बिंदी
मखमली सफेद साड़ी और ऊपर से लाल बिंदी।
न जाने क्या – क्या करती रहती है कमाल बिंदी।
एम्बुलेंस के माफ़िक घायल-ए-दिल ले जाती है,
दवा, दुआ बन रखती है सबका ख़याल बिंदी।
कितने दिलों के धड़कन की रफ्तार बदल देती है,
किसी न किसी दिन करवा ही देगी बवाल बिंदी।
घबरा जाओगे और जवाब कुछ न सूझेगा,
जिस दिन तपाक से कर देगी कोई सवाल बिंदी।
ये हुस्न का चाँद है जरा संभल के रहो ,
वरना कर देगी किसी दिन तुम्हे कंगाल बिंदी।
हर एक रिश्तों को समेटे ताउम्र रहती है ,
कह सकते हो बिंदी को , मकड़- जाल बिंदी।
माना कुछ बिंदियो में विश्वास का गोंद नही होता,
वरना जुड़ के रहती है अनगिनत साल बिंदी।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी