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16 Dec 2023 · 1 min read

बाहर-भीतर

बाहर-भीतर

शोर मच रहा जितना बाहर
भीतर है उतना सन्नाटा
बाहर बहुत उजाला है पर
भीतर है उतना अंधियारा

मिलने पर खुश होते दिखते
भीतर ईर्ष्या भरी हुई
कहीं मुखौटा गिर ना जाए
इसकी चिंता बनी हुई

चमक रहा जो बाहर बाहर
भीतर उतना काला है
चोला पहन सफेदपोश भी
धोखा देने वाला है

पहचानोगे कैसे लेकिन
चश्मा कहाँ से लाओगे
संभलो चाहे जितना भी तुम
ठोकर फिर भी खाओगे

2 Comments · 336 Views

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