बिके न सच और झूठ की दुकान बहुत हैं
बिके न सच और झूठ की दुकान बहुत हैं
वो इसलिए की दिल छोटा अरमान बहुत हैं
घर बसाना है मुश्किल ए दौर-ए-तरक्की
रहने को तो दुनियाँ में मकान बहुत हैं
यहाँ दूर तलक कोई साथ नहीं देता
कदम-कदम पर यारो इम्तिहान बहुत हैं
ज़रा गौर से देखो जुदा कुछ तो होगा
माना मेरी सी यहाँ दास्तान बहुत हैं
कह दो परिंदों से उड़ना न भूल जायें
हौसला गर बाकी है आसमान बहुत हैं
मियाँ बच के रहो नफ़रातों की आँधी से
प्यार सीखा दें ऐसी भी ज़बान बहुत हैं
लगते हैं दुश्मन कभी लगता है ये भी
दुनियाँ वाले ‘सरु’ पे मेहरबान बहुत हैं