अपने दिल से, बाहर निकालिए।
वक्त नाजुक हैं मगर, खुद को संभालिए।।
हौसलों की ही जीत, होती है हमेशा ।
डरकर ना खुद को यार, मुसीबत में डालिए।।
===आपका …. डॉ. नरेश “सागर”
05/05/2021….9149087291
[5/8, 4:02 PM] Naresh Sagar: अंधभक्ति इतनी भी, किस काम की।
आग भी दिखे नहीं, श्मशान की।।
बेखौफ शायर
[5/8, 4:03 PM] Naresh Sagar: लायक बेटा समझके जिसको, मां ने गले लगाया था ।
भारत मां से उसी जालिम ने, लाखों बेटे छीन लिए।।
बेखौफ शायर
[5/8, 4:04 PM] Naresh Sagar: सांसे अब कम हो गई, भरे खूब शमशान।
इंसा से डरने लगा, देखो अब इंसान ।।
बेखौफ शायर
[5/8, 4:05 PM] Naresh Sagar: भारत को अब के मिला, भैया ऐसा भूप।
छांव तो गायब सभी, तपे गमों की धूप।।
बेख़ौफ़ शायर
========08/05/2021
[5/8, 4:40 PM] Naresh Sagar: घटिया किस्म के लोग भी,घिस रहे कलम दवात।
जलते देख शमशान भी , दिखलाते औकात ।।
=====बेख़ौफ़ शायर
08/05/21
[5/9, 6:10 AM] Naresh Sagar: आओ जिंदगी से बात करते हैं।
आज अपनों से बात करते हैं ।।
वक्त नाजुक हैं छोड़ भी दो अना।
हंसकर हंसी की बात करते हैं ।।
======बेख़ौफ़ शायर
10/05/21
[5/9, 6:14 AM] Naresh Sagar: मां पास है तो, जन्नत भी पास रहती है।
हर खुशी हर हाल में,आस- पास रहती है।।
मुकद्दर वाले होते हैं, वो मेरे “सागर”।
जिनकी नजरों में , मां खास रहती है ।।
=====बेख़ौफ़ शायर
10/05/21
[5/9, 6:17 AM] Naresh Sagar: मां पास है तो, जन्नत भी पास रहती है।
हर खुशी हर हाल में,आस- पास रहती है।।
मुकद्दर वाले होते हैं, वो ए- “सागर”।
जिनकी नजरों में , मां खास रहती है ।।
=====बेख़ौफ़ शायर
10/05/21