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9 Jul 2021 · 20 min read

बिखरी यादें….2

[6/17, 12:01 AM] Naresh Sagar: वो बहुत हसीन है
हां लाजबाव है
वो दिल है जान है मेरी
वो ही अरमान है
उससे ही मेरे घर में
खुशीयों की खान है
मेरी बीवी है वो
जो मेरा स्वाभिमान है।।
[6/17, 12:03 AM] Naresh Sagar: मैं अपनी तहरीर लिखूंगा
सदमों की जागीर लिखूंगा
खुशीयां तो कभी मिली नहीं है
अश्कों की मैं फुहार लिखूंगा।।
[6/17, 12:04 AM] Naresh Sagar: दौलत वाले कभी दिल नहीं देते।
पैसों में तौलते है वो हर शख्स को।।
[6/17, 12:06 AM] Naresh Sagar: अमीरों से वफ़ा की उम्मीद ना करना।
सामान की तरह बदलते हैं ये रिशते।।
[6/17, 12:09 AM] Naresh Sagar: कभी किसी अमीर को अपना नहीं कहना।
बुरे वक्त में वफ़ा गरीब की ये भूल जाते हैं।।
[6/17, 12:11 AM] Naresh Sagar: बड़े नजदीक से देखा है अमीरों को।
जालिमों के पास दौलत है दिल नहीं होता।।
[6/17, 12:15 AM] Naresh Sagar: बुरे वक्त में पैसे वाले ही पहले दूर जाते है।
अपनी औकात वाले ही काम आते हैं।।
[6/17, 12:17 AM] Naresh Sagar: कई चेहरों से रूबरू हूं मैं।
अमीर आदमी किसी का नहीं होता।।
[6/17, 6:34 AM] Naresh Sagar: अमीरों के दिल में, दिल ढूंढते हो।
नादां हो “सागर”, तुम क्या ढूंढते हो।।
…….. बेख़ौफ़ शायर
17/06/2021….9149087291
[6/17, 10:48 PM] Naresh Sagar: महंगी बहुत पड़ती है, इश्क में बफादारियां।
इश्क में ज्यादा संभलने की जरूरत होती है।।
[6/17, 10:49 PM] Naresh Sagar: जब भी आया दर्द ही हिस्से आया।
खुशी का नाम भी अजूबा लगता है।।
[6/17, 11:10 PM] Naresh Sagar: बबंडर हूं मैं, तूफान उठाता रहता हूं।
गफलत में सोने वालों को हर वक्त जगाता रहता हूं।।
[6/17, 11:12 PM] Naresh Sagar: तुम मुझे पढ़ो ,बस इतना ही काफी है।
लाइक कमेंट मांगना,आदत नहीं मेरी।।
[6/17, 11:24 PM] Naresh Sagar: मुझको मेरी मौहबबत के पास रहना है।
भाड़ में जाए हुशन के जलवे सागर।।
[6/17, 11:26 PM] Naresh Sagar: कितनी देर लगती है वक़्त बदलने में।
आधी तो गुजर गई जालिम नहीं बदला।।
[6/17, 11:27 PM] Naresh Sagar: खुदा है तो मेरे सामने क्यूं नहीं आता।
[6/17, 11:30 PM] Naresh Sagar: खुदा है तो मेरे सामने, आ क्यूं नहीं जाता।
किसको बताऊं मैं अपनी हाल-ए- जिंदगी।।
[6/18, 5:24 AM] Naresh Sagar: मेरा इश्क़ मेरे पास है
मेरी जिंद मेरे करीब है
मेरी जुस्तजू मेरी आरज़ू
बस वो ही मेरा नसीब है
18/06/21
[6/18, 7:25 AM] Naresh Sagar: #आप थे इसलिए #हम है
=======…….
??हैप्पी फादर्श..डे ??
✍ पापा आज फादर्श.डे है….मगर आप नहीं है
…अब मैं किससे गले लिपट कर कहूँ……
हैप्पी फादर्श..डे पापा
I Love You ..Papa
..हाँ पापा आज मैं समीक्षा जरूर करूंगा अपने जीवन की और अपनी हर एक उपलब्धि को कहूँ गा…..हैप्पी फादर्श..डे
…..क्योंकि मेरा अस्तित्व ही क्या था …आपके बिना…..,
आप ना होते तो मैं कैसे होता
मेरे होने का मतलब ही क्या होता..
मुझे याद है….जब आप काम से आते ही मुझे अपनी गोद में उठा सबसे पहले यही पूछते थे…..आज हमारा राजा बेटा क्या खाएगा.
….मेरी असफलताओं पर भी कभी आपने नहीं टूटने दी मेरी हिम्मत…..मेरे मनोबल को आप बढाते रहे ये कहकर कि….”जब दो पहलवान लडते है तो, एक हारता ही है !
कभी.कभी कुश्ती बराबर की भी रह जाती है!
जीवन आगे बढने के लिए है….पीछे मुडकर देख परेशान होने के लिए नहीं !!”
……मेरी सफलताओं से जो स्वाभिमान आपके चेहरे पर आता था वो उगते सूरज की दोपहरी से कम चमकदार नहीं होता था,
…..आप हमेशा मेरी स्मृति में रहेगें क्योंकि…..बिना भगवान के भक्त अधूरा रहता है, और बिना भक्त के भगवान अकेला.
आप भी मेरे ईश्वर है
आप कभी मुझसे जुदा हो ही नहीं सकते
मुझे मालूम है……
आज आप जरूर सूरज की पहली किरण और हवा का पहला झोंका बनकर आज घर जरूर आओगे…..और मुझे आशिष दोगे
बस आज आप मेरे प्रत्यक्ष नहीं हो.
मगर मेरे शरीर की रग.रग में तुम ही तो शामिल हो.
पापा आज मैं मम्मी के कांधो से लिपट कर आपकी तस्वीर के सामने उन्हीं से ये जरूर कहूँ गा….
पापा हैप्पी फादर्श.डे
I love you Papa
I Love you……
????????
????????
………
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9897907490
रचना सृजन…सुबह..7·35
18-06-2017
?
[6/18, 9:09 AM] Naresh Sagar: कितनी बेदर्दी से तुमने काटा है।
सांसों का पड़ गया तभी तो घाटा है।।
[6/18, 5:52 PM] Naresh Sagar: विषय… महिला उत्थान में डॉ.अम्बेडकर जी का योगदान
विधा …. कविता
दिनांक….18/06/2021
मंच… समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान भारत
======000=====
महिलाओं को बाबा साहेब ने अधिकार दिलाएं थे।
बाबा साहेब ही नारी को आगे लेकर आएं थे।।

सदियों से थी पैर की जूती शोषण हुआ बहुत ज्यादा।
नारी के लिए बाबा साहेब ने मांगा सब में हिस्सा आधा।।

ढोल, गंवार,शूद्र,पशु नारी।
ये सब ताडन के अधिकारी।।

कहकर तुलसी ने नारी अपमान किया।
हिंदू कोड बिल ला बाबा ने नारी को सम्मान दिया।।

दासी प्रथा के नाम पर कभी सती प्रथा लेकर।
नारी का अपमान किया था पैरों की जूती कहकर।।

आज की नारी सबसे आगे दौड़ रही है देखो तो।
हर क्षेत्र में चमक रही है उसकी प्रतिभा देखो तो।।

पी.एम.,सी.एम.,डी.एम.और बनी बैरिस्टर है।
अभिनेत्री,शिक्षिका,पायलेट बनी वो सिस्टर है।।

हर क्षेत्र में दौड़ रही है ,अब पुरूषों से आगे है।
नारी शोषक बोल रहे हैं,हम तो बने अभागे है।।

महिला उत्थान के लिए थी लड़ाई बाबा ने।
फर्स से अर्श तक नारी को पहुंचाया बाबा ने।।

नये भारत की बुनियाद में नारी उत्थान की ईंट रखी।
नारी शोषको ने भीमराव पर कितनी छिटा कसी रखी।।

घबराएं तो कभी नहीं थे “सागर” बाबा अम्बेडकर।
नारी को महारानी बनाकर ही मानें थे अम्बेडकर।।
========
मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
9149087291
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
================
[6/19, 10:09 AM] Naresh Sagar: अनकहा सा इश्क़ होने लगा है।
कोई कानों में कुछ कहने लगा है।।
ठीक से देखा नहीं है जिसको हमनें।
ख्बाव में वो ही आने जाने लगा है ।।
……… बेख़ौफ़ शायर
19/06/21
[6/19, 10:42 AM] Naresh Sagar: ……… इम्यूनिटी मुक्तक
प्यार को पतझड़, उजाड़ नहीं सकता।
उम्र को साबुन , निखार नहीं सकता।।
अपनी उम्मीदों को, जवां रहने दो।
बुढ़ापा भी कुछ , बिगाड़ नहीं सकता।।
……… बेख़ौफ़ शायर
[6/19, 1:40 PM] Naresh Sagar: भाग भागते थक गया मिल्खा।
कितना भागा करता था मिल्खा।।
देश और दुनिया में रोशन ।
नाम जहां में कर गया मिल्खा।।
बच्चे बूढ़े सभी दिवाने
[6/19, 4:38 PM] Naresh Sagar: टिकने ना देंगे हम हिंदुस्तान में*
===========

कोरोना के कह दिया है कान में
टिकने ना देंगे हम हिंदुस्तान में
चीन डोल या जा तू पाकिस्तान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में

डर- डर के ना काम कोई हम करते हैं
विपदाओं से हंसकर हम तो लड़ते हैं
हिम्मत बहुत बची है अपनी जान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में

भाईचारा तोड़ ना अपना पाएगा
तू भी आखिर कब तक यूं लड़ पाएगा
ढूंढ ही लेंगे बसा तू जिसकी जान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में

तेरे खातिर घर से ना निकलेंगे हम
ये ना समझना तुझसे बहुत डरते हैं हम
फैंक देंगे तुझको पीक दान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में

तुझको गरूर तेरा ही खा जाएगा
भाग कोरोना गीत तू रो -रो गाएगा
दफना देंगे तुझको हम श्मशान में
टिकने ना देंगे हम हिंदुस्तान में

कुछ दिन और बाहर निकलना भारी है
जंग हमारी तुझसे घर से जारी है
घुसनें ना देंगे हम तुझे मकान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में

आओ मिलकर ढूंढें कुछ हल इसके
काट फैंकदो उड़ने वाले पर इसके
फिर से खिलेंगे गुल “सागर” गुलदान में
टिकनें ना देंगे हम हिंदुस्तान में
========
मूल व अप्रकाशित गीत
गीतकार…. डॉ.नरेश कुमार “सागर”
गांव- मुरादपुर, सागर कॉलोनी, जिला -हापुड (उत्तर प्रदेश)
9149087291
[6/19, 4:39 PM] Naresh Sagar: ???
?? आओ पेड़ लगाए भाई?????
आओ पेड़ लगाए भाई
जीवन को महकायें भाई
कितना दम सा घुटता है
थोड़ा सा मुस्कायें भाई ……..आओ पेड़ लगाए भाई

चारों तरफ फैला प्रदूषण
मिलकर इसे हटाए भाई
बदबू चारों तरफ है फैली
फूलों से महक आए भाई …….. आओ पेड़ लगाए भाई

धूल धुआं हर तरफ है फैला
कुछ हरियाली लाए भाई
कितनी चिड़िया बेघर हो गई
थोड़ा हाथ बटाओ भाई……….. आओ पेड़ लगाए भाई

कितना नीचे पहुंचा पानी
आओ इसे बचाए भाई
मानसून रूठे हैं हमसे
पेड़ लगा मनाओ भाई ……….. आओ पेड़ लगाए भाई

यह जीवन के सच्चे रक्षक
डालो कैद में जो है भक्षक
कड़ी धूप में ठंडी छाया
खत्म ना ये हो जाए भाई …….. आओ पेड़ लगाए भाई

हरियाली सबके मन भाती
कोयल कितना मीठा गाती
सावन के हिंडोले देखो
बिना पेड़ के कुछ ना भाई ……… आओ पेड़ लगाए भाई

ये मजहब ना जाति देखें
सबको एक निगाह से देखें
फिर हम सब मिलकर क्यों ना
संख्या इनकी बढ़ाए भाई …… आओ पेड़ लगाए भाई

बिना पेड़ के कहां है जीवन
यह सब को समझाओ भाई
“सागर” तुमसे करे गुजारिश
आओ पेड़ बचाए भाई …….. आओ पेड़ लगाए भाई!!
========
गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[6/19, 5:53 PM] Naresh Sagar: कांटों की राह मुझे चलने दो
कांटों की राह मुझे चलने दो
मुझे अपने आप संभलने दो
जीवन क्या है मुझे जीना है
मुझे हर आफत से लड़ने दो
कांटों की राह मुझे………….…..
ये जीवन नहीं आसान बहुत
यहां क़दम क़दम इम्तिहान बहुत
यहां ऊंच नीच का भेद बड़ा
मुझे खुद को साबित करने दो
कांटों की राह मुझे…………….
ये देश मेरा खुशहाल रहे
दुश्मन हर वक्त बेहाल रहे
मुस्काता रहे तिरंगा हर दम
शरहद पर मुझको जाने दो
कांटों की राह…………..
ये धर्म लड़ाई बंद करो
ना मानवता में गंध करो
हम एक थे एक ही हो जाएं
मुझे गीत तुम ऐसे लिखने दो
कांटों की राह…………..
ना मंजिल इतनी आसान मिले
कांटों में देखो गुलाब खिलें
हिम्मत ना कभी होती बेजा
आंधी में दीप जलाने दो
कांटों की राह…………
चन्द्र गुप्त कभी तुम पढ़ लेना
भगवान बुद्ध को पढ़ लेना
पढ़ लेना कभी तुम हरिश्चंद्र
नेताजी सुभाष सा लड़ने दो
कांटों की राह …………….
बाधाओं से हिम्मत कब हारी
कब वक़्त एक सा रहा भारी
संघर्ष बना जीवन जिसका
मुझे ऐसे पात्र तुम पढ़ने दो
कांटों की राह…………….।
मैं वक्त बदलने वाला हूं
बाधाओं से लड़ने वाला हूं
मंजिल तक जाना है मुझको
मुझे जीत का स्वागत करने दो
कांटों की राह……………।।
========
प्रमाणित करता हूं कि प्रतियोगिता में प्रस्तुत गीत मेरा मूल व अप्रकाशित गीत है
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़,उत्तर प्रदेश
[6/20, 6:48 AM] Naresh Sagar: जमीं तुम्हीं तुम ही आसमां हो।
तुम ही शिक्षक तुम ही बांगवा हो।।
[6/20, 11:45 AM] Naresh Sagar: तुम मेरा प्यार हो इश्क हो मौहबबत हो।
तुम मेरे ईश्वर हो खुदा हो इबादत हो।।
तुम मेरी ज़मीं हो आसमान हो छाया हो।
तुम मेरी सल्तनत हो ताज हो माया हो।।
तुम मेरे गीत हो ग़ज़ल हो कहानी हो।
तुम मेरी सांस हो धड़कन हो जिंदगानी हो।।
तुम ना होते तो आज हम भी ना होते पापा।
तुम बिन बहुत तन्हा तन्हा सा हो गया हूं पापा।।
तुम मेरी याद हो फरियाद हो पुरुस्कार हो।
तुम मेरे बादशाह हो ,राजा हो सरकार हो।।
बहुत याद आती है पापा तुम्हारी।
आधी अधूरी है खुशियां हमारी।।
किससे कहें क्या खोया है हमने।
“सागर” बहुत अश्क रोया है हमने।।
सलामत रहे सबके पापा हमेशा।
करो प्यार तुम भी पापा से हमेशा।।
पापा बिना ना जमीं -आसमां हैं
जिसके पास पापा संग उसके जहां है।।
[6/21, 1:44 PM] Naresh Sagar: गीत ……
अब योग थोडा करले
==============
मन रोग से घीरा है
तन रोग से घीरा है
अब योग थोडा कर ले
क्यूं भोग से घीरा है ————
जीवन का लम्हा – लम्हा
है कीमती संभालो
थक क्यूं रहे हो इतना
खुद को खुद ही संभालो
गिर के उठा है जो भी
खुशीयों से वो घीरा है ……….. अब योग थोडा …..
धुंआ ही धुंआ है
देखो तो हर तरफ ही
सांसे भी घुट रहीं है
है मौत हर तरफ ही
योगा बनाले जीवन
आलस से क्यूं घीरा है …………..अब योग थोडा ……
भस्त्रिका दो मिनट कर
अनुलोम चाहे जितना
कर ले कपाल भाति
हर रोग फिर है भगना
कुछ ध्यान लगा खुद में
क्यूं इधर .. उधर घीरा है ……….अब योग थोडा …….
फैलाओ खूब योगा
तब ही भगेगा रोगा
“सागर” कदम बढाओ
कल्याण तब ही होगा
है सार ये जीवन का
गुरूओं की ये धरा है ………………
अब योग थोडा कर ले
क्यूं भोग से घीरा है ……………!!
**************
जनकवि/बैखोफ शायर
डाँ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[6/21, 3:12 PM] Naresh Sagar: विषय…..खिताब
विधा ….. ग़ज़ल
दिनांक….21/06/21

