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5 Jul 2021 · 1 min read

बाहर-बाहर चाव जिंदगी….

जिंदगी…

बाहर-बाहर चाव जिंदगी
भीतर गहरा घाव जिंदगी

राज छुपाए कुछ न बताए
रखती खूब दुराव जिंदगी

पलभर में ही रूप बदल कर
करे अजब बर्ताव जिंदगी

एक छाँ से दूसरी छाँ तक
प्राणों का भटकाव जिंदगी

सत्य नहीं मृगतृष्णा कोरी
कोरा मनबहलाव जिंदगी

कभी प्यार से मन सहलाए
कभी दिखाए ताव जिंदगी

आती-जाती सब सांसों का
रखती सदा हिसाब जिंदगी

हर मोड़ और हर चरम पर
लाए नए प्रस्ताव जिंदगी

छिटकाए चिंगारी रहरह
जलता एक अलाव जिंदगी

भाव जब-जब उठें हृदय में
खाए तब-तब भाव जिंदगी

यूँ तो सदा ही छलती आयी
फिर भी तेरा चाव जिंदगी

दिन पृष्ठ बन जुड़ते जाते
गढ़ती नयी किताब जिंदगी

आँखें मूँद पलक झपने तक
लेती एक ठहराव जिंदगी

तुझे कमी क्या कोई ‘सीमा’
तेरी तो है नवाब जिंदगी

-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“चाहत चकोर की” से

1 Like · 314 Views
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