बाहों में आसमान
मुझे बांहों में भरना है आसमान
जाना है मुझे क्षितिज के उस पार,
मेरे सपनों की ऊंची है उड़ान।
करता फिरू बादल सी अठखेलियां ,
सुलझा लूंगा मैं जीवन की पहेलियां,
जग में बने मेरी नयी पहचान।
बहती हवा सा हो ,मेरा किरदार
न जीऊं कभी मन को मैं मार
जीना है खुशी से मुझे मेरा वर्तमान।
सपने सारे खुली बांहों में बटोर
जल्द लौटूंगा मैं फिर इस और
सूर्य किरन सी होगी मेरी तब शान।
जैसे रंगों से भरे मेरे हाथ के गुब्बारे
ऐसे ही रंगीन मेरे सपने हैं सारे,
नीला अंबर भी कहे मुझको शैतान।
सुरिंदर कौर