………. ग़ज़ल
दे सको तो, मुझको तुम किताब दे दो।
मेरे हिस्से का मुझे, हिसाब दे दो।।

जाने कब से कर रहे हो, गुमराह हमको।
आज सवालों का मेरे, जवाब दे दो।।

मैंने चाहा मैंने माना, तुमको अपना ।
कुछ नहीं बस ,एक तुम गुलाब दे दो।।

है नहीं मुमकिन यदि, कुछ भी ए-सागर।
बेवफाई का मुझे, खिताब दे दो।।
=======
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
[6/21, 3:36 PM] Naresh Sagar: रिश्ते नाते दूर रखो
============
रिश्तों की आना- कानी ने
घर कितने ही तोड़ दिए
इस उलझन में उलझके जाने
कितनो ने घर छोड़ दिए

बात- बात पै तुनक मिजाजी
बात बात पै गाली है
सच्ची बातें शूल लगें हैं
झूठी बात पै ताली है
होकर तंग इन हालातों से
रूख कितनों ने मोड़ लिए

सांझा चूल्हा तन्हा रह गया
आंगन खड़ी हो गई दीवार
भाई- भाई का दुश्मन हो गया
बाप बेटे का मर गया प्यार
सांस बहूं की लड़ाई ने देखो
लाज-शर्म झकझोड दिए

अपनें लेकर थाने पहुंचे
अपने लेकर जेल गए
अपनों ने दुश्मन लड़वाए
अपनों ने जी भर टूटवाए
अपनों ने ही ज़हर खिलाया
अपनों ने सर फोड़ दिए

अपना समझके अपनों को
कभी भूल ना तुम करना
अपनों से रहना बचकर
ज्यादा मेल ना तुम करना
घर घर छुप बैठे हैं विभिषण
रावण जैसे तोड़ दिए

डर लगता है अब रिश्तों से
इनको हमसे दूर रखो
इनसे कह दो पास ना आए
ख़ुद को खूब मगरूर रखो
बहुत सताया हमको “सागर”
हमने भी सब छोड़ दिए।।
=======
20/06/21
रात्रि….11.24
[6/22, 10:41 AM] Naresh Sagar: विषय…. बलात्कार
विधा …. कविता
मंच ….. राब्ता
दिनांक….22/06/2021
हां मेरा बलात्कार हुआ है
( एक सच्ची घटना पर आधारित )
===============
हां मेरा बलात्कार हुआ है
जी मेरा बलात्कार हुआ है
पुरूष नहीं
नारी ने किया है ….. हां मेरा बलात्कार हुआ है………….
दर्द दुखन के बहाने लेकर
घर मुझको एक बार बुलाया
अपनी मां को दिखाके तेबर
उसको घर के बाहर बिठाया
छीना झपटी…चुमा चाटी
करते करते खूब डराया
लगाके मेरे एक तमाचा
जो जी चाहा सब करवाया
कह ना पाया किसी से बाहर
आज मेरा बलात्कार हुआ है
जी मेरा बलात्कार हुआ है……….

देखो मेरा बलात्कार हुआ है
ननद के साथ भाभी भी शामिल
दोनों पककी थी ये जालिम
इनकी हरकत जान गया मैं
अपना डर पहचान गया मैं
हटना इतना आसान नहीं था
हां भगना आसान नहीं था
कुनवा अपना नहीं था भारी
याद थी पीछली मारा मारी
इज्जत ना दागी हो जाये
बीवी ना सुनकर भग जाये
सहता रहा उनकी मनमानी
बडी गज़ब मेरी है कहानी
मेरे साथ अन्याय हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है……..

दोनों पक्की आवारां थी
सोच भरी गंदी गारा थी
जब जी चाहा करी बेजती
जिस्म तरहा तरहा से बेचती
रात दिन की बढे जगराते
कहानी अपनी किसे सुनाते
हम पर यकीं ना होता भारी
वो कहतीं तो मारा मारी
चिठ्ठी लिख मरने को कहकर
घनीं रात मे घर बुलवाया
फिर लूटी जी भर के इज्जत
कुतिया जागी मुझे भगाया
वक्त था अच्छा जो बच पाया
उसका लशकर घर तक आया
सांसे हो रही लम्बी लम्बी
पसीनों से था बदन भीगोया
रात क़यामत की तो टल गई
दहशत दिल के घर में बढ गई
मैंने पीछे हटना चाहा
ननद भाभज ने खूब डराया
अबकी बार भाभी ने भी
डराके मुझको खूब नचाया
और बडे लम्बे सालों तक
जो जी चाहा सब करवाया
ऐसा बारम्बार हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है……

उसको शादी की जल्दी थी
दिख रही उसको हल्दी थी
रोज लड़ाई होती थी घर में
बंटवारे की तनी थी घर में
रोज लड़ाई रोज तमाशा
उम्र का उसकी बना बताशा
बेटे पहले हिस्सा मांगें
बाप शादी का किस्सा मांगें
एक दिन इसकी तना तनी मैं
तार बिजली का उसने पकड़ा
मै घर आने ही वाला था
वक्त ने फिर मुझको था जकड़ा
पीछे से आवाजें आयीं
जल्दी आ भगकर के भाई
मैने जाकर नब्ज टटोली
इंजेक्शन दे छोडी खोली
सरकारी अस्पताल ले गये
रेफर मेरठ मुझें भी ले गये
उन्होंने उसको दिल्ली भेजा
मुझको भी था साथ में भेजा
डर -डर के मेरा बुरा हाल था
मेरे नाम का कटा बबाल था
देर रात घर अपने लौटा
बीवी ने बांहों में समेटा
बोली गांव मे बडा है हल्ला
पेट में मेरे तेरा है लल्ला
हुआ तुम्हें कुछ कहां जाऊंगी
सच कहती ना जी पाऊंगी
मैंने कहा वो अभी है जिन्दा
सच जीतेगा मेरी चंदा
नहीं हूं शामिल इस घटना में
उसके साथ घटी दुर्घटना में
बीच-बीच में भी गया मै दिल्ली
उसकी भाभी उडाती खिल्ली
वहां भी डर था उसने दिखाया
भैया पूछे उसने बताया
किसके कारण बिजली पकड़ी
तू जो जल गई इतना पगली
मेरे साथ अन्याय हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है…….

दिल्ली से जब घर को लौटी
भाभी ने खुलवाई धोती
बोली जो कहतीं हूं कर दो
मांग मे मेरे सिंदूर ये भर दो
वर्ना मै कह दूंगी सबसे
इसका चक्कर था उससे
इसी के कारण बिजली थी पकड़ी
इसने ही उसको था जकड़ी
अब भाभी की बढी वासना
उनकी ड्यूटी मुझे ताशना
एक दिन उसकी हो गई शादी
हमनें सोचा मिली आजादी
पर ये सोच गलत थी भारी
उसकी हम पर चल गई आरी
ससुराल थोड़े दिन रहकर
लौटी घर पति को लेकर
फिर उसने दोहराया वो पल
जिसमें उसने किया बडा छल
पति के पीछे मुझे बुलाती
जो जी आता सब करबाती
कभी जो मुंह से मेरे ना निकली
गालियां देती और डराती
मैंने जगह छोड दी थी पहली
डर मै जहां जिंदगी थी झेली
फिर खुशियों पर बादल छाए
लौट के जब वो शहर में आये
मेरे साथ अन्याय हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है…….

गांव में मेरा हो गया झगड़ा
थोडा सा डर बाहर निकला
कूद पड़ा मैं राजनीति में
ये बाज़ी तो जीत गया मैं
मैंने उसकी भाभी को पीटा
एक दिन उसको खूब घसीटा
बच्चों की कसमें खाती थी
पति को जानें क्या क्या कहती थी
गांव में आ गई बहुत सी नारी
शिव पूजा की लेकर थाली
अब जाकर आराम मिला था
मेरे मन का फूल खिला था
उसने मुझसे मिलना चाहा
गुस्सा उसे खूब दिलवाया
सारी बातें भरी फोन मैं
उसका डर उसको था दिखलाया
मैंने सारे बंधन तोड़े
खत्म हुए कुछ बदन के फोड़े
पर ननद पक्की चालू थी
मेरे लिए वो एक भालू थी
आना जाना उसका रहता
तानें उसके सुनते रहता
रोज सोचता कैसे बचूं मैं
आखिर और कब तक डरूं में
कुत्ता, भाडू क्या- क्या कहती
उसको शर्म कभी ना आती
पैसा और जिस्म की भूखी
जब भी आती ऐसे आती
जगहा तीसरी थी मैंने बदली
पर ये डायन ही ना बदली
दीमक बन खाये जा रही थी
तानें धमकी दिये जा रही थी
उसकी एक भाभी को बताया
उसने किस्सा उसका सुनाया
मेरे भतीजे के पीछे पड गई
बहन के देवर से भी भिड गई
इसकी आग बहुत है भारी
जानें किस- किस से थी यारी
सुनकर मेरी हिम्मत बढ गई
एक दिन मैंने भी ना कर दी
उसने अपनी बेटी भेजी
जिसको मैंने बापिस कर दी
वो डायन सी चलकर आयी
उसनेे पूरी फैल मचाई
मुझे सिंदारा (कोथली सावन के महीने में जो बहन को देने जाते हैं) देने जाना था
आज इस को ऐसे आना था
मानें नही मान पाती थी
गंदी- गंदी गाली दे रही थी
मां ने और मौहल्ले ने समझाया
उसने खुद को और भडकाया
गोद की बच्ची को उसने
मेरे घर मैं पटक दिया था
जेल भिजवाने और बर्बादी का
उसने मुझे चैलेंज दिया था
ऐसा मेरे साथ हुआ था
हां मेरा बलात्कार हुआ था…….

मां संग मिला उसके भाई से
जलतीं थी जिसकी परछाईं से
जिसने डांटा उसे शान से
घर लौटा तो बोल रही थी
जिसको बीवी झेल रही थी
गालियों का अंबार लगाया
बेटी को अपनी मेरा बताया
पूरा हिस्सा मांग रही थी
मेरे डर को झांक रही थी
मेरे बीवी बच्चे सब संग थे
बहुत दिनों से इससे तंग थे
उसने अपना जाल बिछाया
पडोस में मेरी प्लाट कटाया
लोग देख मुझे गीत ये गाते…..
तेरे घर के सामने एक घर बनाऊंगा
आते जाते तानें देती
जानें वो क्या -क्या कहती रहती
अब भी नहीं तेबर उसके कम है
शर्म नहीं आंखों में नम है
उसका चरित्र है सबके आगे
बोलो और कहा तक भागे
मेरे साथ
हां मेरे साथ अन्याय हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है……….

क्या कानून सुनेगा मेरी
क्या कोई धीर धरेगा मेरी
बस लड़की की सब सच मानें
पीर ना पुरूष की कोई जानें
ऐसा कितने डर लेकर बैठे
बिना बात के जेल में बैठे
इज्जत और समाज के डर से
लेकर दिल में आग है बैठैं
पुरूष की भी इज्जत लूटती है
जो ना कभी किसी को दिखती है
नहीं कभी सोचा था मैंने
पडेगें इतने भी दुःख सहनें
सबको मैंने दिखाये रास्ते
भटके हुओं को दिये बास्ते
पर मेरा संहार हुआ है
मेरा कद बदनाम हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है
किसे बताऊं जो भी हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है
हां मेरा बलात्कार हुआ है….।।
============
मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
…… डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[6/23, 11:57 AM] Mere Number: [6/21, 10:32 PM] Naresh Kumar: ये तन्हाई ये उदासी क्यूं है।
तेरी जुल्फ उलझी कहानी सी क्यूं है।।
[6/21, 10:49 PM] Naresh Kumar: किस सोच में डूबे हो, कहां गुम हो।
[6/23, 12:01 PM] Naresh Sagar: इश्क की तबीयत बहुत ख़राब है।
हुस्न ने जब से मिलना छोड़ा है।।
…….. बेख़ौफ़ शायर
23/06/21
[6/24, 11:43 AM] Naresh Sagar: कौन ना मर मिटे तेरी अदाओं पर।
फुर्सत से बनाया है ख़ुदा ने तुझको।।
………….24/06/21
बेख़ौफ़ शायर
[6/24, 12:03 PM] Naresh Sagar: गीत …… बूंदो की सौगात दो
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****** बूंदो की सौगात दो ********
प्यास से व्याकुल धरा तडपती, पानी की बरसात दो
रिमझिम -रिमझिम घूंघरू वाली, बूंदो की बरसात दो
प्यास से व्याकुल *************
बंद कली खुलनें को व्याकुल ,कपोल तपिस ना सहपाति
जब से पतझड जवान हुआ है, कोयलया भी ना गाती
छोटे-छोटे पौधे रोते , सूरज के अंगार से
कब तक और रहेगें वंचित , बगीया के श्रृंगार से
मोटी – मोटी बूंदो वाली , कोई पूरी रात दो
प्यास से व्याकुल ***************
गौरया की उछल कूद भी, धीमी धीमी लगती है
मेढक की प्यास रोज ही, टर्र टर्र चिल्लाती है
अब हवा का हर एक झोंका , झूलसा के जाता मुझको
ए – मेघों के राजा , अब लौट के आना है तुझको
प्यासी झूलसी इस धरा को , मेघों की मुलाकात दो
प्यास से व्याकुल **************
फसल सूखती हलधर रोता, कैसे अपनी बदहाली पर
नजर टिकी है धान पै उसकी, झूलसी-झूलसी वाली पर
त्राही -त्राही मची हुई है , ताले है खुशहाली पर
एक बार तो रोना बादल , हम सब की बदहाली पर
ए- दुनिया के पालनहारी, ना रोज – रोज की मौत दे
प्यास से व्याकुल *************!!
************
बैखोफ शायर/गीतकार/लेखक
डाँ. नरेश कुमार “सागर
[6/24, 12:10 PM] Naresh Sagar: नटखट सी है , चुलबुली सी है।
प्यारी सी है , न्यारी सी है।।
कौन ना पागल हो भला देखकर अंदाज तेरा।।
[6/24, 12:24 PM] Naresh Sagar: अब लोट रही है जवानी तुझ पर ।
दीवाना हो रहा है देखकर जमाना तुझको।।
[6/24, 12:25 PM] Naresh Sagar: अब लौट रही है जवानी तुझ पर ।
दीवाना हो रहा है देखकर जमाना तुझको।।
..====बेखौफ शायर
24/6/21
[6/24, 2:17 PM] Naresh Sagar: कब आएगा बोल कबीरा
===================
कब आएगा बोल कबीरा ।
बहुत बढ़ रहा झोल कबीरा।।

