बाहर मीठे बोल परिंदे..!
बाहर मीठे बोल परिंदे,
मन के अंदर झोल परिंदे।
दुनिया में जीना है तुझको,
मुख में मिश्री घोल परिंदे।
कहना है जो, उसको पहले,
हिय के भीतर तोल परिंदे।
रिश्वत का बाजार लगा है,
सबका निश्चित मोल परिंदे।
जिसकी कुर्सी जितनी ऊंची,
उसमें उतनी पोल परिंदे।
आपाधापी में, जीवन की,
मत हो डांवाडोल परिंदे।
कर ले रिश्तों पर तुरपाई,
हर बंधन अनमोल परिंदे।
धर्म अधर्म समझना है तो,
मन के दर्पण खोल परिंदे।
सच से कब तक भागेगा तू,
दुनिया है यह गोल परिंदे।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊️