बिखरा ख़ज़ाना
बिखरा ख़जाना
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पूरब की ओर से सवेरे सूरज ऊगता ।
तब आसमान लालिमा से भर उठता।
दोपहर को उसके भीतर भरता है तेज ,
शाम पश्चिम में डूब लाल होता हर रोज।
फूल ,तितली,भंवरा पंछी,पशु कीट पतंग ,
कौन भर देता इनमें इतने सारे सुंदर रंग।
सवेरा होते ही पंछी जग कर चहकते है,
पेड़ ,फूल ,फल अपने समय से लगते हैं।
पहाड़ के बीच से बहती झरने की धार,
आंधी-तूफान बारिश, कभी ठंड़ी बयार।
चारों ओर यह नैसर्गिक खज़ाना बिखरा,
इसे झोली में भर लो जो बेशुमार पसरा।
डॉअमृता शुक्ला