पढ़े-लिखे सब गूढ बने हैं।
पीट रहे सब ढोल कबीरा ।।

नहीं चेतना जगी है अब तक ।
सारे खाली- खोल कबीरा ।।

पत्थर में ढूंढे ईश्वर को ।
जिंदो का नहीं मोल कबीरा ।।

फिर से आना बहुत जरूरी ।
सच से इनको तोल कबीरा।।

“सागर” भी थक गया है अब तो।
आ जाओ अनमोल कबीरा।।
==========
मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
24/06/2021
………9149087291
[6/24, 4:24 PM] Naresh Sagar: हो गया है इश्क तुमसे क्या करें।
दिल नहीं संभले है हमसे क्या करें।।
[6/24, 10:31 PM] Naresh Sagar: आप बेशबब हम पर अंगुली उठाइए।
हम वक्त आने पर अपने तेबर दिखाएंगे।।
24621
[6/25, 7:34 AM] Naresh Sagar: आप बेसबब हम पर अंगुली उठाइए।
हम वक्त आनें पर अपने तेबर दिखाएंगे।।
[6/25, 7:34 AM] Naresh Sagar: आप बेसबब हम पर अंगुली उठाइए।
हम वक्त आनें पर अपने तेबर दिखाएंगे।।
[6/25, 12:46 PM] Naresh Sagar: धड़कनों से पूछो हमारे दिल की सदा।
हमें पसंद है तुम्हारी हर अदा ।
[6/25, 1:08 PM] Naresh Sagar: गीत…..
हम मिशन नहीं मिटने देंगे
=================
बेच रहे हैं जो अम्बेडकर को।
बेच रहे वो कांशीराम को ।।
बेच रहे हैं वहीं बहुजन ।
बेच रहे हैं सुबह-शाम को।।
बेच रहे हैं लाज बहन की।
बेच रहे वो अपनी आन को।
बेच रहे हैं नाली खडंचा।
बेच रहे वो हर मुकाम को।।
बेच रहे हैं मिड-डे मील वो।
बेच रहे वो गरीब किसान को।
बेच रहे आरक्षण जालिम ।
बेच रहे वो खड़े मकान को ।
बेच रहे मां की ममता वो।
बेच रहे पापा की आन को।
बेच रहे खुद को भी जालिम।
बेच रहे अपने संविधान को।।
बेच रहे टूटी पाठशाला ।
बेच रहे हैं वो शमशान को।।
बेच रहे ज़मीर को अपने ।
बेच रहे भीम अभियान को।।
वो ही भरी सभा में कहते।
हम मिशन नहीं बिकने देंगे।
संविधान नहीं जलने देंगे।
एक शख्स नहीं मरने देंगे।
अब घर नहीं जलने देंगे।
अब लाज नहीं लूटनें देंगे।
अधिकार तो लेने हैं हमको।
हम मिशन नहीं मिटने देंगे।
घर- घर में शिक्षा बांटेंगे।
अनपढ़ ना कोई रहने देंगे।
कब तक ऐसै बहरूपिओ की
बातों में समय बिगाडोगे
कब मार के ठोकर ऐसो को
जीवन तुम अपना संवारोगे।।
ना करो भरोसा अपनों पर।
अब नज़र बांधकर रखनी है।
सागर हटेगी तब जाकर
छाई जो गहरी रजनी है।।
तो खाओ कसम अब तुम खुद ही।
संविधान नहीं मिटने देंगे।
हम छोड़ धर्म झूठा “सागर”
बौद्धमय भारत हम कर देंगे
गद्दार,लालची नेता को
हम कभी नहीं कोई हक़ देंगे
बाबा के मिशन के परचम को।
हम कभी ना अब झुकने देंगे।।
======
मूल रचनाकार……
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
24/6/21
[6/25, 4:32 PM] Mere Number: खुदा ने हुस्न क्या दिया उसको।
गुरूर भी बेहिसाब दे डाला ।।
…….. बेख़ौफ़ शायर- डॉ. सागर
25/6/21
[6/25, 4:34 PM] Mere Number: खुदा ने हुस्न क्या दिया उसको।
गुरूर भी बेहिसाब दे डाला ।।
…….. बेख़ौफ़ शायर- डॉ. सागर
25/6/21
[6/25, 11:13 PM] Mere Number: मेरी बीवी प्यारी बीवी
मुझे हंसाती मेरी बीवी
इश्क बहुत करती है मुझसे
मुझको मेरी पगली बीवी
नहीं देख सकती तंग मुझको
ऐसी मेरी लाड़ो बीवी
मेरी चिंता में रहती है
हर दम डूबी मेरी बीवी
बच्चों की तरह मुझे संवारे
ऐसी मेरी जोगिन बीवी
कभी कभी तंग भी करती है
बहुत सताती चुलबुल बीवी
वो है तो जिंदा हूं अब तक
हैं मेरी करतारी बीवी
मैं इतना मांगू ईश्वर से
यही मिले हर बार बीवी
कुछ पल खुशीयों के अब दे दो
जी भर खुश हो मेरी बीवी।।
======25/6/21
[6/25, 11:25 PM] Naresh Sagar: दर्द को दर्द लिखकर, दर्द बांट लेता हूं।
मैं अपने जख्मों को, शब्दों से ढांप लेता हूं।।
मुझे सहारे की बिल्कुल जरूर नहीं सागर।
मैं कांटों से भरी राहें भी,हंसकर काट लेता हू।।
[6/25, 11:29 PM] Naresh Sagar: वक्त बदलेगा मेरा भी,अभी ये जिद्द नहीं छोड़ी।
लड़े फांकों से खूब लेकिन सराफत नहीं छोड़ी।।
पिताजी ने कहा था बहक ना जाना कभी बेटा।
मुश्किल वक्त में ही हमने ये नसीहत नहीं भूली।।
[6/25, 11:34 PM] Naresh Sagar: नाजुक दौर है मेरे खुदा भी
मुझको बचाना तू।
मेरी अस्मत पै आंच कोई तू आने नहीं देना।।
[6/25, 11:37 PM] Naresh Sagar: इश्क के छाले उभरने दीजिए।
जाम उल्फत के पीने दीजिए।।
जिंदगी कितनी है किसको क्या पता।
मर लवों से अब तो पीने दीजिए।।
=====
25/6/21
[6/26, 7:28 AM] Naresh Sagar: सितम्बर बड़े सितम कर दिए हैं।
दिल पै तूने जख्म कर दिए हैं
[6/26, 7:40 AM] Naresh Sagar: सितम्बर बड़े से सितम कर दिए हैं।
दिल पै मेरे तूने जख्म कर दिए हैं।।
मैं आशिक हूं तेरा, क्या मुझको सताना।
नैना खूब तूने ये नमः कर दिए हैं।।
====
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
………….26/6/21
[6/26, 7:42 AM] Naresh Sagar: सितम्बर बड़े से सितम कर दिए हैं।
दिल पै मेरे तूने जख्म कर दिए हैं।।
मैं आशिक हूं तेरा, क्या मुझको सताना।
नैना खूब “सागर” के नम कर दिए हैं।।
====
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
………….26/6/21
[6/26, 11:52 AM] Naresh Sagar: लिपटे हुए है आपके ख्बाबों ख्याल से।
ऊपर से जुल्फें आप की कमाल कर गई।।
………. डॉ.नरेश” सागर”
[6/26, 11:56 AM] Naresh Sagar: आरक्षण जिसने दिलवाया,नमन उसको सौ बार है।
मिटने ना देंगे हम आरक्षण,सागर ये यलगार है ।।
[6/26, 11:57 AM] Naresh Sagar: आरक्षण जिसने दिलवाया,नमन उसको सौ बार है।
मिटने ना देंगे आरक्षण,”सागर” ये अब यलगार है ।।
[6/26, 4:59 PM] Naresh Sagar: विधा ====कविता
मंच….. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
दिनांक…..26/6/21
…….. कविता……..
आधुनिक जीवन में जो विज्ञान ना होता।
आनें – जानें का ना कोई सामान होता।।

आंखों पर ना होते लैंस ना आती रोशनी।
रोगों का ऐसे ना कभी निदान यूं होता।।

जल, थल, नभ सारे खंगाले इसके चलते।
ग्रहों का वास्तविक ना किसी को ज्ञान होता।।

टी.बी.और रेडियो से ना होता मंनोरंजन।
मोबाइल के अंदर ना इतना भंडार होता।।

कैसे करते कैद याद और सूरत अपनों की।
कैमरे का गर नहीं यूं अविष्कार है होता।।

खेती का होता कैसे निर्माण बताओ।
बढ़ते रोगों का ना शुलभ इलाज है होता।।

अंधकार था कितना बिना विज्ञान के देखो।
बिजली का गर ना ऐसे चमत्कार हैं होता।।

जीवन जीने का ढंग भी इससे आया है।
होता क्या यदि यार ये विज्ञान ना होता।।

आधुनिकता नहीं लौटती कभी जीवन में।
“सागर” जो विज्ञान का ये अविष्कार ना होता।।

विज्ञान बिना ज्ञान का भी आधार नहीं है।
ना होता विज्ञान तो ये संज्ञान ना होता।।
==========
मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[6/26, 5:36 PM] Naresh Sagar: लाजबाव लिख देंगे
=============
खुशी दो खुशी लिख देंगे।
हंसी दो हंसी लिख देंगे।।

तेरी जुल्फों को घटा लिख देंगे।
तेरी आंखों को झील लिख देंगे।।

तेरी बिंदिया को चांद लिख देंगे।
तेरे होठों को गुलाब लिख देंगे।।

तेरी नंथनी को लिखेंगे हम तारा।
तेरी गर्दन को सुराही लिख देंगे।।

तेरे योवन को लिखेंगे हम कंवल।
तेरी पायल को कमाल लिख देंगे।।

तेरी इन मरमरी से हाथों को।
कुदरत का कमाल लिख देंगे।।

कभी फुर्सत से बैठ तो आकर ।
हम तुझे लाजबाव लिख देंगे।।

आओगे जिस दिन सिमट के पहलू में।
तेरे अंग – अंग पै ग़ज़ल लिखी देंगे।।
=======
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
26/06/21

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